मतदाताओं का मिजाज बदला हैआरा लोकसभा सीट से आरके सिंह की हार की 8 बड़ी वजह
मतदाताओं का मिजाज बदला हैआरा लोकसभा सीट से आरके सिंह की हार की 8 बड़ी वजह
इस बार का चुनाव पिछले चुनाव के मुकाबले काफी रोचक रहा. जिस समुदाय और समाज के वोटों की उम्मीद भाजपा उम्मीदवार को थी, वह पूरे तौर पर उन्हें नहीं मिले और 35 साल बाद एक बार फिर यहां भाकपा माले की वापसी हो गई. सुदामा प्रसाद के सामने विकास पुरुष कहे जाने वाले आरके सिंह की हार की 8 बड़ी वजह आगे पढ़िये.
चंदन कुमार/आरा. बिहार के आरा लोकसभा के चुनाव के बाद बड़ा फेरबदल इस बार सामने आया जहां दो बार के सांसद एवं केंद्र सरकार में ऊर्जा मंत्री रहे आरके सिंह महागठबंधन के प्रत्याशी सुदामा प्रसाद से चुनाव हार गए. सुदामा प्रसाद ने कड़े मुकाबले में उनको तकरीबन 59000 वोटों से हराया. आरा लोकसभा में आरके सिंह के चुनाव हारने की वजह को जब हमने जानने का प्रयास किया तो उसमें कई ऐसे बातें सामने आईं जिसके कारण एनडीए को आरा सहित पूरे शाहाबाद में नुकसान उठाना पड़ा और चारों सीट यहां से एनडीए हार गया. आइये आगे कारणों की पड़ताल करते हैं.
जाति के जंजाल में जकड़ा भोजपुर नहीं हुआ मुक्त- इस बार का चुनाव पिछले चुनाव के मुकाबले काफी रोचक रहा. जिस समुदाय और समाज के वोटों की उम्मीद भाजपा उम्मीदवार को थी, वह पूरे तौर पर उन्हें नहीं मिले. उन सभी वोटरों ने काफी हद तक महागठबंधन के प्रत्याशी को वोट दिया जिसके कारण आरके सिंह चुनाव हार गए. दरअसल, आरा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र पर सबसे ज्यादा वोटर राजपूत समुदाय से आते हैं. अगर ये सभी एक साथ एक जगह आ जाएं तो किसी भी उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित हो जाती है. इसके अलावा यहां यादव समुदाय के भी वोट तकरीबन राजपूत समुदाय के बराबर हैं. वहीं, भूमिहार-ब्राह्मण वोटों की अगर बात करें तो ये आंकड़ा 2 लाख के ऊपर चला जाता है. इसके साथ-साथ कोईर- कुर्मी समुदाय के भी वोट 150000 के आसपास हैं. इसके साथ ही दलित एवं महादलित वोटरों की संख्या भी यहां अच्छी खासी है. जबकि, अल्पसंख्यक वोटर भी भोजपुर जिले में काफी अच्छी तादाद में हैं. सभी समाज के कुछ-कुछ वोट कटे
आरा लोकसभा से भाजपा के हारने की जो सबसे बड़ी वजह सामने आई उसमें से पहला कारण सवर्ण समाज की जातियों, जिनमें ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार के अलावा कुशवाहा समाज के वोटरों ने भाजपा के खिलाफ वोटिंग की. इस बार के चुनाव में सवर्ण वोटरों को अपना वोटर समझ कर भाजपा लगातार उसे दरकिनार करती रही और दलितों-पिछड़ों के वोट पर पार्टी की निगाह थीं. लेकिन, वे वोट भी उनको प्राप्त नहीं हुए और जिन लोगों पर भारतीय जनता पार्टी और एनडीए गठबंधन ने उम्मीद किया, वही उनके लिए गलत साबित हो गया. सवर्ण वोटरों को अपनी तरफ लाने में भाजपा के लोग सफल नहीं हो सके. भोजपुर जिले के संदेश प्रखंड के तीर्थ कॉल निवासी चर्चित किसान नेता प्रोफेसर देवेंद्र कुमार सिंह की मानें तो इस बार भाजपा की हार की सबसे बड़ी वजह सवर्ण समाज के वोटरों एवं किसानों की लगातार अनदेखी रही. नहर में सिंचाई का उचित प्रबंध नहीं करना एवं अन्य मूलभूत सुविधाओं पर ध्यान नहीं देना, इस हार की बड़ी वजह रही. इसलिए उनको इस पर समीक्षा करने की जरूरत है, ताकि आगे से ऐसी स्थिति पैदा नहीं हो. आरके सिंह अपने क्षेत्र में विकास पुरुष के नाम से जाने जाते रहे हैं, लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा है. विशेष वर्ग के लोगों से घिरे रहे आरके सिंह
वहीं, सामाजिक कार्यकर्ता अभय विश्वास भट्ट की मानें तो आरा लोकसभा के वर्तमान सांसद को विकास पुरुष के नाम से नवाजा, लेकिन गठबंधन के साथियों को नहीं पूछना, प्रचार-प्रसार में आपसी एकता की कमी और एक विशेष वर्ग के कुछ खास लोगों के इर्द-गिर्द ही घिरे रहना, एक वर्ग विशेष पर ही विश्वास करने के साथ-साथ उस पर निर्भर रहना भी हार की वजह बनी. ग्रामीण इलाकों में प्रचार-प्रसार की कमी और उनके व्यवहार से क्षुब्ध लोगों की नाराजगी भी बड़ा कारण रहा. भोजपुर जिले के चर्चित चित्रकार कमलेश कुंदन की मानें तो सवर्ण वोटरों को लगातार भाजपा अनदेखी करती रही और उनका फोकस दूसरे समाज के वोटरों पर था. भाजपा प्रत्याशी को काफी आत्मविश्वास था अपने किए गए विकास के काम पर कि लोग विकास के नाम पर वोट देंगे. लेकिन, बिहार में जो पहले से जाति आधारित राजनीति होते आई है और एक बार फिर अंतिम समय में जातिगत राजनीति का बड़ा प्रभाव पड़ा और आरा सीट बीजेपी की झोली से निकल गयी. पवन सिंह फैक्टर का भी पड़ा असर
आरा लोकसभा के संदर्भ में बातचीत करते हुए सुनील पाठक ने कहा कि काराकाट लोकसभा में पवन सिंह के चुनाव में उतरना भी आरा में भाजपा के हार की एक बड़ी वजह रही, क्योंकि प्रचार-प्रसार को लेकर लगातार यह भ्रम फैलाया गया कि पवन सिंह का कोई प्रभाव लोकसभा में पड़ने वाला नहीं है. लगातार सोशल मीडिया से लेकर जमीन पर भी राजनीतिक बयानबाजी आरा लोकसभा उम्मीदवार के लिए भारी पड़ी और उनको यह सीट गंवानी पड़ गयी. साथ ही बक्सर में एक वर्ग को जाति के नाम पर राजद का साथ देना ब्राह्मण समुदाय को नागवार गुजरा और उन्होंने भी दूरी बना ली. वजह तो इस चुनाव में हारने की बहुत है. आरा के भाजपा उम्मीदवार आरके सिंह को यह उम्मीद थी कि सवर्ण समाज के वोटरों के अलावा दलित, पिछड़े, अति पिछड़े वोट भी उनको जरूर मिलेंगे. लेकिन, अंतिम समय में सब कुछ बदल गया और परिणाम इसके विपरीत आया. नेताओं-कार्यकर्ताओं में एकजुटता नहीं
