अतीश त्रिवेदी/लखीमपुर खीरी: छोटी काशी यानी गोला गोकर्णनाथ में भूतनाथ नाम से प्रसिद्ध अनोखा जुड़वां मंदिर और प्राचीन कुआं है. जहां सावन महीने में नाग पंचमी के बाद जो सोमवार पड़ता है, उसमें भूतनाथ मेला लगता है. यह मेला अतीत काल से लगता आया है. मेला आस्था और लोक संस्कृति का संगम है. यहां से जुड़ी लोक कथा श्रद्धालुओं को अपनी और आकर्षित करती है. श्रद्धालु भूतनाथ मंदिर में अपनी मनौती की गांठ बांधते हैं और मनोकामना पूर्ण होने पर गांठ खोलते हैं.
भूतनाथ मेले की अनोखी कहानी
एक आस्था पूर्ण किवदंती भी है कि लंकापति राजा रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिवजी रावण की कांवड़ में बैठकर लंका के लिए चले. चलने से पूर्व भगवान शिवजी ने शर्त रखी थी, यदि कहीं किसी स्थान पर रख दिया तो हम वहीं स्थापित हो जाएंगे. गोला पहुंचने पर भगवान शिवजी की माया से रावण को लघुशंका महसूस हुई. तो पशु चरा रहे एक चरवाहे को कांवड़ पकड़ा कर रावण नित्य कर्म से निवृत होने चला गया.
होती है भूतनाथ की पूजा अर्चना
शिवजी अपना भार बढ़ाकर यहां स्थापित हो गए. लौटकर रावण वापस आया तो देखा भगवान शिव को स्थापित हो चुके थे. यह देखकर रावण ने चरवाहे का पीछा किया तो वह भय से यहां कुएं में कूद गया और यह स्थान भूतनाथ के नाम से प्रसिद्ध हो गया. इसीलिए आज भी यहां सावन माह के आखिरी सोमवार को मेला लगता है. भगवान शिव के बाद भूतनाथ की पूजा अर्चना की जाती है.
मनोकामना पूरी होने पर खोली जाती है गांठ
भगवान शिव के मंदिर से करीब दो किलोमीटर की दूरी पर रेलवे लाइन किनारे वन क्षेत्र से सटे प्राकृतिक वातावरण में बाबा भूतनाथ का मंदिर है. यहां भव्य मेला लगता है,जो आस्था और लोक संस्कृति का परिचायक है. मेले में आए भक्त मंदिर और कुएं में गिट्टी फेंककर हू-हू की आवाजें बोलते हैं और पतावर में मनोकामना लेकर गांठ बांधते हैं. जिन श्रद्धालुओं की कामनाएं पूरी होती है वह गांठ खोलते हैं.
Tags: Ajab Gajab news, Local18, UP newsFIRST PUBLISHED : August 16, 2024, 17:00 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed