पद स्वीकार करके कोई पाप किया हैवकील ने ऐसा क्या कहा जो जज ने की ये टिप्पणी
पद स्वीकार करके कोई पाप किया हैवकील ने ऐसा क्या कहा जो जज ने की ये टिप्पणी
Judge VS Advocate Argument News: मद्रास हाईकोर्ट में आरोपी के वकील मोहन ने कहा कि यह वकील का विशेषाधिकार है, वह भूल सकता है लेकिन आपके ऑफिस की प्रकृति के कारण न्यायाधीश ऐसा नहीं कर सकते. यह एक बोझ है. न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम ने जवाब दिया कि क्या हमने न्यायाधीश का पद स्वीकार करके कोई पाप किया है? हम भी इंसान हैं. इसके बाद न्यायाधीश ने वकील से आग्रह किया कि वे मामले के मैरिट के आधार पर बहस करने पर अपना ध्यान केन्द्रित करें.
चेन्नई. मद्रास हाईकार्ट में मंगलवार को एक रिटायर पुलिस अधिकारी के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग केस को रद्द करने को लेकर कोर्टरूम में जोरदार बहस देखने को मिली. हाईकोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग का पहले तो केस रद्द करने के फैसला लिया लेकिन दो दिन बाद दोबारा से केस की सुनवाई का आदेश दिया. इस पर आरोपी का वकील भड़क गया और जज के साथ बहस देखने को मिली. आपको बता दें कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने सेवानिवृत्त भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी जफर सैत के खिलाफ धन शोधन का मामला दर्ज किया था. 21 अगस्त को न्यायमूर्ति एस.एम. सुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति वी. शिवगनम की पीठ ने सैत के खिलाफ मामले में ईडी की शिकायत को खारिज कर दिया था.
हाईकोर्ट ने पहले फैसले के दो दिन बाद यानी 23 अगस्त को, उसी पीठ ने अपने 21 अगस्त के आदेश को वापस ले लिया और मामले की मैरिट के आधार पर फिर से सुनवाई करने का फैसला लिया. इस पर रिटायर आईपीएस सैत के वकील टी मोहन ने इस घटनाक्रम पर कड़ी आपत्ति जताई. मोहन ने मंगलवसार को बेंच से कहा कि 23 अगस्त को आपके द्वारा इस बारे में कोई संकेत नहीं दिया गया कि आपने अपना मन क्यों बदला? इस पर जस्टिस सुब्रमण्यम ने जवाब दिया कि आप अपने जूनियर से पूछिए, हमने उससे कहा था. हमारे सामने हर दिन 150 मामले लिस्ट होते हैं. हम सब कुछ याद नहीं रख सकते. क्या यह अनुचित नहीं है कि आप हमसे पूछें कि आपने उस हफ्ते उस दिन क्या कहा था? अगर हम आपसे यही बात पूछें कि आपने पिछले सप्ताह क्या कहा था… तो क्या आपको याद होगा?
जब जज ने वकील से पूछा, आपके मन में कुछ चल रहा है
इस पर आरोपी के वकील मोहन ने कहा कि यह वकील का विशेषाधिकार है, वह भूल सकता है लेकिन आपके ऑफिस की प्रकृति के कारण न्यायाधीश ऐसा नहीं कर सकते. यह एक बोझ है. न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम ने जवाब दिया कि क्या हमने न्यायाधीश का पद स्वीकार करके कोई पाप किया है? हम भी इंसान हैं. इसके बाद न्यायाधीश ने वकील से आग्रह किया कि वे मामले के मैरिट के आधार पर बहस करने पर अपना ध्यान केन्द्रित करें. न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम ने कहा कि आपके (मोहन) मन में शायद कुछ और चल रहा है जो आप नहीं कह रहे हैं. हम समझते हैं लेकिन कृपया मैरिट के आधार पर बहस करें.
क्या है मामला?
सैत के खिलाफ मामले में आरोप है कि उन्होंने 2011 में अवैध रूप से तमिलनाडु हाउसिंग बोर्ड की जमीन हासिल की. सतर्कता और भ्रष्टाचार निरोधक निदेशालय (डीवीएसी) द्वारा सैत के खिलाफ इस मामले में दर्ज भ्रष्टाचार के मामले को मद्रास हाईकोर्ट ने 2019 में रद्द कर दिया था. इसके बाद सैत ने इस मामले में ईडी की शिकायत को भी रद्द करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. 21 अगस्त को न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति शिवगणम ने प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ईसीआईआर) को यह देखते हुए रद्द कर दिया कि पूर्ववर्ती मामला (डीवीएसी मामला) पहले ही रद्द किया जा चुका है.
हालांकि, 23 अगस्त को न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति आर शक्तिवेल की पीठ को प्रवर्तन निदेशालय से यह सवाल पूछने का मौका मिला कि संबंधित अपराध की प्राथमिकी रद्द कर दिए जाने के कारण धन शोधन के मामले तार्किक निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले ही खत्म हो गए.
Tags: Directorate of Enforcement, Madras high courtFIRST PUBLISHED : September 3, 2024, 18:12 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed