तोलोलिंग में चल रहा था जीत का जश्‍न अचानक जाने वाली थी सबकी जान लेकिन तभी

भारतीय जांबाजों ने तोलोलिंग की पीक पर तो सफलतापूर्वक कब्‍जा कर लिया था, लेकिन उनके लिए वहां एक नई मुसीबत इंतजार कर रही थी. इस मुसीबत के बीच एक जवान ने जैसे ही अपनी प्‍यास बुझाने के लिए बर्फ का गोला उठाया, तभी ... क्‍या थी जवानों के सामने मुसीबत और बर्फ का गोला उठाने के बाद क्‍या हुआ... जानने के लिए पढ़ें आगे...

तोलोलिंग में चल रहा था जीत का जश्‍न अचानक जाने वाली थी सबकी जान लेकिन तभी
25 years of Kargil war: तोलोलिंग की चोटियों पर बीते तीन दिनों से लगातार जारी युद्ध अब थम चुका था. राजपूताना राइफल्‍स के जांबाजों ने अपने पराक्रम और युद्ध कौशल से दुश्‍मन के हर एक सिपाही को उसके असली अंजाम तक पहुंचा दिया था. तोलोलिंग की चोटी पर भारतीय तिरंगा लहराने के बाद जवानों के चेहरे पर जीत की खुशी तो थी, पर शरीर अब थकान से चूर होने लगा था. जवानों के शरीर में अब इतनी भी ताकत नहीं बीच थी कि वह खड़े भी हो सके. जिंदगी अभी भी उनका इम्‍तहान ले रही थी. तोलोलिंग की लड़ाई का हिस्‍सा रह चुके कैप्‍टन अखिलेश सक्‍सेना बताते हैं कि तोलोलिंग पीक में जीत हासिल करने के बाद हम सभी को याद आया कि बीते तीन दिनों से चल रहे युद्ध के दौरान किसी की जवान के मुंह में अन्‍न का एक भी दाना नहीं गया है. जवानों की हताशा उस वक्‍त अधिक बढ़ गई, जब उन्‍होंने पानी पीने के लिए अपने थर्मस की तरफ हाथ बढ़ाया और उसके भीतर से एक बूंद पानी भी नहीं निकला. एक बारगी सबको लगा कि दुश्‍मन की गोली से तो बच गए, लेकिन कहीं खून से जान न चली जाए. यह भी पढ़ें: साहब! बच्‍चों की कसम, मैंने सफेद कपड़ों में लोगों को… कश्‍मीर से दिल्‍ली तक मच गया हड़कंप, छिड़ गई जंग… वंजू टॉपू पर अपनी यार्क को खोजने गए ताशी नामग्‍याल नामक एक चरवाहे ने पहली बार घुसपैठियों के भेष में आई पाकिस्‍तानी सेना के जवानों को कारगिल की चोटियों पर देखा था. इसके बाद, ताशी नामग्‍याल ने क्‍या किया, कैसे भारतीय सेना पीक पर बैठे दुश्‍मन तक पहुंची, जानने के लिए क्लिक करें. कैप्‍टन अखिलेश सक्‍सेना बताते हैं कि इसी बीच उनकी निगाह कुछ जवानों पर गई, जो प्‍यास बुझाने के लिए जमीन पर पड़ी बर्फ को मुंह में डालने वाले थे. वहां मौजूद अफसरों ने दौड़कर उन जवानों के हाथ पकड़ लिए. उन्‍हें बताया गया कि बर्फ यदि हलक के नीचे चली जाती तो एक झटके में उनकी जान चली जाती. दरअसल, बीते तीन दिनों से दोनों तरफ से जारी गोलाबारी का पूरा बारूद बर्फ की ऊपरी सतह पर मजा हुआ था. और इस वजह से बर्फ की ऊपरी सतह पूरी तरह से जहरीली हो चुकी थी. यह भी पढ़ें: जब पाकिस्‍तान को लगा ‘मेघदूत’ का थप्‍पड़, हिम्‍मत जुटाने में लग गए 15 साल, फिर चली ‘बद्र’ की नाकाम चाल, नतीजा… आपरेशन मेघदूत में करारी हार झेलने के बाद बौखलाए पाकिस्‍तानी जनरल मिर्जा असलम वेग ने 1987 में कारगिल युद्ध की पृष्‍ठभूमि लिख दी थी. जनरल मिर्जा असलम वेग की लिखी इसी इबारत को परवेज मुशर्रफ ने 1999 में आपरेशन बद्र के तौर पर आगे बढ़ाया था. क्‍या है ऑपरेशन मेघदूत की कहानी, जानने के लिए क्लिक करें. हमने अपने जवानों की जान की फिक्र करते हुए उन्‍हें बर्फ खाने से तो रोक दिया, लेकिन हम इस बात को लेकर अभी भी परेशान थे कि अपने जवानों को भूख से कैसे बचाया जाए. उन्‍होंने बताया कि तात्‍कालिक राहत के लिए हमने बर्फ को दो से तीन फीट नीते तक खोदा और उसके नीचे मौजूद बर्फ को बाहर निकालकर चूसना शुरू कर दिया. कई घंटे हम लोगों ने इस बर्फ को चूस कर खुद की जान बचाई. Tags: Indian army, Indian Army Heroes, Indian Army Pride, Kargil day, Kargil war, Know your ArmyFIRST PUBLISHED : July 26, 2024, 10:32 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed