टिशू कल्चर से करें केले की खेती उपज-गुणवत्ता दोनों बेहतर किसान के लिए फायदा
टिशू कल्चर से करें केले की खेती उपज-गुणवत्ता दोनों बेहतर किसान के लिए फायदा
Bananas Cultivate: जिला उद्यान अधिकारी महेश कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि टिशू कल्चर के माध्यम से केले की खेती में बंपर उत्पादन हासिल करने की एक बेहतर तकनीक है. इस विधि से उच्च गुणवत्ता वाले एक समान और रोग-मुक्त पौधे तैयार किए जाते हैं.
बाराबंकी /संजय यादव: बाराबंकी जिला वैसे तो केले की खेती के लिए प्रसिद्ध है. क्योंकि, यहां बड़े पैमाने पर केले की खेती की जाती है. वहीं, अगर केले की खेती को आधुनिक तकनीकों को अपनाकर किसान कम लागत में अधिक उत्पादन कर भरपूर मुनाफा कमा सकते हैं.
जिला उद्यान अधिकारी महेश कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि टिशू कल्चर के माध्यम से केले की खेती में बंपर उत्पादन हासिल करने की एक बेहतर तकनीक है. इस विधि से उच्च गुणवत्ता वाले एक समान और रोग-मुक्त पौधे तैयार किए जाते हैं. इससे केले की उपज और गुणवत्ता दोनों बेहतर होती है और किसानों को अधिक लाभ मिलता है. पिछले कुछ वर्षों में टिश्यू कल्चर विधि से केले की उन्नत प्रजातियों के पौधे तैयार किए जा रहे हैं. इस विधि से तैयार पौधों से केले की खेती करने के अनेक लाभ हैं. केले की खेती करने वाले किसान टिश्यू कल्चर से तैयार पौधे की रोपाई कर बेहतर लाभ ले सकते हैं.
केले की खेती का समय
केले की खेती का समय 15 जून से 15 जुलाई सबसे उपयुक्त माना जाता है. यह फसल सितंबर में तैयार होती है. इस तरीके से केले की फसल की अवधि 13 से 14 महीने की होती है. टिशू कल्चर के पौधे पारंपरिक पौधों की तुलना में अधिक सशक्त और तेजी से विकास करने वाले होते हैं. जल्दी फल लगते हैं और अधिक उपज क्षमता के गुण होते हैं. हाई डेंसिटी तरीके से रोपण कर सकते है. इसके एक पौधे से दूसरे पौधे की बीच की दूरी 6 फीट रखनी चाहिए. वहीं, लाइन से लाइन की दूरी भी 6 फीट सबसे उपयुक्त मानी गई है. इस हिसाब से एक एकड़ में 1200 पौधे लगाए जा सकते हैं.
टिशू कल्चर से मिलता है ज्यादा फायदा
जिला उद्यान अधिकारी महेश कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि जनपद में 600 हेक्टेयर में केले की खेती की जाती है. पर अब टिशू कल्चर मैं तैयार पौधे किसान लगाते हैं, तो उन्हें और भी ज्यादा फायदा मिलेगा. क्योंकि, टिश्यू कल्चर से तैयार केले के पौधे स्वस्थ होते हैं. साथ ही इनमें रोग नहीं लगता है. फलों का आकार, प्रकार और गुणवत्ता समान होती है. टिश्यू कल्चर से तैयार पौधों में फलन लगभग 60 दिन पहले हो जाता है. पहली फसल 13 से 14 माह में मिलती है, जबकि पारंपरिक पौधों में 15 से 16 महीने लगते हैं.
समय और खर्च दोनों की बचत
टिश्यू कल्चर से तैयार पौधों की औसत उपज 30 से 35 किलोग्राम प्रति पौधा तक हो सकती है. वैज्ञानिक विधि से खेती करके 60 से 70 किलोग्राम के घौद प्राप्त किए जा सकते हैं. पहली फसल के बाद दूसरी फसल 9 से 10 माह में आ जाती है, तो इस प्रकार 24 से 25 माह में दो फसलें ली जा सकती हैं. टिश्यू कल्चर किस्मों की खेती करने से समय और खर्च दोनों की बचत होती है, जिससे किसानों को दोगुना मुनाफा हो सकता है.
Tags: Agriculture, Barabanki latest news, Kisan, Local18, UP newsFIRST PUBLISHED : July 4, 2024, 12:00 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed