सोने-चांदी से जड़े झूले में विराजमान हुए बांके बिहारी जानें झूलने की परंपरा
सोने-चांदी से जड़े झूले में विराजमान हुए बांके बिहारी जानें झूलने की परंपरा
Banke Bihari: मथुरा के वृंदावन का नाम लेने से मन में एक सुखद आनंद की अनुभूति होती है. यहां बांके बिहारी मंदिर की भव्यता और दिव्यता श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है. आजादी के बाद यहां बना बांके बिहारी जी के झूले पर आज भी ठाकुर जी को झुलाया जाता है.
निर्मल कुमार राजपूत/मथुरा: भगवान श्री कृष्ण को अपनी प्राणों से प्यारी बांसुरी के अलावा एक और वस्तु अति प्रिय थी. श्री कृष्ण उस पर बैठकर अपनी बांसुरी बजाते थे. बांसुरी की मधुर धुन को सुनकर गाय और गोपियां खिंची चली आती थी. जहां द्वापर युग में भगवान श्री कृष्णा पेड़ों पर डाले हुए झूले का आनंद लेते थे. ऐसे में भगवान श्री कृष्ण को इस समय भी झूला झुलाया जा रहा है.
1938 से झूले का बनाना हुआ था शुरू
द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण राधा को झूला झूलते दिखाई देते थे. झूले पर बैठकर वह बांसुरी भी बजाते थे. बांसुरी की उस मधुरतान को सुनकर हर कोई उनकी तरफ खिंचा चला आता था. सावन के महीने में भगवान श्री कृष्णा को लेकर ऐसा कहा जाता है कि वह मथुरा आ जाते हैं.
मथुरा आने के बाद वह गोपियों के साथ लीलाओं को करते हैं, जो द्वापर युग में किया करते थे. सावन आते ही श्री कृष्ण राधा को झूला झूलते हैं. आज भी वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में इस परंपरा का निर्वहन यहां के सेवायत गोस्वामी करते चले आ रहे हैं.
मंदिर के पुजारी ने बताया
ठाकुर बांके बिहारी मंदिर के सेवायत पुजारी श्रीनाथ गोस्वामी ने बताया कि ठाकुर जी को सावन के महीने में लाड लड़ाया जाता है. बाल रूप में सेव होने के कारण ठाकुर जी को उनका पालन अति प्यारा है, इसलिए ठाकुर जी को झूले में झुलाया जाता है.
झूले में जड़ा हुआ है सोना-चांदी
बांके बिहारी को पहली बार 15 अगस्त 1947 को स्वर्ण रजत झूले में विराजमान कर उन्हें झुलाया गया था. तभी से यह परंपरा लगातार चली आ रही है. इस झूले में कई किलो सोना-चांदी जड़ा हुआ है. कई 100 किलो इस झूले का भार है. श्रीनाथ गोस्वामी ने बताया कि जिस प्रकार से श्री कृष्ण-राधा जी को झूला झूलते हैं, उसी प्रकार सावन के महीने में भगवान शंकर भी माता पार्वती को झूला झूलते नजर आते हैं.
शीशम की लकड़ी से बना है झूला
वहीं, मंदिर के पुजारी छोटू गोस्वामी ने बताया कि 1938 में झूला बनाने की शुरुआत हुई और भगवान बांके बिहारी पहली बार 15 अगस्त 1947 को झूले में विराजमान किया गया था. शीशम की लकड़ी से यह झूला बनाया गया है. इस पर नक्काशी बहुत ही बारिक तरीके से की गई है.
एक बच्चा भी उठा सकता है ठाकुर जी की प्रतिमा
उन्होंने बताया कि भगवान बांके बिहारी की प्रतिमा के अंदर एक अद्भुत शक्ति है. बच्चा भी ठाकुर जी की प्रतिमा को उठा सकता है और एक पहलवान ठाकुर जी की प्रतिमा को नहीं उठा सकता. भगवान जी पर कृपा करते हैं, भगवान उसके साथ चल देते हैं. जिससे वह परहेज करते हैं, वह चाहे कितना भी बलशाली हो फिर उसके साथ नहीं जाते हैं.
जानें कैसे है ठाकुर बांके बिहारी जी का शरीर
छोटू गोस्वामी ने बताया कि जिस तरह से हम मनुष्यों का शरीर है. इस तरह से ठाकुर बांके बिहारी का भी शरीर है. उन्हें जो जिस भाव से छूटा है, या स्पर्श करता है. वह उस भाव में ढल जाते हैं. अगर हम ठाकुर जी को बाल रूप में देखते हैं तो उनका शरीर भी बच्चों के जैसा हो जाता है. किस प्रकार से बच्चे का शरीर छूने पर मुलायम हो जाता है. इस तरह से उनका शरीर भी छूने पर मुलायम महसूस होता है.
Tags: Local18, Mathura newsFIRST PUBLISHED : August 8, 2024, 11:40 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed