Opinion:जुड़वा बेटियों की हत्या ! लानत है बेटे की इस चाहत पर
Opinion:जुड़वा बेटियों की हत्या ! लानत है बेटे की इस चाहत पर
समाज का कोई भी क्षेत्र हो, लड़कियां लड़कों से रत्ती भर पीछे नहीं हैं. फिर भी बेटे की चाहत में नवजात बेटियों की हत्या की खबरें आ रही हैं. बेटे की ऐसी चाहत पर लानत भेजना चाहिए. ये दौर है जब देश की सबसे ताकतवर कुर्सी पर द्रौपदी मुर्मू बैठी हैं. इंदिरा गांधी इस देश की प्रधान मंत्री रही हैं. कल्पना चावला ने अंतरिक्ष यात्रा कर दिखाया और बहुत सारे नाम हैं. सबके साथ ये भी याद रखना होगा कि जिसने बेटियों की हत्या की उसे भी किसी मां ने ही जन्म दिया है.
हाइलाइट्स बेटे की चाहत वाली मानसिकता बदलनी होगी देश की राष्ट्रपति भी महिला हैं
इक्कीसवीं सदी का भी एक चौथाई हिस्सा गुजरने ही वाला है. फिर भी कुछ खबरें उन्नीसवी सदी जैसी सुनने को मिल जाती है. ऐसी ही एक खबर दिल्ली से सुनने को मिली. बेटा की तमन्ना में एक पिता ने अपने परिवार वालों के साथ मिल कर पैदा होते ही जुडवा बेटियों की हत्या कर दी. वाकया बाहरी दिल्ली के पूठकला इलाके का है. ऐसा लगता है कि दिल्ली से सटे इस गांव के ये लोग महानगर जैसी सुविधाओं के बीच मध्ययुगीन मानसिकता के साथ जी रहे हैं. घटना 20-25 दिन पुरानी बताई जा रही है, लेकिन अभी अभी सामने आई है. एक ऐसी ही घटना चंड़ीगढ़ में सामने आई थी. वहां भी तीसरी बेटी पैदा होने पर पिता ने एक बेटी का गला घोट दिया था. एक ओर सेना में महिलाओं को नियमित कमीशन देने और उनके अंतरिक्ष तक जाने पर देश खुश होता दिखता है,तो दूसरी ओर बेटे की चाहत में बच्चियों की हत्या पूरी तरक्की को शर्मसार करती है.
बहुत सी जगहों पर रुढ़ियां खत्म हुई हैं फिर भी….
पिछली सदी तक राजस्थान और हरियाणा समेत देश के कुछ इलाकों में इस तरह की घटनाएं सुनने में जरूर आती थीं. पहले वाली पीढ़ी में बेटा पैदा न करने वाली महिलाओं की सार्वजनिक जलालत के कारण बेटा पैदा कराने वाले बहुत सारे बाबा पैदा हो गए. हरियाणा में ऐसे ही एक बाबा ने कारगुजारी उजागर होने पर पुलिस से बाकायदा हथियारबंद मोर्चा भी लिया था. उस बाबा के यहां महिलाओं को बेटा पैदा कराया जाता था. शादी -व्याह और दूसरे बहुत सारे मौकों पर निःसंतान या कहीं-कहीं बगैर बेटे वाली महिलाओं को दरकिनार रखने की भी बुरी रियावत रही है. इस अपमान से बचने के लिए भी बहुत सी महिलाएं ऐसे बाबाओं के शरण में जाती रही. कहने की जरुरत नहीं है कि अगर महिला में कोई खामी होती तो बाबा के यहां भी उसकी गोद न भरती.
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बिना बेटे वाली माताओं की ट्रेजडी
खैर ये मुद्दा निःसंतान कही जाने वाली महिलाओं से थोड़ा अलग है. यहां संतान तो हो रही थी, बेटा नहीं हुआ था. पूठकला वाली हत्या की कहानी बहुत ही अजीब है. पूरी घटना समझने के बाद लगता है कि इसे सोच समझ कर अंजाम दिया गया. रोहतक की रहने वाली महिला ने 30 मई को जुड़वा बेटियों को जन्म दिया था. उसके कुछ दिनों बाद ससुराल वाले बेटियों को अपने साथ ले आए. उन्होंने इस मां को कहा था कि जब तक वो पूरी तरह सेहदमंद नहीं हो जाती अपने मायके रहे. ससुराल वाले इस दरम्यान बेटियों की देख रेख कर लेंगे. मां को शक हुआ तो वो पुलिस के पास गई. लंबे समय तक दौड़ाने के बाद आखिरकार पुलिस ने 5 जून को मामला दर्ज किया. बताया जा रहा है कि पुलिस ने शवों को निकाल कर पोस्टमार्टम भी करा लिया है. फिलहाल ससुराल वाले फरार बताए जा रहे हैं.
बदले दौर को न समझना
दरअसल, उनकी ये फरारी इस सोच से भी है कि अब बेटे -बेटियों में कोई अंतर नहीं है. पहले भी नहीं था. पुरुष वर्ग ने ही महिलाओं को अपने तरीके से दबा कर रख रहा था. जब सोच बदली और महिलाओं को थोड़ा सा मौका दिया तो साबित हो गया. अपने ही देश का केरल वो प्रदेश है जहां की महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक कमाती है. नर्स के तौर पर उनकी सेवा का लाभ पूरा देश उठा रहा है.
अलग अलग जगहों के बर्रबर रिवाज
उत्तर के लोगों को याद होगा कि राजस्थान के कुछ इलाकों में बेटी होने पर उसे दूध में डुबो कर मार देने की बर्रबर रिवायत रही है. दिल्ली की एक महिला पत्रकार याद करती हैं कि दो बड़ी बहन के बाद जब उनका जन्म हुआ तो घर में बड़े बुजुर्ग तो थोड़े दुखी थे ही. पड़ोस की रहने वाली एक महिला ने आकर जन्म के कुछ ही दिन बाद उनका गला पकड़ लिया. उनकी मां से ये कहते हुए कि तीन बेटियों को कैसे पालोगी, उन्हें खत्म करने की कोशिश की. वो तो उनकी मां ने उन्हें बचा लिया. अब वे एक अच्छी पत्रकार हैं.
‘कुलवा क दीप होइहें…’
बेटे की चाहत में अपराधी बनने वाले पता न ये क्यों नहीं देख पाते कि बहुत सारे बेटों के कारण बहुत से परिवारों को तमाम परेशानियां झेलनी पड़ी हैं. हर बार बेटे कुल का दीपक नहीं बने हैं. नाम रोशन ही नहीं किया है. बेटी हर बार मां-बाप के लिए बोझ ही होगी ये सोच ही गलत है. अब देखा जा रहा है कि दरअसल, बेटे की शादी लोगों के लिए बड़ी समस्या बन रही है. 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में प्रति 1000 पुरुषों पर 943 लड़कियां भी गिनी गई हैं. यानी अभी भी महिलाओं संख्या कम है.
दिमाग की खिड़की खोलें
इन घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए सरकार ने तो कानून बनाए ही हैं. बेटियों को पढ़ाने उनके शादी व्याह में मदद भी कर रही है. फिर भी बेटी की हत्या करने वालों को बगैर कानून हाथ में लिए समाज और पंचायतों को भी सबक सिखाना चाहिए. हर स्तर पर बेटी की हत्या की घोर निंदा होनी चाहिए और इसके दोषियों को कानूनी तौर पर कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए.
Tags: Crime Against Child, Girl murderFIRST PUBLISHED : June 24, 2024, 13:35 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed