UP के इस शहर का नागों के राजा तक्षक से संबंध आज भी होता है इनके रहने का आभास
UP के इस शहर का नागों के राजा तक्षक से संबंध आज भी होता है इनके रहने का आभास
King of Snakes Takshak: हस्तिनापुर के विभिन्न पहलुओं पर पिछले 7 वर्षों से लगातार रिसर्च करते आ रहे शोभित विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर प्रियंक भारती कहते हैं कि मेरठ का नाग लोक से भी सीधा ताल्लुक माना जाता है. सनातन धर्म से संबंधित ऐतिहासिक तथ्य में स्पष्ट तौर पर उल्लेखित है कि कभी राजा तक्षक एवं उनसे संबंधित सर्पों का यहां पर वास हुआ करता था.
विशाल भटनागर /मेरठ: पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ को क्रांति धरा एवं महाभारत कालीन धरती के नाम से जाना जाता है. यहां पर विभिन्न ऐसे ऐतिहासिक तथ्य देखने को मिलेंगे, जो क्रांति और महाभारत कालीन यादों को ताजा करते हैं. लेकिन, आज हम आपको नागों के ऐसे रहस्य के बारे में बताएंगे, जिसका सीधा ताल्लुक मेरठ के किला परीक्षितगढ़ से जुड़ा हुआ है. जहां कभी नागों के राजा तक्षक ने भी कदम रखा था.
हस्तिनापुर के विभिन्न पहलुओं पर पिछले 7 वर्षों से लगातार रिसर्च करते आ रहे शोभित विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर प्रियंक भारती कहते हैं कि मेरठ का नाग लोक से भी सीधा ताल्लुक माना जाता है. सनातन धर्म से संबंधित ऐतिहासिक तथ्य में स्पष्ट तौर पर उल्लेखित है कि कभी राजा तक्षक एवं उनसे संबंधित सर्पों का यहां पर वास हुआ करता था. लेकिन, अर्जुन द्वारा उन सभी को यहां से अन्य जगहों पर विस्थापित कर दिया गया. वह कहते हैं कि इसी प्रतिशोध को लेने के लिए तक्षक सांप सैकड़ों वर्षों तक इंतजार करता रहा. एक मौका ऐसा आया कि अर्जुन के वंशज परीक्षित को उसी तक्षक द्वारा डस लिया.
राजा परीक्षित की तक्षक नाग के कारण हुई थी मृत्यु
हजारो वर्षों से माना जा रहा है कि जब ऋषि श्रमिक घोर तपस्या में लीन थे. तब सरस्वती तट के समीप शिकार खेलते हुए राजा परीक्षित श्री श्रृंगी ऋषि आश्रम पहुंच गए. तब उन्हें अचानक से प्यास लगी, तो उन्होंने ऋषि शमीक से जल मांगा. लेकिन वह तपस्या में लीन थे. ऐसे में कई बार आवाज देने के बाद भी जब तपस्या से नहीं जागे. तो वहीं पर एक मरे हुए सांप को ऋषि शमीक के गले में परीक्षित द्वारा डाल दिया गया. यह पूरा नजारा ऋषि शमीक के पुत्र श्री श्रृंगी ऋषि ने देख लिया, जिससे वह क्रोधित हो गए. उन्होंने राजा परीक्षित को श्राप दिया कि तुम्हारी मृत्यु का कारण भी सर्प बनेगा. कहा जाता है कि इसी श्राप के कारण राजा परीक्षित को तक्षक नाग द्वारा डस लिया गया था.
सर्प जाति को समाप्त करने के लिए शुरू हुआ था यज्ञ
प्रियंक भारती बताते हैं कि किला परीक्षितगढ़ में जब आप श्री श्रृंगी ऋषि आश्रम जाएंगे. तो आज भी आपको यज्ञशाला के वह पद चिन्ह देखने को मिलेंगे. जहां कभी नाग जाति को समाप्त करने के लिए राजा परीक्षित के पुत्र जान्मजय द्वारा यज्ञ किया गया था. जान्मेजय द्वारा पिता परीक्षित की मृत्यु का बदला लेने के लिए यज्ञ में धीरे-धीरे सभी सर्प की आहुति दे रहे थे. तब जैसे ही नागों के राजा तक्षक का नंबर आया. तो राजा तक्षक इंद्रदेव के पास पहुंचे. उल्लेख हैं कि फिर इंद्रदेव सहित अन्य देवी देवताओं द्वारा भी इसमें हस्तक्षेप किया गया. तब जाकर राजा परीक्षित के पुत्र जान्मजय के द्वारा इस यज्ञ को समाप्त किया गया. आज भी यहां पर कहा जाता है कि आश्रम में सर्प होने का आभास लोगों को हो जाता है. आश्रम परिसर के अंदर सर्प किसी को भी नहीं काटता है.
यह भी है महत्वपूर्ण
बता दें कि यह पूरा घटनाक्रम कलयुग के आगाज से जोड़ा जाता है. कहते हैं कि राजा परीक्षित के जीवित रहने तक कलयुग प्रवेश नहीं कर सकता था. ऐसे में वह उनके मुकुट में सवार हुआ. राजा परीक्षित ने जो भी कुछ किया वह कलयुग ही उनसे कर रहा था.
Tags: Local18, Meerut news, UP newsFIRST PUBLISHED : July 18, 2024, 15:36 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ेंDisclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Local-18 व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है. Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed