ये कैसी स्मार्ट सिटी हम नोएडा की बात कर रहे थोड़ी बारिश सड़कें तालाब बनीं
ये कैसी स्मार्ट सिटी हम नोएडा की बात कर रहे थोड़ी बारिश सड़कें तालाब बनीं
स्मार्ट सिटी नोएडा क्यों नहीं मौसम की थोड़ी सी मार नहीं झेल पाता. दो-तीन घंटे बारिश हुई और सड़कें भर गईं. बगल के ग्रेटर नोएडा की भी स्थिति कुछ अलग नहीं है. शहर के बने बहुत वक्त नहीं हुआ. फिर भी प्लानिंग के साथ बनाए गए इन शहरों की सड़के कुछ घंटों की बारिश में ही क्यों तालाब दिखने लगती है और वाहनों के चक्के थमने से लगते हैं.
हाइलाइट्स जोर-शोर से प्लानिंग के साथ बनाया गया था शहर नाले-नालिया तोड़ने-बनाने का काम चलता ही रहता है निदान नहीं होता उत्तर प्रदेश को सबसे ज्यादा रेवेन्यू देने वाला शहर है, 'शोकेस' कहलाता है
नोएडा स्मॉर्ट सिटी है. साथ ही यूपी इसे अपना शोकेस मानता है. दिल्ली का जुड़वा बन गया है. यहां रहने वाले अपने मूल स्थानों पर जाते हैं तो कहते हैं – “दिल्ली में रहता हूं.” कोई गलत बात भी नहीं है. दूरी इतनी कम है कि कहा जा सकता है. अगर राज्य की सीमा न होती तो दिल्ली पसर कर इस जमीन तक तो नेचुरल तरीके से आ गया होता. इतना सब होने के बाद भी ये शहर बारिश का पानी क्यों नहीं झेल पाता है? बुधवार की शाम कुछ घंटे की बारिश में यहां की सड़कें तालाब बन गई थी. दस किलोमीटर की दूरी तय करने में लोगों को घंटों लग गए. शाम को दफ्तर से घर जाने वाले आधी रात को घर पहुंचे. बहुत से लोगों की तो गाड़िया पानी में घुसने से खराब हो कर खड़ी भी हो गई थीं. तो क्या हो जाती है है इस स्मार्ट सिटी की ये हालत.
उमर से ‘जवान’ फिर बोझ क्यों नहीं सह पा रहा
कहने को ये भी कहा जा सकता है कि जब दिल्ली की हालत ही खराब हो गई थी तो नोएडा का क्या? लेकिन ये कहना ठीक नहीं होगा. क्योंकि नई दिल्ली का निर्माण 1911 में शुरु हुआ हुआ और 1931 में आधिकारिक उद्घाटन किया गया था. उ उम्र में नोएडा उससे 45 साल छोटा है. दिल्ली अंग्रेजों ने अपने हिसाब से बनाया था और नोएडा भारतीय ने. इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी की कल्पना पर इसे उत्तर प्रदेश सरकार ने औद्योगिक शहर के तौर पर विकसित किया था. इसका नाम दरअसल अंग्रेजी के शब्दों का एब्रीबीएसन है. इसका मतलब होता है न्यू ओखला इंडस्ट्रीयल डेवलपमेंट अथॉरिटी. सबको पता है ओखला दिल्ली का नोएडा से सटा एक इलाका है. उसी की तर्ज पर नया ओखला बनना रहा होगा. लेकिन इसका नाम ही नोएडा हो गया.
खैर, नाम में क्या रखा है. मामला एक ऐसे नए प्लान किए हुए शहर में कुछ घंटों की बरसात में ही सड़कों की हालत तालाब जैसी हो जाने की है. यहां ये भी कह देना लाजिमी है कि कुछ ही घंटों में ये पानी निकल भी जाता है. ये क्यों होता है. शहर स्मार्ट भी बनाया गया है. तो इसके जवाब के लिए जाना होगा. शहर के इतिहास पर नजर डालनी होगी. इस शहर को बसाया गया था, उद्योगों के लिए. उद्योगों से लोगों को रोजगार और सरकार को राजस्व मिलना था. माना गया था कि बस वही लोग यहां रहेंगे जो इन उद्योगों में काम धंधा करेंगे. जाहिर है उनकी संख्या इतनी ज्यादा न रही होगी, जितनी अब है. अगर याद किया जाय नब्बे के दशक को तो इस शहर में कुछ ही सेक्टर रिहायशी तौर पर बनाए गए थे. मल्टीस्टोरीज की बात की जाय तो जलवायु विहार अकेला मोहल्ला या रिहायसी सोसाइटी थी.
