एक इंजीनियर जिसने MNC की जॉब छोड़ बेंगलुरु की झीलों को दिया नया जीवन

अखबार की ख़बर से हुए थे प्रभावित. नौकरी छोड़ लिया पर्यावरण संरक्षण का निर्णय. बहुत लोगों से मिलती है धमकी. लेकिन, परिवार ने हमेशा दिया साथ. अब तक16 झीलों को कर चुके हैं पुनर्जीवित.

एक इंजीनियर जिसने MNC की जॉब छोड़ बेंगलुरु की झीलों को दिया नया जीवन
भारत का आईटी हब कहे जाने वाला बेंगलुरु एक वक़्त पर ‘झीलों के शहर’ के नाम से भी जाना जाता था. लेकिन, तेज़ी से होते शहरीकरण के बीच यहां की पहचान गुम सी हो गई. इस पहचान को बचाने के लिए एक मैकेनिकल इंजीनियर ने अपनी जॉब छोड़कर झीलों को जिंदा करने का अभियान शुरू किया. आज उन्हें लोग ‘lake man’ के नाम से जानते हैं. आनंद मल्लिगावड दावा करते हैं कि 2017 से अब तक वह 16 से भी अधिक झीलों को पुनर्जीवित कर चुके हैं. बेंगलुरु से शुरू हुए उनके इस सफ़र को आज पूरे देश भर में सराहना मिल रही है. अपने इस लेकमैन (lake man) बनने के सफ़र के बारे में न्यूज 18 से बात करते हुए आनंद बताते हैं कि 2015 में एक अखबार में यह ख़बर पढ़ी थी कि 2030 तक दक्षिण अफ्रीकी शहर केप टाउन की तरह ही बेंगलुरु भी गंभीर जल संकट से जूझ रहा होगा. इसका उन पर काफ़ी गहरा प्रभाव पड़ा. उन्होंने इसके कारणों पर अनुसंधान शुरू कर दिया. 2016 में उन्होंने इस विषय पर अनुसंधान करना शुरू किया था और एक साल की कड़ी मेहनत और पढ़ाई के बाद 2017 में उन्होंने झीलों को पुनर्जीवित करने के कार्य की शुरुआत की. उस वक़्त वह एक कंपनी में बतौर सीएसआर (कंपनी सोशल रेसपॉन्सबिलिटीज) हेड काम कर रहे थे. कंपनी ने उनके इस कार्य के लिए फंड प्रदान किया और उनकी सहायता भी की. क्यालासनहल्ली झील से शुरुआत आनंद ने अपने इस कार्य की शुरुआत क्यालासनहल्ली झील से की. अपनी कंपनी के समर्थन से उन्होंने 2017 में मात्र 45 दिनों में ही इस झील को पुनर्जीवित कर दिया था. झील को जीवनदान देने में 95 लाख रुपये का खर्च आया था. यह पूरे पैसे उनकी कंपनी द्वारा दिए गए थे. उनका दावा है कि एक झील को पुनर्जीवित करने में सरकार को कम से कम छह महीने का वक़्त लगता है. करोड़ों का खर्च भी आता है. लेकिन, उन्होंने कम से कम वक़्त और खर्च में यह काम करके दिखाया. पहले से की थी आर्थिक तैयारी उन्होंने संरक्षणवादी बनने से पहले अपनी आर्थिक तैयारी कर रखी थी. 15 वर्षों तक कॉर्पोरेट में काम किया. इससे उनके पास ठीक ठाक जमा पूंजी थी और उन्हें किसी आर्थिक संकट का सामना नहीं करना पड़ा. वह किसी अतिक्रमण को हटाते हैं तो उन्हें धमकियों का सामना करना पड़ता है. लेकिन दूसरे लोगों की मदद और समर्थन से वह इतने सालों तक यह कार्य कर पाए. नौकरी के साथ करते रहे काम इसके बाद दो सालों तक वह नौकरी के साथ-साथ ही झीलों को पुनर्जीवित करने का काम करते थे. उनके पहले प्रोजेक्ट के सफ़ल होने के बाद उन्हें लगातार कई कंपनियों द्वारा फंड दिए गए. उन्होंने कई कॉर्पोरेट कंपनियों की मदद से 2018-2019 के बीच चार झीलों को पुनर्जीवन दिया. इसके बाद 2019 के अंत तक उन्होंने अपनी नौकरी छोड़कर अपना पूरा ध्यान अपने मिशन पर केंद्रित करने का निर्णय लिया. वह पूर्ण रूप से बतौर झील संरक्षणवादी काम करने लगे. 16 झीलों को दिया पुनर्जीवन 2019 में नौकरी छोड़ने के बाद भी उन्हें कॉर्पोरेट से फंड मिलते. जिसकी वजह से वो अपना ये मिशन पूरा कर पाने में सक्षम रहे. 2017 से अब तक वह कुल 16 झीलों को पुनर्जीवित कर चुके हैं और अभी फिलहाल वह अन्य आठ झीलों पर काम कर रहे हैं. वह कहते हैं कि उनका स्कूल एक झील के पास था और खाली वक़्त में हमेशा उस झील के किनारे बैठा करते थे. इसलिए उन्हें बचपन से ही झीलों से बहुत लगाव है. कैसे करते हैं झीलों की सफ़ाई आनंद बताते हैं, जब वह पहली बार उस जगह गए जहां पहले कभी झील हुआ करती थी तो देखा कि कुछ गांव वालों ने ज़मीन पर गैरकानूनी तरीके से अतिक्रमण कर रखा है. उन्होंने बिना किसी कानूनी मदद के उस अतिक्रमण को हटवाया. इस काम में कई मुश्किलों का सामना भी करना पड़ा. लेकिन उसी गांव के अन्य लोगों की मदद से वह अपना काम पूरा कर पाए. इसके बाद झीलों की सफ़ाई की जाती है और जो सीवेज वाली झील होती हैं उन्हें केमिकल के प्रयोग के बिना ही साफ़ किया जाता है. फास्फोरस, नाइट्रेट, सल्फर जैसे इंडस्ट्रियल केमिकल को हटाया जाता है. इसके बाद पानी का प्राकृतिक बायोलॉजिकल ट्रीटमेंट (natural biological treatment) किया जाता है. इस प्रक्रिया में काफ़ी मेहनत और वक़्त लगता है. परिवार ने दिया पूरा साथ आनंद बताते है कि जब उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ कर झील संरक्षण का काम शुरू किया था तो प्रारंभिक दिनों में उनके परिवार में हल्की सी झिझक थी कि उन्होंने अच्छी खासी नौकरी छोड़ कर यह क्या काम शुरू कर दिया. लेकिन बीतते वक़्त के साथ उनकी मेहनत और लगन को देखते हुए अब उनका परिवार उनसे पूरी तरह सहमत है. वह अपनी पत्नी और बेटी को अपनी सबसे बड़ी ताकत मानते हैं. धीरे -धीरे जुड़े लोग जब उन्होंने पहली झील को 45 दिनों में पुनर्जीवित किया तो आस पास के कई गांव वाले उनसे जुड़े और सबने मिलकर वहां पेड़ लगाए. पेड़ों की वजह से ज़मीन के नीचे पानी का स्तर बढ़ा और लोगों के जीवन में बदलाव भी आया. अब उनके साथ काफी लोग जुड़ चुके हैं. देते हैं मुफ़्त प्रशिक्षण उन्होंने भले ही इस सफ़र की शुरुआत खुद से की हो. लेकिन, अब वह लोगों को ट्रेनिंग भी देते हैं. अब तक वह पचास लोगों की टीम भी बना चुके हैं. यह टीम उनके अलग-अलग प्रोजेक्ट्स में उनके साथ काम करती है. यह प्रशिक्षण वह मुफ़्त में प्रदान करते हैं. इसके साथ ही स्कूल-कॉलेज में भी लोगों को प्रेरित करने के लिए जाते हैं. उनका मानना है कि पर्यावरण संरक्षण केवल सरकार की ज़िम्मेदारी नहीं है, बल्कि हर एक व्यक्ति का ये पर्यावरण और देश के प्रति दायित्व है. इसलिए वह कम से कम लागत में संरक्षण करने की कोशिश करते हैं और युवाओं को भी यही सिखाते हैं. लोकप्रियता के लिए नहीं की थी शुरुआत उनके मुताबिक उन्होंने कभी भी लोकप्रियता के लिए इस कार्य की शुरुआत नहीं की थी. लेकिन अगर उनकी लोकप्रियता की वजह से कोई भी व्यक्ति इस कार्य से जुड़ता है तो उन्हें इस बात से बहुत प्रसन्नता होगी. ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट 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