धनबाद में किसका बजेगा डंका भाजपा और कांग्रेस दोनों भितरघात से परेशान
धनबाद में किसका बजेगा डंका भाजपा और कांग्रेस दोनों भितरघात से परेशान
आबादी की दृष्टि से झारखंड की सबसे बड़ी सीट धनबाद में इस बार लड़ाई दिलचस्प है. बीते लंबे समय से यह सीट भाजपा का गढ़ रही है. लेकिन, इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनों भितरघात से परेशान है.
धनबाद लोकसभा में इस बार 25 उम्मीदवारों के बीच जंग छिड़ी हुई है. पर मुख्य मुकाबला बाघमारा के भाजपा विधायक ढुल्लू महतो और बेरमो के कांग्रेस विधायक जयमंगल सिंह की पत्नी अनुपमा सिंह के बीच है. इसके अलावा सुनैना किन्नर भी ताल ठोंक रही हैं. झारखंड में यही एकमात्र सीट हैं, जहां तीनों लिंग के उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं.
क्या है धनबाद का गणित?
एसटी, एससी, मुस्लिम और सवर्ण वोटर के दबदबे वाले धनबाद लोकसभा में तीन लाख से ज्यादा आदिवासी वोटर हैं. मुस्लिम समुदाय की आबादी भी कम नहीं है. जबकि एससी और सवर्ण मतदाताओं की तादाद दो-दो लाख के करीब है. 2019 के लोकसभा के बाद हुए विधानसभा चुनाव में धनबाद की छह में से पांच विधानसभा सीट पर भाजपा ने कब्जा कर लिया था. 22 लाख वोटर के साथ झारखंड की सबसे बड़ी धनबाद लोकसभा के बोकारो विधानसभा में सबसे ज्यादा 5.6 लाख वोटर हैं. दूसरे नंबर पर धनबाद में 4.4 लाख और निरसा और सिंदरी में 3-3 लाख वोटर हैं. यहां नौकरी और व्यवसाय के लिए बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश से आकर बसे 60-65 फीसदी शहरी वोटर ही हमेशा प्रभावी होते हैं. जाहिर है बोकारो के साथ-साथ धनबाद, निरसा और सिंदरी में बढ़त लेने वाले उम्मीदवार को ही धनबाद लोकसभा में जीत मिलती रही है.
भाजपा का गढ़ रहा है धनबाद
मजदूर बहुल धनबाद में पहले मजदूर नेताओं की ही चलती थी. कोयला मजदूरों के प्रचंड समर्थन की बदौलत तीन बार सांसद रहे एके रॉय, राम नारायण शर्मा, शंकर दयाल सिंह और चंद्रशेखर दुबे जैसे मजदूर नेता धनबाद से संसद पहुंचे थे. पर भाजपा के मजबूत होते ही मजदूर नेताओं का बोलबाला खत्म हो गया. धनबाद से भाजपा के टिकट पर चार बार सांसद बनने वालीं रीता वर्मा और तीन बार सांसद रहे पीएन सिंह इसके उदाहरण हैं और अब धनबाद भाजपा के लिए सबसे सेफ सीट बन गई है. धनबाद में पिछले आठ बार हुए लोकसभा चुनाव में से सात बार भाजपा की जीत हुई.
2014 के चुनाव में भाजपा को दो लाख 93 हजार और 2019 में 4 लाख 86 हजार वोटों के बड़े अंतर से जीत मिली थी. पर यहां से जीत की हैट्रिक लगानेवाले पीएन सिंह का टिकट इस बार कट गया. जाहिर है सवर्ण उम्मीदवारों के दबदबे वाले धनबाद लोकसभा में इस बार भाजपा ने पुराने समीकरण को नजरअंदाज कर कुर्मी कार्ड आजमाया. धनबाद से ढुल्लू महतो और गिरिडीह से सहयोगी सीपी चौधरी की उम्मीदवारी के जरिए भाजपा ने दूसरी सीटों पर भी कुर्मी वोटर को गोलबंद करने की कोशिश की. भाजपा की ये रणनीति कितनी कारगर रही. ये रिजल्ट से ही पता चलेगा.
मोदी लहर से होगा बेड़ा पार?
धनबाद लोकसभा से इस बार भाजपा उम्मीदवार ढुल्लू महतो ने 2019 में भी गिरिडीह लोकसभा से टिकट के लिए जोर लगाया था. पर तब सीट बंटवारे में गिरिडीह सीट आजसू के हिस्से में चली गई थी. 2019 में लोकसभा के बाद हुए विधानसभा चुनाव में ढुल्लू महतो बाघमारा से महज 824 वोट से जीते. लेकिन वो जिस बाघमारा सीट से विधायक हैं, वो गिरिडीह संसदीय सीट में आती है. जाहिर है वो इस बार के चुनाव में अपने विधानसभा के वोट से दूर रहेंगे. साथ ही धनबाद से उन्हें प्रत्याशी बनाने पर भाजपा का एक तबका खासा नाराज है. उनकी हालिया बयानबाजी ने उस नाराजगी में आग में घी का काम किया.
धनबाद के भाजपा विधायक राज सिन्हा के वायरल बयान से पार्टी के अंदरखाने व्याप्त नाराजगी भी खुलकर सामने आ गई. हालांकि इस बयान को लेकर भाजपा ने राज सिन्हा को कारण बताओ नोटिस जारी किया है. अपनों के निशाने पर आए ढुल्लू महतो के सियासी दुश्मन भी उन पर वार पर वार किए जा रहे हैं. ढुल्लू महतो पर दर्ज केस का पिटारा खोल कर बैठे जमशेदपुर के निर्दलीय विधायक सरयू राय ने तो उनके खिलाफ लोकसभा चुनाव तक लड़ने का ऐलान कर दिया था. पर कांग्रेस के समर्थन मांगने पर वो पीछे हट गए. वहीं निवर्तमान सांसद पीएन सिंह का टिकट कटने से राजपूत समाज भी नाराज हो गया. ऐसे में अपनों और विरोधियों से चौतरफा घिरे ढुल्लू महतो को पार्टी की छवि और मोदी फैक्टर से बड़ी आस है.
भितरघात से परेशान कांग्रेस
धनबाद लोकसभा में भाजपा के साथ कांग्रेस को भी भितरघात का खतरा है. दरअसल, कई दिग्गज कांग्रेस नेता धनबाद से टिकट की आस में थे. पर टिकट मिला बेरमो के कांग्रेस विधायक जयमंगल सिंह की पत्नी अनुपमा सिंह को. वो पहली बार घर की दहलीज लांघ कर लोकसभा का चुनाव लड़ रही हैं. इससे नाराज धनबाद के पूर्व कांग्रेस सांसद और मजदूर नेता चंद्रशेखर दुबे मुखर हो गए और इंडिया गठबंधन की हार की भविष्यवाणी तक कर दी. पर झरिया की कांग्रेस विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह और बाघमारा के पूर्व विधायक जलेश्वर महतो के साथ-साथ सिंह मेंशन के युवराज मनीष सिंह जैसे कई नेता अनुपमा सिंह के साथ खड़े नजर आ रहे हैं. जेएमएम और आरजेडी भी समर्थन दे रही है. तो सरयू राय के पीछे हटने से सवर्ण वोटर में बिखराव का खतरा भी कम हो गया है. भाजपा से नाराज धनबाद के राजपूत और वैश्य मतदाताओं का भी कांग्रेस को साथ मिलता दिख रहा है. पर पिछड़ी जातियों को साधना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है.
Tags: Loksabha Election 2024, Loksabha ElectionsFIRST PUBLISHED : May 22, 2024, 12:07 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed