कहता है कारगिल: मेजर अमरिंदर के बिना क्यों असंभव थी तोलोलिंग हंप रॉकी नॉब और प्वाइंट 5140 पर जीत
कहता है कारगिल: मेजर अमरिंदर के बिना क्यों असंभव थी तोलोलिंग हंप रॉकी नॉब और प्वाइंट 5140 पर जीत
Kahta Hai Kargil: मैं कारगिल आज आपको ऐसे शूरवीर की कहानी सुनाने जा रहा हूं, जिसने तोलोलिंग, हंप, रॉकी नॉब और प्वाइंट 5140 की लड़ाई में दुश्मन के छक्के छुडा दिए थे. इस शूरवीर की अचूक आर्टिलरी फायरिंग का नतीजा था कि दुश्मन भारतीय जांबाजों के सामने कहीं टिक नहीं पाया.
Kahta Hai Kargil: मैं कारिगल… आज बात एक ऐसी शूरवीर की करुंगा, जो एक नहीं, बल्कि चार-चार लड़ाइयों की जीत का सूत्रधार बना. यह कहना गलत नहीं होगा कि इन चारों लड़ाइयों की जीत में इस बहादुर योद्धा की अहम भूमिका रही है. दरअसल, मैं बात कर रहा हूं 41वीं फील्ड आर्टिलरी ब्रिगेड के मेजर अमरिंदर सिंह कसाना की.
मुझे आज भी याद है कि ऑपरेशन विजय के दौरान मेजर अमरिंदर सिंह कसाना की सटीक आर्टिलरी फायरिंग. इसकी वजह से ही 2 राजपूताना राइफल्स, 18 ग्रिनेडियर्स और 13 जम्मू और कश्मीर राइफल्स ने एक के बाद एक तोलोलिंग, हंप, रॉकी नॉब और प्वाइंट 5140 पर भारतीय सेना का पताका फहराया था.
हमले के दौरान बैटरी कमांडर की भूमिका में थे मेजर अमरिंदर
जैसा कि आपको पता ही है कि 1999 की सर्दियों में दुश्मन सरहद पार कर मेरी तमाम चोटियों पर कब्जा जमा कर बैठ गया था. दुश्मन के नापाक इरादों की भनक लगते ही भारतीय सेना ने ऐसा जवाबी हमला किया बर्फीली चोटियों पर बैठे पाकिस्तानी सैनिक दुम दबाकर भाग निकले.
एक ऐसा ही सिलसिला द्रास सेक्टर के तोलोलिंग फीचर पर भी जारी थी. तोलोलिंग फीचर को शत्रु सैनिकों से खाली कराने की जिम्मेदारी 2 राजपूताना राइफल्स को सौंपी गई थी. वहीं, बैटरी कमांडर मेजर अमरिंदर को आर्टिलरी फायरिंग की मदद से दुश्मन के ठिकानों को तबाह करने की टास्क सौंपा गया था.
मेजर के अचूक निशाने से दुश्मनों के खेमे में खलबली
तोलोलिंग फीचर पर मौजूद दुश्मन का खात्मा करने के लिए भारतीय सेना ने भले ही ऑपरेशन विजय का आगाज कर दिया था, लेकिन मेरे जहन में एक सवाल लगातार कौंध रहा था कि मेरे जांबाज तोलोलिंग तक पहुंचेंगे कैसे? क्योंकि, वहां तक पहुंचने का रास्ता सीधे दुश्मन के मशीनगन की जद में था.
दुश्मन की गोलियों से बचने के लिए ढलान पर पड़े कुछ पत्थरों के अलावा कुछ भी नहीं था. जल्द ही मेरे इन सवालों का जवाब मेजर अमरिंदर ने दे दिया. मेजर की तोपों से निकले गोलों ने दुश्मन को झुकने के लिए मजबूर कर दिया. इसी का फायदा उठाकर राजपूताना राइफल्स के शूरवीर आगे बढ़ते गए.
तोलोलिंग तक सीमित नहीं रही मेजर के तोपों की गर्जना
तोलोलिंग फीचर पर दुश्मन से सीधी लड़ाई के दौरान राजपूताना राइफल्स के जवान वायरलेस सेट से दुश्मन की लोकेशन भेजते और मेजर अमरिंदर निशाने पर बेहद सटीक गोलाबारी कर ठिकाने को तबाह कर देते. देखते ही देखते राजपूताना राइफल्स की बहादुरी और मेजर अमरिंदर के अचूक निशाने ने तोलोलिंग पर भारतीय सेना का विजय पताका फहरा दिया.
मेजर अमरिंदर की तोपों का कहर सिर्फ तोलोलिंग तक ही सीमित नहीं था. 12/l3 जून की रात उनकी तोपों ने तोलोलिंग में कहर बरपाया था. 13/l4 जून की रात हंप में, l6/17 जून की रात रॉकी नॉब में और 19/20 जून की रात प्वाइंट 5140 पर दुश्मन के ठिकानों को तबाह व बर्बाद करने में मेजर अमरिंदर के तोपों ने अहम भूमिका निभाई. आग उगलते तोप भारतीय सेना की जीत की बुनियाद बना गए.
जवानों को बचाने के लिए खुद माइन फील्ड में घुस गए थे मेजर
तोलोलिंग पर हमले के लिए निकली भारतीय सेना के जवान, पाकिस्तान के बिछाए माइन फील्ड में फंस गए थे. इस घटना में कुछ जवान वीरगति को प्राप्त हो गए और कई गंभीर रूप से जख्मी हो गए. ऐसे वक्त में, मेजर अमरिंदर ने अपने प्राणों की परवाह नहीं की और जवानों को बचाने के लिए माइन फील्ड में दाखिल हो गए.
तोलोलिंग, हंप, रॉकी नॉब और प्वाइंट 5140 पर हुए ऑपरेशन के दौरान, मेजर अरिवंदर सिंह कसाना ने असाधारण वीरता और कर्तव्य का प्रदर्शन किया. उन्होंने प्रभावी ढंग से तोपखाने का नेतृत्व किया. मेजर अरिवंदर सिंह कसाना के अद्भुत युद्ध कौशल और साहस को देखते हुए युद्धोपरांत उन्हें ‘वीर चक्र’ से सम्मानित किया गया था.
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