विद्यालय के संचालक संजय राय की मानें तो आरा लोकसभा ही नहीं शाहाबाद की चारों सीटों पर महागठबंधन के प्रत्याशी का चुनाव जीतना एनडीए गठबंधन के लिए एक बड़ी सीख है, क्योंकि आरा के चुनाव में एनडीए के नेताओं में एकजुटता का अभाव दिखा. कार्यकर्ता…जो कि जमीनी स्तर पर काम करते हैं, उनको चुनाव प्रचार-प्रसार से दूर रखना भाजपा को भारी पड़ा. जातीय समीकरण का प्रभाव शाहाबाद की चारों सीटों के अलावा बगल की पाटलिपुत्र और औरंगाबाद पर भी पड़ी जो एनडीए के हाथ से निकल गई. पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह को भाकपा माले के सुदामा प्रसाद ने करीब 60 हजार मतों से मात दी. बेरोजगारी-महंगाई से त्रस्त है जनता
सामाजिक सरोकार से जुड़े नीलेश उपाध्याय ने बताया कि इस चुनाव में पूर्व विधायक सुनील पांडेय और पूर्व विधान पार्षद हुलास पांडेय ने काफी मेहनत की और उसका सकारात्मक रिजल्ट भी नजर आया. लेकिन, भाजपा के अंदर भीतरघात और गुटबाजी से कार्यकर्ता नेता से दूर रहे, जो हार का प्रमुख कारण रहा. आरा शहर निवासी मोहम्मद शकील की मानें तो आरा लोकसभा में वैसे तो विकास के काम जरूर हुए, लेकिन बेरोजगारी, महंगाई और किसानों की समस्या को लगातार दरकिनार करना भाजपा प्रत्याशी को महंगा पड़ गया. इसके साथ-साथ एनडीए के नेताओं में अंदरूनी कलह भी भाजपा के हार की एक बड़ी वजह बनी और इसका फायदा महागठबंधन के प्रत्याशी को सीधे तौर पर मिला. मतदाताओं का मिजाज जरूर बदला
होटल व्यवसायी कुमार अभिषेक उर्फ बबलू सिंह ने बताया कि आरा की हार से यह साबित हो गया की बिहार में आज भी जाति आधारित राजनीति लोगों के ऊपर हावी है. लोगों के लिए विकास और पार्टी कोई मायने नहीं रखती है चुनाव में सिर्फ जाति को देखकर वोट किया जाता है. इसके अलावा आरा शहर के व्यवसायियों का एक बड़ा भाग भाजपा से अलग हो गया जिसका खामियाजा भाजपा के लोगों को भुगतना पड़ा और आरा से भाजपा चुनाव हार गई. वहीं, चर्चित सामाजिक कार्यकर्ता मनोज उपाध्याय ने बताया कि जिस तरह से एनडीए की शाहाबाद की चारों सीट झोली से बाहर निकल गई इससे साफ तौर पर यह साबित होता है क वोटिंग का मिजाज मतदाताओं का कुछ जरूर बदला है और इस पर समीक्षा करने की जरूरत है, ताकि आगे से वैसी कोई स्थिति पैदा नहीं हो. शाहाबाद क्षेत्र में हावी रहे जातीय समीकरण
ऐसे तो एनडीए गठबंधन के लोगों ने सवर्ण समाज के वोटरों को अपने साथ लाने का भरपूर प्रयास किया, लेकिन अंतत: वह कामयाब नहीं हो सके. वहीं, दलित, पिछड़ा, अति पिछड़ा और अल्पसंख्यक समाज का वोट महागठबंधन के प्रत्याशी को मिला जिसके कारण 35 साल बाद एक बार फिर से भाकपा माले आरा लोकसभा संसदीय सीट पर काबिज हो गई. जातीय समीकरण पूरी तरह से शाहाबाद के चारों लोकसभा क्षेत्र पर हावी रहे. चाहे हम बात आरा लोकसभा की करें या बक्सर लोकसभा की. सासाराम लोकसभा की करें या फिर काराकाट लोकसभा की, वहीं काराकट एवं बक्सर में निर्दलीय उम्मीदवारों ने एनडीए का बेड़ा गर्क कर दिया.
Tags: ARA news, Bhojpur news, Bihar News, Loksabha Election 2024, Loksabha Elections, RK SinghFIRST PUBLISHED : June 6, 2024, 12:59 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed