Explainer : क्या हैं पसमांदा मुस्लिम क्यों मोदी ने चाहते हैं इन पर फोकस
Explainer : क्या हैं पसमांदा मुस्लिम क्यों मोदी ने चाहते हैं इन पर फोकस
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक मीटिंग में जब ये कहा कि मुस्लिमों में भी सोशल इंजीनियरिंग की जरूरत है. उन्होंने इसके साथ ही पसमांदा मुस्लिमों के विकास पर फोकस करने की बात की तो देश में मुस्लिमों के इस तबके को लेकर भी एक बहस छिड़ गई. क्या आप जानते हैं कि पसमांदा मुस्लिम कौन होते हैं, क्यों देश में उनके कई संगठन अपनी आवाज उठाकर मुस्लिम धर्म में भेदभाव और जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए सामाजिक समीकरण ढूंढने के साथ पसमांदा मुस्लिमों पर फोकस करने की जरूरत पर जोर दिया है. कौन होते हैं पसमांदा मुस्लिम. मुस्लिम समाज में क्यों उन्हें भी किसी ज्योतिबा फूले या अंबेडकर जैसे नेता की जरूरत है. दरअसल देश में मुस्लिमों की कुल आबादी के 85 फीसदी हिस्से को पसमांदा कहा जाता है, यानि वो मुस्लिम जो दबे हुए हैं, इसमें दलित और बैकवर्ड मुस्लिम आते हैं, जो मुस्लिम समाज में एक अलग सामाजिक लड़ाई लड़ रहे हैं. उनके कई आंदोलन हो चुके हैं.
एशियाई मुस्लिमों में जाति व्यवस्था उसी तरह लागू है, जिस तरह भारतीय समाज में. भारत में रहने वाले मुस्लिमों में 15 फीसदी उच्च वर्ग या सवर्ण माने जाते हैं, जिन्हें अशरफ कहते हैं लेकिन इसके अलावा बाकि बचे 85 फीसदी अरजाल और अल्ताफ दलित और बैकवर्ड ही माने जाते हैं. इनकी हालत मुस्लिम समाज में बहुत अच्छी नहीं है. मुस्लिम समाज का क्रीम तबका उन्हें हेय दृष्टि से देखता है, वो आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक हर तरह से पिछले और दबे हुए हैं. इस तबके को भारत में पसमांदा मुस्लिम कहा जाता है.
सवाल – पसमांदा का मतलब क्या है?
– पसमांदा मूल तौर पर फारसी का शब्द है, जिसका मतलब होता है, वो लोग जो पीछे छूट गए हैं, दबाए गए या सताए हुए हैं. दरअसल भारत में पसमांदा आंदोलन 100 साल पुराना है. पिछली सदी के दूसरे दशक में एक मुस्लिम पसमांदा आंदोलन खड़ा हुआ था.
इसके बाद भारत में 90 के दशक में फिर पसमांदा मुसलमानों के हक में दो बड़े संगठन खड़े किए गए. ये थे आल इंडिया यूनाइटेड मुस्लिम मोर्चा,जिसके नेता एजाज अली थे. इसके अलावा पटना के अली अनवर ने आल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महज नाम का संगठन खड़ा किया. ये दोनों संगठन देशभर में पसमांदा
मुस्लिमों के तमाम छोटे संगठनों की अगुवाई करते हैं. हालांकि कि दोनों को ही मुस्लिम धार्मिक नेता गैर इस्लामी करार देते हैं. पसमांदा मुस्लिमों के तमाम छोटे संगठन उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में ज्यादा मिल जाएंगे.
सवाल – दक्षिण एशिया में क्या मुस्लिमों में भी भेदभाव और ऊंच नीच?
– ये हकीकत है कि दक्षिण एशियाई मुल्कों में आमतौर पर सभी मुस्लिम धर्म बदलकर इस धर्म में आए हैं लेकिन वो जिस जाति और वर्ग से आए, उन्हें मुस्लिम होने के बावजूद उसी कास्ट या वर्ग का आज भी समझा जाता रहा है. आप कह सकते हैं कि हिंदुओं की ही तरह दक्षिण एशियाई मुल्कों के मुस्लिमों में वर्ग व्यवस्था औऱ जातिवाद बरकरार है. इन मुस्लिमों का आमतौर पर मानना है कि उनकी उनके धर्म में ही उपेक्षा की जाती रही है. इनके संगठन पसमांदा मुस्लिमों के लिए आरक्षण की मांग भी करते रहे हैं.
कहा जा सकता है कि जिस जातिवादी वर्ण व्यवस्था की शिकार हिंदू सोसायटी पूरे दक्षिण एशिया में नजर आती है और उन्हें इससे संबंधित कुरीतियां बीमारी की तरह लगी हुई हैं, वैसी ही मुस्लिमों में भी हैं.
सवाल – मुस्लिम वर्ण व्यवस्था किन तीन मुख्य वर्गों में बंटी है?
– कहा जा सकता है कि भारतीय मुस्लिम भी जाति आधारित व्यवस्था के शिकार हैं. वो आमतौर पर तीन मुख्य वर्गो और सैकड़ों बिरादरियों में बंटे हुए हैं. जो सवर्ण या उच्च जाति के मुस्लिम हैं वो अशरफ कहे जाते हैं, जिनका ओरिजिन पश्चिम या मध्य एशिया से है, इसमें सैयद, शेख, मुगल, पठान आदि लोग आते हैं और भारत में जिन सवर्ण जातियों से लोग मुस्लिम बने, उन्हें भी उच्च वर्ग में शुमार किया जाता है, इन्हें आज भी मुस्लिम राजपूत, तागा या त्यागी मुस्लिम, चौधरी या चौधरी मुस्लिम, ग्रहे या गौर मुस्लिम, सैयद ब्राह्णण के तौर पर जाने जाते हैं, उन्हें हिंदुओं की तरह मुस्लिम ब्राह्णण माना जाता है.
सवाल – सैयदिज्म का मतलब क्या है?
– मुस्लिमों में सामाजिक असमानता को सैयदिज्म के तौर पर कहा जाता है. कई तरह के आंदोलन इस वर्चस्व और जातिवादी या वर्णवादी भेदभाव के खिलाफ मुस्लिमों में अल्ताफ (बैकवर्ड मुस्लिम) और अरजाल (दलित मुस्लिमों) द्वारा चलाए गए. ये आंदोलन तयशुदा तरीके से 20 सदी की शुरुआत से देश में शुरू हो चुके थे.
सवाल – कितने सवर्ण मुस्लिम देश में हैं?
– जैसा कि ऊपर भी उल्लेख किया जा चुका है कि देश की मुस्लिम आबादी में 15 फीसदी सवर्ण मुसलमान हैं बाकि सभी बैकवर्ण और दलित या ट्राइबल मुस्लिमों में आते हैं.
सवाल – इसे लेकर कौन से मुख्य आंदोलन चले?
– 20 सदी के दूसरे सदी में इसे लेकर चलने वाले आंदोलन को मोमिन आंदोलन कहा गया. जबकि 90 के दशक में राष्ट्रीय स्तर पर कई बड़ी संस्थाओं ने पिछले और दलित मुस्लिमों की आवाज उठानी शुरू की. 90 के दशक में डॉक्टर एजाज अली और अली अनवर के दमदार संगठनों के अलावा शब्बीर अंसारी ने भी आल इंडिया मुस्लिम ओबीसी आर्गनाइजेशन खड़ा किया था. शब्बीर महाराष्ट्र से ताल्लुक रखते हैं.
सवाल – क्या इस पर किताबें भी लिखी गई हैं?
– इस पर दो किताबें लिखी गई हैं जो बहुत विस्तार से भारतीय मुस्लिमों में दलितों और बैकवर्ड की स्थिति के बारे में बताती हैं और उसमें सुधार की पैरवी करती हैं. ये किताबें हैं अली अनवर की मसावत की जंग (2001) और मसूद आलम फलाही की हिंदुस्तान में जात पात और मुसलमान (2007). इन किताबों में मुस्लिम समाज में किस तरह जात पात का बोलबाला और असर है, उसके बारे में बताया गया है.
सवाल – क्या मुस्लिम संगठनों में उच्च वर्ग का वर्चस्व है?
– ये किताबें ये भी कहती हैं कि किस तरह अशरफ मुस्लिमों ने देश के तमाम मुस्लिम संगठन पर वर्चस्व बनाकर रखा हुआ है या देश के आला मुस्लिम संगठनों में उनका प्रतिनिधित्व जरूरत से ज्यादा है. इसमें जमात ए उलेमा ए हिंद, जमात ए इस्लामी, आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, इदार ए शरिया आदि शामिल हैं. यही नहीं सरकार द्वारा चलायी जाने वाली संस्थाओं अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, जामिया मिलिया इस्लामिया, मौलान आजाद एजुकेशन फाउंडेशन, उर्दू एकेडमी और सत्ताशीन मुस्लिमों में भी अशरफों की तादाद ही ज्यादा है.
सवाल – किस तरह मुस्लिम में भी भेदभाव?
– ये किताबें बताती हैं कि किस तरह मुस्लिम समाज में जाति आधारित कई परतें हैं और जाति के आधार पर भेदभाव होता है. इसमें नीची जाति वाले मुस्लिमों को हेय दृष्टि से देखा जाता है. यहां तक कि ये व्यवस्था नमाज पढ़ते समय मस्जिदों और धार्मिक जगहों पर भी नजर आती है, जहां निजी जाति वाले मुस्लिमों को पीछे की पंक्तियां मिलती हैं. कब्रिस्तान में भी यही व्यवस्था लागू है. मेलमिलाप और समारोहों में भी ये भेदभाव नजर आता है.
सवाल – कौन से मुसलमान समुदाय में बैकवर्ड, दलित और आदिवासियों में आते हैं?
– कुंजरे (राइन), जुलाहा (अंसारी), धुनिया (मंसूरी), कसाई (कुरैशी), फकीर (अल्वी), हज्जाम (सलमानी), मेहतर (हलालखोर), ग्वाला (घोसी), धोबी (हवाराती), लोहार-बढ़ाई (सैफी), मनिहार (सिद्दीकी), दर्जी (इदरीसी), वनगुर्जर. ये सभी जाति और समुदाय के लोग पसमांदा की पहचान के साथ एकजुट हो रहे हैं.
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Tags: Indian Muslims, Islam, Islam religion, Modi, MuslimsFIRST PUBLISHED : July 04, 2022, 13:28 IST