20 साल पहले यूपी के इस जिले में भेड़ियों ने 130 मासूमों को बनाया था निवाला

Balrampur News: उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले में 20 साल पहले भेड़ियों ने 130 से अधिक मासूमों को निवाला बनाया था. वरिष्ठ पत्रकार राकेश सिंह बताते हैं कि मानव और वन्य जीव संघर्ष की ऐसी दास्तान शायद ही विश्व में कहीं और देखने को मिलती हो, जहां 130 से अधिक मासूम आदमखोर भेड़ियों का निवाला बन गए थे.

20 साल पहले यूपी के इस जिले में भेड़ियों ने 130 मासूमों को बनाया था निवाला
हाइलाइट्स बहराइच समेत तराई के इलाकों में भेड़ियों का आतंक नया नहीं है 20 साल पहले बलरामपुर जिले में भेड़ियों ने 130 मासूमों को बनाया था निवाला बलरामपुर. बीस साल बाद एक बार फिर भारत-नेपाल सीमा से सटी तराई की धरती आदमखोर भेड़ियों के आतंक से थर्रा रही है. सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर 20 साल बाद फिर क्यों लौटा तराई में भेड़िए का आतंक? दरअसल, बहराइच समेत तराई के इलाकों में भेड़ियों का आतंक नया नहीं है. 20 साल पहले वह दौर था जब बलरामपुर जिले के तराई क्षेत्र में कोई बच्चा रोता था तो मां कहती थी कि ‘चुप हो जा बेटा नहीं तो भेड़िया आ जाएगा’.  तराई के इलाके में 20 वर्ष पहले की यह दास्तान आज भी पुराने लोगों के जेहन में दहशत पैदा करती है. उस वक्त  बलरामपुर के सोहेलवा वन्य जीव प्रभाव से सटे 125 गांव भेड़िए के आतंक से थर्रा रहे थे.  लगातार ढाई वर्षों तक चले आतंक के दौरान भेड़ियों ने 130 से अधिक मासूम बच्चों को अपना निवाला बना लिया था और 150 से अधिक मासूमों को घायल कर दिया था. 10 बच्चे ऐसे भी थे जिनका शिकार भेड़ियों ने किया, लेकिन उनके शव बरामद नहीं हो सके थे. बलरामपुर के तराई क्षेत्र में नरभक्षी भेड़ियों का खूनी खेल नवंबर 2002 से शुरू होकर जून 2005 तक चलता रहा. नेपाल सीमा से सटे पांच थाना क्षेत्रों के सैकड़ो गांवों में नरभक्षी का आतंक इस तरह फैला था कि शाम होते ही लोग अपने बच्चों को घरों में कैद कर लेते थे. अंधेरा होते ही जागते रहो की प्रतिध्वनि दूर तक सुनाई पड़ने लगती थी. ढाई वर्ष तक चला था भेड़ियों का आतंक बेखौफ भेड़िया माताओं की गोद से दूध पीते बच्चों को छीन कर अपना निवाला बनाता था. नेपाल की पहाड़ियों से उतरकर सोहेलवा के जंगलों से होता हुआ तराई क्षेत्र में बहने वाला खरझार नाला तथा इसके आसपास का भौगोलिक क्षेत्र नरभक्षी भेड़िए तथा उसके समूह का निवास स्थान था. लगभग 25 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के 125 गांव भेड़ियों के आतंक से प्रभावित थे. भेड़िया बाघ की तरह आरक्षित प्रजाति के श्रेणी एक का लुप्तप्राय वन्य जीव है, जो नदी अथवा नाले के रेतीली क्षेत्र में मांद बनाकर रहता है. माह नवंबर 2002 में भेड़िए ने बलरामपुर के महाराजगंज तराई क्षेत्र के शांति नगर गांव में मासूम बच्चे को अपना पहला निवाला बनाया था. इसी माह में एक और बच्चे की जान भेड़िए ने ले ली थी जबकि एक अन्य मासूम को हमले में घायल कर दिया था. दिसंबर 2002 में भेड़िए के हमले में एक मासूम की मौत हुई थी जबकि पांच अन्य मासूम घायल हुए थे. वर्ष 2003 में पूरा तराई क्षेत्र भेड़ियों के लगातार हमले से दहशत में आ गया था.  वर्ष 2003 के अलग-अलग महीनों में नरभक्षी भेड़ियों के हमले में 41 मासूम बच्चों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था, जबकि 46 बच्चे घायल हो गए थे. भेड़िए का आतंक वर्ष 2004 और 2005 में भी लगातार चलता रहा. भेड़ियों को मारने के लिए उतरी गई थी शार्प शूटर्स की फ़ौज भेड़िए के आतंक को खत्म करने के लिए शार्प शूटरों की एक लंबी फौज तराई इलाके में तैनात की गई थी. वन विभाग के शूटर भी लगातार भेड़ियों के आतंक को कम करने के लिए क्षेत्र में दिन-रात गश्त करते रहे.  जून 2005 में शार्प शूटरों की फौज ने आदमखोर भेड़ियों के कुनबे को खत्म कर तराई क्षेत्र में उनके आतंक को समाप्त किया था. वरिष्ठ पत्रकार राकेश सिंह बताते हैं कि मानव और वन्य जीव संघर्ष की ऐसी दास्तान शायद ही विश्व में कहीं और देखने को मिलती हो, जहां 130 से अधिक मासूम आदमखोर भेड़ियों का निवाला बन गए थे और लगभग डेढ़ सौ मासूम बच्चे भेड़ियों के हमले में घायल हुए थे. भारत- नेपाल सीमा से सटे हर्रैया, ललिया,  महाराजगंज तराई और तुलसीपुर थाना क्षेत्र के 125 गांव आज भी भेड़ियों के आतंक की गवाही देते हैं. भेड़िये का नाम सुनते ही रो पड़ती हैं सुनीता 20 वर्ष पूर्व भौगोलिक परिस्थितियां भिन्न थी. गांव में प्राय: फूस के मकान होते थे. पहाड़ी नाले और रेतीले स्थान में भेड़िए को उनके मांद बना कर रहने में आसानी थी. महाराजगंज तराई थाना क्षेत्र के सुदर्शनजोत गांव की रहने वाली सुनीता आज भी 20 वर्ष पुराने उस वाकये को याद कर रोने लगती है, जब आदमखोर भेड़िया उनकी गोद में सो रही 3 वर्षीय पुत्री आशा को पलक झपकते अपने जबड़े में दबाकर नौ दो ग्यारह हो गया था. थोड़ी देर बाद गन्ने के खेत में उस मासूम बच्ची का क्षत-विक्षत शव बरामद हुआ था. आदमखोर भेड़ियों की चर्चा होते ही आज भी तराई क्षेत्र के वे लोग सहम उठते है, जिन्होंने भेड़ियों के आतंक का वह दौर देखा था. बहराइच में हो रही घटनाओं को लेकर लोग चिंता भी व्यक्त करते हैं और आशंका भी कि भेड़िए का आतंक कहीं एक बार फिर न उनके दरवाजे पर दस्तक देने लगे. 20 वर्ष पहले और आज की परिस्थितियों में अंतर है, लेकिन सवाल आज फिर उठ खड़ा हुआ है कि आखिर 20 साल बाद तराई क्षेत्र में आदमखोर भेड़ियों का आतंक कैसे लौट आया? Tags: Balrampur news, UP latest newsFIRST PUBLISHED : September 2, 2024, 16:13 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed