मल्लिकार्जुन खड़गे: 50 साल का सियासी सफर आगे बहुत कठिन है डगर अध्यक्ष पद कैसे है कांटों का ताज
मल्लिकार्जुन खड़गे: 50 साल का सियासी सफर आगे बहुत कठिन है डगर अध्यक्ष पद कैसे है कांटों का ताज
Mallikarjun Kharge Profile: मल्लिकार्जुन खड़गे के कार्यभार संभालने के कुछ सप्ताह बाद ही हिमाचल प्रदेश और गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनाव उनके सामने पहली चुनौती होंगे, जहां सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की मजबूत पकड़ है. इस समय केवल दो राज्यों राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ही कांग्रेस की सरकार है. इस परीक्षा के बाद 2023 में नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसमें उनका गृह राज्य कर्नाटक भी शामिल है. पार्टी में पीढ़ीगत आधार पर विभाजन भी एक चुनौती है और उन्हें अनुभवी नेताओं व युवाओं के बीच संतुलन बनाए रखना होगा. यही नहीं, उन्हें गांधी परिवार के ‘रिमोट कंट्रोल’ से चलने की धारणा को भी गलत साबित करने की चुनौती का सामना करना होगा.
नई दिल्ली: कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच ‘सोलिल्लादा सरदारा’ (अजेय नेता यानी कभी नहीं हारने वाला नेता) के रूप में लोकप्रिय मल्लिकार्जुन खड़गे ने बुधवार को देश की सबसे पुरानी पार्टी के प्रमुख की जिम्मेदारी संभाल ली है. सोनिया गांधी, राहुल गांधी समेत कई दिग्गज नेताओं की मौजूदगी में मल्लिकार्जुन खड़गे ने आज पार्टी मुख्यालय में कांग्रेस की कमान संभाली. हालांकि, इस जिम्मेदारी को उनके लिए ‘कांटों का ताज’ कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. बहुत साधारण पृष्ठभूमि से आने वाले मल्लिकार्जुन खड़गे एक साधारण कार्यकर्ता से अपने सियासी सफर की शुरुआत कर इस मुकाम तक पहुंचे हैं.
अपने पांच दशकों से अधिक के राजनीतिक जीवन में खड़गे ने कुशलता से कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाली और राजनीति तथा सत्ता के तमाम उतार-चढ़ावों के बावजूद गांधी परिवार के प्रति पूरी दृढ़ता के साथ वफादार बने रहे. कावेरी नदी जल विवाद हो या शीर्ष कन्नड़ अभिनेता दिवंगत राजकुमार का अपहरण, खड़गे दो दशक पहले कर्नाटक के गृह मंत्री के रूप में ऐसी कई संकटपूर्ण स्थितियों से निपट चुके हैं. 80 वर्षीय मल्लिकार्जुन खड़गे का सार्वजनिक जीवन अपने गृह जिले गुलबर्ग (अब कलबुर्गी) में एक यूनियन नेता के रूप में शुरू हुआ और वर्ष 1969 में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए तथा गुलबर्ग शहरी कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने. अपनी युवावस्था में जाने माने कबड्डी और हॉकी खिलाड़ी रहे खड़गे दशकों तक चुनावी राजनीति में अजेय रहे और कन्नड़ के अलावा हिंदी, अंग्रेजी, मराठी, उर्दू में उनकी दक्षता से उनके अपने नए पद पर अच्छी स्थिति में होने की उम्मीद है.
खड़गे को क्यों कहा जाता है ‘सोलिल्लादा सरदारा’
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने कर्नाटक खासकर हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र में नरेंद्र मोदी लहर के बावजूद गुलबर्ग से 74 हजार मतों के अंतर से जीत हासिल की. वर्ष 2009 में लोकसभा चुनाव के जरिए राष्ट्रीय राजनीति में आने से पहले उन्होंने गुरुमितकल विधानसभा क्षेत्र से नौ बार जीत दर्ज की. वह गुलबर्ग से दो बार लोकसभा सदस्य रह चुके हैं. हालांकि, वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में खड़गे को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता उमेश जाधव से गुलबर्ग में 95,452 मतों से हार का सामना करना पड़ा. अपने गृह राज्य कर्नाटक में ‘सोलिल्लादा सरदारा’ (कभी नहीं हारने वाला नेता) के रूप में मशहूर खड़गे के कई दशकों के सियासी सफर में यह उनकी पहली हार थी.
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कांग्रेस में बड़ा रहा है कद
खड़गे ने कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाली जिससे एक प्रशासक के तौर पर उनका अनुभव समृद्ध हुआ. पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार में खड़गे ने केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के रूप में श्रम एवं रोजगार, रेलवे और सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण विभाग संभाला. उन्होंने कर्नाटक में कांग्रेस की लगातार कई सरकारों में विभिन्न विभागों का कार्यभार संभाला था. खड़गे कर्नाटक विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे और कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी (केपीसीसी) प्रमुख भी नियुक्त किए गए. लोकसभा में वर्ष 2014 से 2019 तक खड़गे कांग्रेस के नेता रहे. जून, 2020 में खड़गे कर्नाटक से राज्यसभा के लिए निर्विरोध निर्वाचित हुए और हाल तक उच्च सदन में विपक्ष के 17वें नेता थे.
कुर्सी तक पहुंचे मगर कभी मुख्यमंत्री नहीं बन पाए खड़गे
खड़गे को कई बार कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद के शीर्ष दावेदार के रूप में देखा गया, लेकिन वह कभी इस पद पर नहीं पहुंच पाए. मिजाज और स्वभाव से सौम्य खड़गे कभी किसी बड़ी राजनीतिक समस्या या विवाद में नहीं फंसे. बीदर जिले के वारावट्टी में 21 जुलाई, 1942 को गरीब परिवार में जन्मे खड़गे ने स्कूली पढ़ाई के अलावा स्नातक की पढ़ाई कलबुर्गी में की. विधि स्नातक खड़गे राजनीति में आने से पहले वकालत के पेशे में थे. वह बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं और कलबुर्गी में बुद्ध विहार परिसर में निर्मित सिद्धार्थ विहार ट्रस्ट के संस्थापक-अध्यक्ष हैं. उन्होंने 13 मई, 1968 को राधाबाई से विवाह रचाया और उनकी दो बेटियां और तीन बेटे हैं. उनके एक बेटे प्रियंक खड़गे विधायक हैं और कर्नाटक में मंत्री रहे हैं.
राजस्थान में कांग्रेस के आंतरिक संकट से कैसे निपटेंगे खड़गे
नरेंद्र मोदी नीत सरकार के मुखर आलोचक खड़गे के कांग्रेस का नेतृत्व करने से कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहन मिलने और राज्य में पार्टी में एकजुटता की उम्मीद है, जहां अगले साल अप्रैल तक विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. हालांकि, कांग्रेस अध्यक्ष का पद खड़गे के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है. खड़गे को 2024 के आम चुनाव से पहले पार्टी को मजबूत करने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. गुजरात और हिमाचल प्रदेश चुनाव में कांग्रेस के बेहतर करने की उम्मीदें बड़ी चुनौती है, वहीं राजस्थान व कर्नाटक में पार्टी के भीतर जारी रस्साकशी ने पार्टी की परेशानी और बढ़ा दी है. ऐसे में 2024 के आम चुनाव से पहले पार्टी को एकजुट करना खड़गे के लिए एक बड़ी चुनौती होगी. राजस्थान में अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट विवाद सुलझाने की भी बड़ी चुनौती है.
रिमोट कंट्रोल की धारणा तोड़ने और कांग्रेस को जीत की राह पर लौटाने की चुनौती
दरअसल, खड़गे के कार्यभार संभालने के कुछ सप्ताह बाद ही हिमाचल प्रदेश और गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनाव उनके सामने पहली चुनौती होंगे, जहां सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की मजबूत पकड़ है. इस समय केवल दो राज्यों राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ही कांग्रेस की सरकार है. इस परीक्षा के बाद 2023 में नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसमें उनका गृह राज्य कर्नाटक भी शामिल है. पार्टी में पीढ़ीगत आधार पर विभाजन भी एक चुनौती है और उन्हें अनुभवी नेताओं व युवाओं के बीच संतुलन बनाए रखना होगा. यही नहीं, उन्हें गांधी परिवार के ‘रिमोट कंट्रोल’ से चलने की धारणा को भी गलत साबित करने की चुनौती का सामना करना होगा.
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Tags: Congress, Mallikarjun khargeFIRST PUBLISHED : October 26, 2022, 13:56 IST