आंखों की रोशनी तक छीन लेती है ये बीमारी AIIMS ने पहली बार की स्टडी अब
आंखों की रोशनी तक छीन लेती है ये बीमारी AIIMS ने पहली बार की स्टडी अब
ऑटोइम्यून यूवाइटिस आंखों की गंभीर बीमारी है, जो बच्चों से लेकर बड़ों की आंखों में अचानक पैदा होती है, इन्फ्लेमेशन करती है और समय से इलाज न मिलने पर कई बार यह आंखों को अंधा भी बना देती है.
आंखें शरीर के सबसे जरूरी अंग में से एक हैं लेकिन कई ऐसी बीमारियां हैं, जिनका अगर जल्दी इलाज न किया जाए तो ये रोशनी तक छीन लेती हैं. ऐसी ही आंखों की एक बीमारी है ऑटोइम्यून यूवाइटिस. जो बच्चों से लेकर बड़ों तक किसी की भी आंखों को शिकार बना रही है. हेल्थ एक्सपर्ट की मानें तो यह बीमारी खासतौर पर युवाओं यानि 20 से 50 साल की उम्र में देखने को मिल रही है, जो कि खतरनाक है. हालांकि पहली बार ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज नई दिल्ली ने इस बीमारी को लेकर अहम रिसर्च की है, जिससे न केवल इसे पहचानना बल्कि इसका इलाज करना भी आसान हो जाएगा.
ऑटोइम्यून यूवाइटिस खुद से अचानक पैदा होती है और इसमें शरीर का इम्यून सिस्टम रक्षा करने के बजाय आंखों की हेल्दी सेल्स पर हमला कर देता है और उन्हें खत्म करने लगता है. इससे आंख में भयंकर इन्फ्लेमेशन और सूजन हो जाती है. आंखों में दर्द के साथ लाली आ जाती है, धुंधला दिखाई देने लगता है, लाइट की तरफ देखने में परेशानी होती है, नजर धीरे-धीरे घटने लगती है. आंखों के सामने कालापन या काले धब्बे दिखाई देते हैं. बता दें कि अगर इसका इलाज जल्दी न किया जाए तो यह पूरी तरह अंधा भी बना सकती है.
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एम्स ने की ये रिसर्च-स्टडी यूवाइटिस पर रिसर्च-स्टडी करने वाले एम्स के डॉ. रूपेश कुमार श्रीवास्तव और डॉ. रोहन चावला.
दिल्ली एम्स में बायोटेक्नोलॉजी विभाग और डिपार्टमेंट ऑफ ऑप्थेल्मोलॉजी ने मिलकर पहली बार ऑटोइम्यून यूवाइटिस को लेकर इतने बड़े स्तर पर स्टडी की है. इस बारे में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रूपेश कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि हमारे शरीर में दो तरह की सेल्स होती हैं, एक अच्छी वाली सेल्स और दूसरी वे टी17 सेल्स जिनकी मौजूदगी से इन्फ्लेमेशन की दिक्कत होती है. पहली बार एम्स ने लैब में देखा कि क्या आंखों में मौजूद फ्लूड में भी ये दो सेल्स होती हैं, तो पता चला कि हां होती हैं और ये उसी तरह काम करती हैं जैसे शरीर की कोई और ऑटो इम्यून डिजीज में काम करती हैं.
डॉ. रूपेश कहते हैं कि इसके लिए एम्स में आए डैमेज आंखों वाले मरीजों के फ्लूड से पहली बार सैंपल लिए गए और उनकी पूरी जांच की गई. जिसमें पता चला कि इस फ्लूड में वास्तव में इन्फ्लेमेशन बढ़ाने वाले टी17 या टी रेग सेल्स बढ़े हुए थे. इससे ये साबित हुआ कि यूवाइटिस भी अन्य ऑटो इम्यून बीमारियों की तरह ही बढ़ती है.
इस रिसर्च का क्या होगा फायदा?
इस बारे में ऑप्थेल्मोलॉजी विभाग में एडिशनल प्रोफेसर डॉ. रोहन चावला बताते हैं कि यह स्टडी कई मायनों में इस बीमारी के इलाज में फायदा पहुंचाएगी. इस स्टडी के दौरान एक चीज और भी देखी गई कि जो रिजल्ट आंख के फ्लूड में देखा गया है, क्या वह उस मरीज के ब्लड में भी देखा जा सकता है? क्या आंखों के फ्लूड की तरह ब्लड में भी टी सेल्स बढ़े होते हैं. तो इस स्टडी में पाया गया कि ब्लड में भी लगभग यही स्थिति देखने को मिली.
इसका फायदा ये होगा कि अब यूवाइटिस के डायग्नोस के लिए आंख का फ्लूड लेने की बाध्यता नहीं होगी, जो कि मुश्किल प्रक्रिया है. ब्लड सैंपल से भी इसका अनुमान लगाया जा सकता है. इसके अलावा बीमारी के लिए ड्रग का चुनाव करने में भी फायदा होगा और इलाज फायदेमंद हो रहा है या नहीं, इसका पता भी आसानी से लगाया जा सकेगा. यह यूवाइटिस को मॉनिटर करने में भी मदद करेगा.
डॉ. चावला कहते हैं कि यह प्राइमरी रिसर्च है, इसके आगे अभी और रिसर्च व स्टडी होने वाली हैं, जिससे इस कभी न खत्म होने वाली और अचानक पैदा हो जाने वाली बीमारी की रोकथाम के लिए पर्याप्त उपाय मिल सकेंगे.
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Tags: Aiims delhi, Aiims doctor, Eye DonationFIRST PUBLISHED : July 11, 2024, 19:58 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed