कहता है कारगिल: -10° तापमान में नंगे पैर बर्फीली चट्टान चढ़ ‘महावीर’ केंगुरुसी ने किया दुश्मनों का खात्मा और फिर
कहता है कारगिल: -10° तापमान में नंगे पैर बर्फीली चट्टान चढ़ ‘महावीर’ केंगुरुसी ने किया दुश्मनों का खात्मा और फिर
Kahata Hai Kargil: राजपूताना राइफल्स के कैप्टन नेइकझुको केंगुरुसी को सौंपा गया मिशन असंभव को संभव बनाने जैसा था. वहीं, उस मिशन को पूरा करने की कोशिश खुदकुशी से कम नहीं थी. बावजूद इसके, कैप्टन केंगुरुसी दुश्मन को उसके अंजाम तक पहुंचाने के लिए इस मिशन पर निकल पड़े और फिर ....
Operation Vijay: मैं कारगिल… 1999 की सर्दियां मेरे लिए पहले की सर्दियों से अलग थीं. सीमा के उस पार से लगातार अनजान चेहरों का आना जारी था. इन चेहरों के हाथों में बड़े-बड़े आधुनिक हथियार और कंधों पर भारी बोझ वाले बैग कसे हुए थे. खूंखार से दिखने वाले ये अनजान चेहरे एक-एक कर मेरी तमाम चोटियों पर रहने का मुश्तकिल बंदोबस्त करते जा रहे थे. इनके इस बंदोबस्त में कोई अड़चन न आए, इसलिए चारों तरफ मोर्टार और रॉकेट लांचर जैसे हथियार जमा कर दिए गए थे. मैं समझ नहीं पा रहा था कि सरहद पार से आए खूंखार चेहरे आखिर हैं कौन? मेरे इस सवाल का जवाब छुपा था ‘ऑपरेशन विजय’ में.
दरअसल, 3 मई 1999 की वह तारीख मुझे आज भी याद है, जब पहली बार मेरे अपनों यानी भारतीय सेना के जांबाजों की पहली नजर इन खूंखार चेहरों पर पड़ी थी. फिर शुरू हुआ कारगिल युद्ध और भारतीय सेना के जांबाजों का ‘ऑपरेशन विजय’. ऑपरेशन विजय के दौरान पता चला कि ये सभी खूंखार, अनजान चेहरे पाकिस्तान की सेना और अर्धसैनिक बलों के जवान हैं, जो मेरी सरजमीं के खिलाफ बदनियत लेकर मेरी चोटियों तक पहुंच गए हैं. खैर, शुक्र है भारतीय सेना के जांबाजों का, जिन्होंने समय रहते न सिर्फ इन चेहरों को उनके ‘अंजाम तक’ पहुंचा दिया, बल्कि अपनी माटी से इन्हें मार भगाया. कारगिल की यह लड़ाई द्रास सेक्टर में लड़ी गई.
द्रास सेक्टर में लड़ी गई यह लड़ाई और इसमें कैप्टन नेइकझुको केंगुरुसी की शहादत मेरे सीने को रह रहकर छलनी करती रहती है. दरअसल, पाकिस्तान से आए दुश्मन सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण द्रास सेक्टर की ऊंची बर्फीली पहाड़ियों पर पकड़ बना चुके थे. हालात कुछ ऐसे बन गए थे कि पाक सैनिक द्रास सेक्टर की इन पहाड़ियों से न केवल नेशनल हाईवे वन एल्फा पर नजर रख सकते थे, बल्कि इस हाइवे से गुजरने वाले सेना के काफिले को भी निशाना बना सकने में सक्षम थे. ऐसे में, भारतीय सेना के लिए द्रास सेक्टर में मौजूद दुश्मनों को उनके अंजाम तक पहुंचाना और द्रास वैली को वापस कब्जे में लेना बहुत जरूरी हो गया था.
भारतीय सेना की तरफ से दुश्मन को उसके अंजाम तक पहुंचाने की जिम्मेदारी राजपूताना राइफल्स को सौंपी गई थी. कैप्टन नेइकझुको केंगुरुसी उन दिनों द्रास में तैनात राजपूताना राइफल्स की घातक टोली की अगुवाई कर रहे थे. 28 जून 1999 को कैप्टन नेइकझुको केंगुरुसी के नेतृत्व में घातक प्लाटून को ब्लैक रॉक पर मौजूद दुश्मन की मशीनगन को खामोश करने का जिम्मा सौंपा गया. ऊंची बर्फीली पहाड़ी पर मौजूद दुश्मन की यह मशीनगन लगातार भारतीय सेना के अभियान में बाधा बन रही थी. ऐसे में, इस मशीनगन को खामोश कर ब्लैक रॉक पर मौजूद दुश्मन को उसके अंजाम तक पहुंचाना जरूरी हो गया था.
असंभव को संभव करने जैसा था ब्लैक रॉक पर कब्जा
कैप्टन केंगुरुसी की सौंपी गई जिम्मेदारी असंभव को संभव करने जैसी थी. क्योंकि, बेहद ऊंचाई पर बैठा दुश्मन हर तरह से फायदे में था. वहीं, भारतीय सेना को जिस रास्ते से उस पोस्ट तक पहुंचाना था, वह न केवल दुश्मन के मशीनगन के सीधे निशाने पर थी, बल्कि आर्टलरी फायरिंग रेंज में थी. इतना ही नहीं, दुश्मन ने मशीनगन पोस्ट को अभेद्य बनाने के लिए इसके इर्द-गिर्द सात बंकर बनाकर उसमें भारी संख्या में जवानों की तैनाती कर रखी थी. यानी, दुश्मन की इस चौकी की तरफ कदम बढ़ाना राजपूताना राइफल्स की घातक टोली के लिए खुदकुशी करने जैसा था. हकीकत मालूम होने के बावजूद कैप्टन केंगुरुसी और उनके साथी जीत के हौसले के साथ लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ गए.