शुरु में बहुत थोड़ा रिहायशी इलाका
जलवायु विहार सेना के लोगों को उनकी देश की सेवा के लिए अपवाद स्वरूप आवासीय कॉलोनी के तौर पर प्राधिकरण ने दिया था. बाद में अरुण विहार और कुछ और प्लॉट भी सेना के लोगों को दिए गए. सेक्टर 25, 26 में भी रिहायशी कॉलोनियां बनाई गईं लेकिन वे सब भी तीन फ्लोर तक की थीं. जाहिर है इनमें बहुत बड़ी जनसंख्या उसमें नहीं रह सकती थी. इसके बाद सेक्टर तेल कंपनियों के लोगों की सहकारी सोसाइटियों को प्लाट दे कर उन्हें मल्टी स्टोरीज बनाने की अनुमति दी गई. इसमें भी चार से आठ फ्लोर तक ही बनाए गए. इसके बाद केंद्र सरकार के कुछ चुनिंदा दूसरे विभागों के कर्मचारियों की सहकारी समितियों को आवास बनाने की सुविधा दी गई. इनमें से बहुत सारा निर्माण साल 2000 के बाद ही किया गया.
बिल्डरों का मैदान
2005-07 के बाद अचानक प्राधिकरण ने अपनी जमीन बिल्डरों को देनी शुरू कर दी. साथ ही उन्हें 25-30 मंजिल या उससे भी ज्यादा ऊंचाई वाले फ्लैट्स बनाने की अनुमति भी दे दी गई. कुछ मसलों पर मामला कोर्ट में भी गया था. कानूनी लड़ाइयों के बाद बिल्डरों के हक में फैसला गया. अब क्या था नोएडा फ्लैट में निवेश करने वालों की पहली पसंद के तौर पर सामने आ गया. नोएडा की भूमि खत्म हो गई तो बगल के ग्रेटर नोएडा की जमीन को नोएडा एक्सटेंसन कह कर बेचा गया. खैर उसका टेंसन तो बाद में नोएडा वाले के सामने आएगा. फिलहाल बात सड़क के तालाब बनने की.
संसाधनों पर आबादी का बोझ भारी, फिर कैसी प्लानिंग
तो जब प्लानिंग की जा रही थी, तब सीवर नालियां वगैरह जो जरूरी संसाधन थे वो उसी हिसाब से आंकलन करके बनाए गए थे. अब आबादी का बोझ कई गुना बढ़ गया लेकिन सीवर वैगरह की क्षमताएं वैसी ही रह गईं. ऊपर से साफ सफाई और शहर की भूसंरचना का ऊंचा नीचा होना समस्या को और बढ़ा देता है. इस बार देखा गया था कि प्राधिकरण ने तमाम नालों के ऊपर से गुजरने वाली सड़कों को तोड़ कर नालों से गाद निकाला था. फिर जैसे तैसे तोड़ी गई सड़कें भी बनाई गई. इन सबके बाद भी नालियां बारिश का तमाम पानी निकल नहीं पा रहा था. इसका ये मतलब नहीं है कि प्राधिकरण पूरे मामले में दोष मुक्त हो गया. प्राधिकरण जिस तरह नोएडा से रेवेन्यू की कमाई करता है, उससे यहां सुविधा की हर व्यवस्था देने का दायित्व भी उसी का है. जब नोएडा का विस्तार किया गया तो आखिर नालियों का विस्तार क्यों नहीं किया गया, ये भी अहम सवाल है. इसके अलावा सिर्फ नालियों में बड़े बड़े जेसीबी से ‘झाडू लगवा’ देना इसका हल नहीं है. इसके लिए विशेषज्ञों का पूरा पैनल बिठा कर इस पर विचार करने की जरूरत है.
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बनवाना तोड़ना होता रहता निदान नहीं हो पाता
इस शहर के प्राधिकरण ने अभी भी जिस तरह से यहां के नालों पर कभी किसी तरह का रैंप बनवाया फिर उसे तोड़ कर इस पर पत्थरों की पट्टियां लगवाई उसकी भी जांच होनी चाहिए. क्योंकि इस तरह के हर काम में जनता का पैसा खर्च होता है. आखिर क्यों पहले कुछ और बनाया गया फिर उसे तोड़ कर कोई और व्यवस्था की गई. इसके लिए जिम्मेदार अफसरों की तलाश की जानी चाहिए. बहुत सारे नालों पर प्राधिकरण ने वैध तरीके से दुकाने खुलवा रखी हैं. बहुत से नालों पर प्राधिकरण कर्मियों की मिली भगत से दुकाने चलाईं जा रही हैं. इन दुकानों से क्या सारी गंदगी का निस्तारण सही तरीके से किया जाता है या फिर वे भी नाले में जाती हैं. बहुत सारे नालों में देखने को मिलता है कि प्लास्टिक की पन्नियां सफाई के दौरान निकलती हैं. ये आखिर कहां से आ रही हैं. जबकि इस शहर में निश्चित थिकनेस से अधिक प्लास्टिक का इस्तेमाल करने पर रोक है. अगर इन सवालों पर गंभीरता से विचार नहीं किया गया तो उस दशा की कल्पना आसानी से की जा सकती है जो एक-दो दिन लगातार बारिश के बाद इस स्मार्ट सिटी की हो सकती है.
Tags: Greater noida news, Noida Authority, Noida newsFIRST PUBLISHED : August 1, 2024, 18:06 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed