कभी बाला साहेब के स्वर्णिम काल में पहली बार टूटी शिवसेना उद्धव काल में खंड-खंड होती दिख रही!
कभी बाला साहेब के स्वर्णिम काल में पहली बार टूटी शिवसेना उद्धव काल में खंड-खंड होती दिख रही!
बाला साहेब के सामने ही टूटनी शुरू हो गई थी शिवसेना. करीबियों ने समय-समय पर साथ छोड़ा तो भतीजे ने बगावत करके नई पार्टी बना ली. उद्धव को भी बाला साहेब के ही खास एकनाथ ने दी है चुनौती.
कहते हैं एकनाथ शिंदे कभी ऑटोरिक्शा चलाया करते थे. लेकिन, शिवसेना से जुड़ने के बाद समय का पहिया ऐसा बदला कि वह ठाकरे परिवार के बाद पार्टी में सबसे मजबूत नेताओं में एक हो गए. आज वही शिंदे प्राइवेट प्लेन में शिवसेना के 35 विधायक लेकर महाराष्ट्र से गुजरात तो गुजरात से गुवाहाटी घूम रहे हैं. कभी शिवसेना से बगावत करने वाले नेता मजबूर दिखते थे, आज शिंदे मजबूत दिख रहे हैं. जिस मातोश्री के इशारे पर शिवसेना के विधायक सब कुछ करने को राजी रहते थे. आज उसके विधायक ही मातोश्री की पहुंच से दूर दिख रहे हैं.
शिंदे प्रकरण पर बात करने से पहले थोड़ा पीछे चलते हैं. साल 1990. कहा जाता है कि बालासाहेब ठाकरे का वो स्वर्णिम दौर चल रहा था. महाराष्ट्र विधानसभा में शिवसेना के 52 विधायक चुनकर आए. पार्टी विधानसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बन गई थी. बालासाहेब ठाकरे ने मनोहर जोशी को विपक्ष का नेता बना दिया. ये वो समय था जब बाला साहेब के इशारों पर पार्टी के कार्यकर्ता काम करते थे. लेकिन, उस समय उनके एक खास नेता ने ही इस बात पर उनसे बगावत कर ली.
जोशी को अहमियत मिलने पर भुजबल ने छोड़ा था साथ
बाला साहेब और शिवसेना को ये पहला झटका था. पार्टी क्या दूसरी पार्टी का कोई नेता भी ये नहीं सोच सकता था कि कोई बाला साहेब से बगावत करेगा. लेकिन, उस विधायक ने 9 दूसरे विधायकों के साथ पार्टी छोड़ दी और कांग्रेस ज्वाइन कर ली. उस विधायक का नाम छगन भुजबल है. वह आज एनसीपी में हैं और महाराष्ट्र सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं.
भुजबल विपक्ष का नेता बनना चाहते थे और बाला साहेब ने जोशी को बना दिया था. भुजबल उससे पहले बाला साहेब के ‘आशीर्वाद’ से मुंबई के मेयर रह चुके थे. छगन भुजबल जब पार्टी छोड़कर गए थे तो बाला साहेब ने उन्हें ‘लखोबा लोखंडे’ कहा था. यह मशहूर मराठी नाटक ‘तो मी नव्हेच’ का एक बदनाम पात्र था. वह पात्र कई शादी करता है.
उस समय शिवसेना से बगावत करना आसान नहीं था. लेकिन, भुजबल को शरद पवार का समर्थन हासिल था. ऐसे में शिवसैनिक लाख कोशिशों के बाद भी उन्हें नुकसान नहीं पहुंचा पाए. हालांकि, कुछ रिपोर्ट्स में ये जरूर कहा जाता है कि उनके घर को जलाने की कोशिश हुई थी. लेकिन, भुजबल को पवार का साथ मिला. बाद में पवार ने कांग्रेस तोड़कर अपनी पार्टी बनाए तो वह उनके साथ गए और 2008 में डिप्टी सीएम भी बने थे.
जिसे मुख्यमंत्री बनाया, उसी ने कर दी बगावत
नारायण राणे. कहा जाता है कि वह शिवसेना में एकमात्र ऐसे नेता रहे जिन्होंने फर्श से अर्श तक का सफर देखा. वह शिवसेना में एक शाखा के प्रमुख से आगे बढ़ते गए. बहुत कम समय में वह बाल ठाकरे के नजदीक पहुंच गए. चेंबूर से कॉर्पोरेटर रहे और कोंकण क्षेत्र में एक मजबूत स्तंभ बनते गए.
नारायण राणे अपनी आक्रामक शैली के कारण लोगों के बीच जगह बनाने लगे तो बाला साहेब की भी पसंद बनते गए. पार्टी ने उन्हें राज्य सरकार में मंत्री बनाया और 1999 में मुख्यमंत्री तक बनाया. हालांकि, उनका कार्यकाल 8 महीने का ही रहा. बाद में 2003 में वह पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष भी बने. लेकिन, 2005 में उन्होंने उद्धव ठाकरे को ही चुनौती दे दी और पार्टी ने उन्हें निष्कासित कर दिया. पार्टी छोड़ते वक्त नारायण राणे ने आरोप लगाया था कि शिवसेना में टिकट और पद उम्मीदवारों को बेचे जा रहे हैं. इसके बाद वह कांग्रेस में चले गए.
बाला साहेब के रास्ते पर चले राज ठाकरे
कहा जाता है कि राज ठाकरे नारायण राणे से काफी प्रभावित रहते थे. वहीं, उद्धव ठाकरे के हाथ में पार्टी के जाने से नाराज भी रहते थे. राज ठाकरे ने पार्टी छोड़ते वक्त कहा था, ‘उद्धव ठाकरे में नेतृत्व के गुणों का अभाव है.’ कहा जाता है कि राज ठाकरे, महाराष्ट्र की राजनीति में उद्धव से ‘वरिष्ठ’ थे. लेकिन, उद्धव ने पार्टी की कमान हाथ में आने के बाद उन्हें सभी महत्वपूर्ण कामों से अलग कर दिया. यहां तक कि टिकट बंटवारे में भी उनकी रजामंदी नहीं ली गयी.
शिवसेना से अलग होने के बाद राज ठाकरे ने बाला साहेब के स्टाइल में आक्रामक रुख अख्तियार किया, लेकिन वह अब तक सफल नहीं हो पाए हैं. उनकी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना लगातार संघर्ष करती जरूर दिखती है. 2009 के विधानसभा चुनाव में उन्हें 13 सीट भी मिली थीं, लेकिन शुरुआती सफलता के बाद वह लड़खड़ाते दिख रहे हैं.
और फिर एकनाथ शिंदे का वार
अब 2022 में एकनाथ शिंदे ने शिवसेना को ऐसा झटका दिया है, जिससे पार्टी पर ठाकरे परिवार की पकड़ पर ही सवाल उठने लगे हैं. शिंदे 35 विधायकों के साथ फोटो क्लिक करा रहे हैं तो दावा कर रहे हैं कि उनके पास 46 विधायक हैं. ऐसे में उद्धव की कुर्सी ही नहीं पार्टी सुप्रीमो पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं. एकनाथ ने शिवसेना के विधायकों को एकसाथ कर लिया है और ये शिवसेना के लिए अब तक की सबसे बड़ी चुनौती साबित होती दिख रही है.
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Tags: Maharashtra Politics, Shiv sena, Shiv Sena MLA, Uddhav thackerayFIRST PUBLISHED : June 22, 2022, 15:30 IST