जमींदोज हुआ पाक सैनिकों का पहला ‘नापाक’ बंकर
कैप्टन केंगुरुसी और उनके कमांडो साथी दुश्मन के पहले बंकर के बेहद करीब पहुंच चुके थे. दुश्मन को भनक लगी, तो उसने टोली के ऊपर ग्रेनेड से हमला कर दिया. हमला जानलेवा था, ग्रेनेड के कई छर्रे कैप्टन केंगुरुसी के पेट में धंस गए. बुरी तरह से जख्मी होने के बावजूद वह हिम्मत नहीं हारे और अपने कमांडो साथियों के साथ लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ते रहे. भारतीय जांबाजों का हौसला देख घबराए दुश्मन ने ऑटोमैटिक मशीनगन से गोलियों की बौछार कर दी, मोर्टार भी दागने लगे. घातक टोली ने इसका करारा जवाब दिया. कैप्टन केंगुरुसी ने रॉकेट लांचर की मदद से दुश्मन के पहले बंकर को जमींदोज कर दुश्मनों को मौत की नींद सुला दिया. इस कार्रवाई में कैप्टन केंगुरुसी के कुछ साथी भी वीरगति को प्राप्त हो गए थे.
-10 डिग्री में जूते उतार बर्फ की दीवार पर चढ़ गए कैप्टन
पहली चुनौती को बखूबी अंजाम तक पहुंचाने के बाद कैप्टन केंगुरुसी अपने साथियों के साथ दुश्मन के दूसरे बंकर की तरफ बढ़ गए. इस बंकर तक पहुंचने के लिए कैप्टन केंगुरुसी और उनके साथियों को बर्फ की ऊंची चट्टान पर रस्सी की मदद से चढ़ना था. चूंकि कैप्टन केंगुरुसी के जूते बर्फ की वजह से लगातार फिसल रहे थे, लिहाजा उन्होंने नंगे पैर ही बर्फ की चट्टान पर चढ़ने का फैसला किया. यहां आपको बता दूं कि कैप्टन केंगुरुसी ने यह फैसला 16000 फीट की ऊंचाई पर करीब -10 डिग्री सेल्सियस के तापमान के बीच लिया था. खून जमा देने वाली इस ठंड में उन्होंने अपने जूते उतारे और बर्फ की चट्टान चढ़कर दुश्मन के दूसरे बंकर तक पहुंचने में कामयाब रहे.
खंजर से किया दूसरे बंकर में मौजूद दुश्मनों को ढेर
कैप्टन केंगुरुसी दूसरे बंकर तक पहुंचने में तो कामयाब रहे, लेकिन अब तक उनकी गोलियां खत्म हो चुकी थीं. दुश्मन से मोर्चा लेने के लिए अब उनके पास एक खंजर ही बचा था. उन्होंने अपना खंजर निकाला और काल बनकर दुश्मनों पर टूट पड़े. अचानक हुए इस हमले से दुश्मन बेखबर था. कैप्टन केंगुरुसी और बंकर में मौजूद पाकिस्तानी सैनिकों के बीच भयंकर युद्ध हुआ. मगर जांबाज कैप्टन केंगुरुसी के आगे दुश्मनों की एक न चली. कैप्टन ने अपने खंजर से दुश्मन सेना के दो सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया. शरीर में धंसी गोलियों का दर्द भूलकर कैप्टन केंगुरुसी ने अकेले दम दुश्मन के दो बंकरों को जमींदोज कर सभी पाक सैनिकों को उनके अंजाम तक पहुंचा दिया.
देश के लिए दिया प्राणों का सर्वोच्च बलिदान
गंभीर रूप से जख्मी होने और दुश्मन के दो बंकरों को जमींदोज करने के बाद भी अभी तक कैप्टन केंगुरुसी की दुश्मनों को मिटाने की ‘भूख’ शांत नहीं हुई थी. अब उनके टारगेट पर तीसरा बंकर था. वह उस तरफ बढ़े, लेकिन अचानक दुश्मन का मशीनगन गोलियां उगलने लगा. कैप्टन केंगुरुसी के शरीर पर कई गोलियां लगीं जो उन्हें अपने साथ गहरी खाई में लेकर चली गई. राजपूताना राइफल्स के कैप्टन नेइकझुको केंगुरुसी ने आखिरी सांस तक दुश्मन का सामना किया और देश के लिए अपने प्राणों का सर्वोच्च बलिदान दे दिया. महज 25 वर्ष की उम्र में शहादत को गले लगाने वाले कैप्टन केंगुरुसे को उनके अदम्य साहस और सर्वोच्च बलिदान के लिए देश के दूसरे सर्वोच्च वीरता पुरस्कार महावीर चक्र से सम्मानित किया गया.
कारगिल युद्ध में देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वाले कैप्टन नेइकझुको केंगुरुसी सेना सेवा कोर (एएससी) से महावीर चक्र प्राप्त करने वाले पहले सैन्य अधिकारी थे.
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Tags: Heroes of the Indian Army, Indian Army Heroes, Kargil day, Kargil war, Unsung HeroesFIRST PUBLISHED : July 21, 2022, 18:23 IST