दुर्गा पूजा नेताजी सुभाष के लिए थी सबसे अहम चाहे दुनिया में कहीं हों

नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) मां दुर्गा और काली से उपासक थे. अपने जीवन में उन्होंने शारदीय नवरात्र में हमेशा ये पूजा पूरी आस्था और धार्मिकता से की. दुर्गा के परम भक्त सुभाष जब जेल में भी रहे तो उन्होंने ये पूजा वहां भी धूमधाम से खुद मनवाई.

दुर्गा पूजा नेताजी सुभाष के लिए थी सबसे अहम चाहे दुनिया में कहीं हों
हाइलाइट्सजेल में रहते हुए धूमधाम से कैदियों के साथ मनाते हुए पूुजा उत्सव अगर सार्वजनिक जीवन में होते थे तो इस दौरान कोलकाता में रहते थेये पूजा सुभाष के लिए सबसे बड़ी पूजा होती थी नेताजी सुभाष चंद्र बोस का हमेशा से मानना था अपने धर्म में आस्था रखो, धार्मिक रहो लेकिन हर धर्म का सम्मान करो. हर धर्म को साथ लेकर चलो. लेकिन बात जब किसी अभियान या आजादी की लड़ाई की आती थी, वहां वह हर धर्म के लोगों को साथ लेकर चलते थे. यही स्थिति महात्मा गांधी की भी थी, जो पूरी तरह धार्मिक थे लेकिन हमेशा दूसरे धर्मों का भी उन्होंने पूरा सम्मान किया. वैसे बात शारदीय नवरात्र में दुर्गा पूजा की है, तो आपको बता दें कि हर बंगाली की तरह नेताजी सुभाष भी मां के परम उपासक थे. जेल में हों या सार्वजनिक जीवन में – वह इस मौके पर धूमधाम से पूजा का आयोजन करते थे. 09 नवंबर 1्936 को दार्जिलिंग से नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अपनी पत्नी एमिली शेंक्ल को पत्र लिखा. उसमें लिखा कि हमारा सबसे बड़ा त्योहार दुर्गापूजा अभी खत्म हुआ है. मैं तुमको विजया की शुभकामनाएं भेजता हूं. हर बंगाली की तरह सुभाष भी दुर्गापूजा में जोरशोर से हिस्सा लेते थे. बोस परिवार के लिए ये बड़ा त्योहार था. नेताजी दुर्गा और शक्ति उपासक थे. वो दुनिया में जहां कहीं रहे, उनकी आराधना करना नहीं भूले. इसे लेकर उन्होंने काफी कुछ लिखा है. नेताजी संपूर्ण वांग्मय के जरिए ये पता लगता है कि ये पूजा सुभाष के लिए सबसे बड़ी पूजा होती थी. उन्होंने पत्नी समेत कई लोगों को दुर्गापूजा को लेकर अपनी गतिविधियों के बारे में लिखा है. यहां तक कि जब वो जेल में रहे, तब भी उन्होंने कैदियों के साथ मिलकर इस पूजा का आयोजन किया. शेंक्ल को पत्र लिखकर बताया शेंक्ल को लिखे पत्र में सुभाष ने ये भी लिखा था, “देवी मां की पूजा अर्चना के बाद उनके सभी बच्चों को आपस में प्रेम-प्यार से रहना चाहिए”. वो जब भी अपनी मां, बहनों और भाभी विभावती बोस को खत लिखते थे तो उसकी शुरुआत मां दुर्गा सदा सहाय से करते थे. मांडले जेल में दुर्गा पूजा 13 अक्टूबर 1925 को नेताजी के पिता जानकी दास ने उन्हें पत्र लिखा, “मुझे ये जानकर खुशी हुई कि मांडले जेल में तुम दुर्गा पूजा मना सके. मैने बड़ी दिलचस्पी के साथ इसकी रिपोर्ट एक अखबार में पढ़ी है. इसका किस्सा वाकई दिलचस्प है.” जो सुभाष की लिखी चिट्ठियों से ही जाहिर होता है. नेताजी मां दुर्गा और शक्ति के परम उपासक थे. ताजिंदगी वो कहीं भी रहे हों लेकिन उन्होंने दुर्गा की पूजा आराधना जरूर की. (photo shutterstock) पूजा खर्चे को लेकर जेल अफसरों से संघर्ष मांडले जेल से उन्होंने अपनी भाभी विभावती को 11 सितंबर 1925 को लिखे खत में इसका जिक्र किया, “यहां दुर्गा पूजा की तैयारियां हो रही हैं. हमें आशा है कि हम वहां मां की पूजा कर पाएंगे. लेकिन खर्चे के बारे में अधिकारियों से झगड़ा चल रहा है. देखें क्या होता है. कृपया पूजा के वस्त्र यहां भेजना नहीं भूलें-हमें यहीं तो आखिर बिजोया दशमी बनानी है.” मां को बताया कि कैसे मनाई पूजा फिर 25 सितंबर 1925 को मां बासंती देवी को चिट्ठी भेज बताया, “आज महाष्टमी है. आज के दिन बंगाल के घर घऱ में दुर्गा की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है. हम भाग्यशाली हैं कि इस कारागार में भी उन्हें पा सके. . इस वर्ष हम श्री दुर्गा की पूजा यहीं करेंगे. मां शायद हमें भूली नहीं और इसलिए उनकी पूजा-अर्चना और इसीलिए उनकी पूजा -अर्चना का आय़ोजन करने का यहां भी अवसर मिल पाया, यद्यपि हम इतनी दूर पड़े हैं. वो परसों हमसे विदा ले लेंगी और हम साश्रु नयन देखते रहेंगे. एक बार फिर पूजा के आलोकित और प्रफुल्लित वातावरण को कारागार का अंधकार और मृत परिवेश लील लेगा. मैं नहीं जानता कि ये क्रम कितने साल और चलेगा. लेकिन अगर मां वर्ष में एक बार भी इसी तरह आती रहें तो मैं समझता हूं कि कारावास का जीवन बहुत मुश्किल नहीं हो पाएगा.” जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस 1925 से लेकर 1927 तक म्यांमार की मांडले जेल में थे तो उन्होंने दुर्गा पूजा के लिए ना केवल जेल अधिकारियों से संघर्ष किया बल्कि उसके खर्च के लिए बंगाल सरकार के सचिव को भी पत्र लिखा था. (photo shutterstock) सरकार से कहा जेल में पुजारी भी भेजें मांडले जेल में दुर्गा पूजा मनाने के लिए सुभाष को काफी संघर्ष भी करना पड़ा. पहले जेल अधिकारियों ने इस पूजा के लिए खर्च वहन करने से मना कर दिया तो उन्होंने बंगाल सरकार के तत्कालीन मुख्य सचिव को फोन लिख बताया कि दुर्गा पूजा कितनी बड़ी पूजा है. इसमें समारोह पांच दिनों तक चलता है और इसके लिए पहले से तैयारी करनी पड़ती है. लिहाजा इसके धन की व्यवस्था सरकार द्वारा की जाए. इसके लिए बंगाल से किसी पुजारी को भी लाना जरूरी होगा. उन्होंने मुख्य सचिव से इसके लिए बंगाल से समय रहते पुजारी भेजने का भी अनुरोध किया. कोलकाता में धार्मिकता से मनाते थे पूजा बाद में अगर सुभाष दुर्गा पूजा के दौरान जेल में रहे तो उन्होंने इसे धूमधाम से ही मनाने की कोशिश की. जब वो सार्वजनिक जीवन में रहते थे तो पूजा के दौरान अपने बाकी कार्यक्रम रद करके कोलकाता में ही रहना सुनिश्चित करते थे. पूरी धार्मिकता के साथ इस पूजा में शामिल होते थे. सुभाष वामपंथी थे धर्म को राजनीति से अलग देखते थे सुभाष बोस के जीवनी लेखक लियोनार्दो गार्डन ने लिखा, सुभाष ने धर्म पर कभी कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया और न ही ये कहा कि उनके भारतीय होने में हिंदूत्व का हिस्सा सबसे अभिन्न है. किताब “ब्रदर्स अगेंस्ट द राज” में गार्डन ने लिखा, सुभाष की मां दुर्गा और काली की परम भक्त थीं. जहां तक सुभाष की बात थी, मां दुर्गा और काली की पूजा उन्हें पारिवारिक विरासत में मिली. ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी | Tags: Durga Pooja, Durga Puja festival, Navratri, Navratri festival, Netaji Subhash Chandra Bose, Subhash Chandra BoseFIRST PUBLISHED : September 26, 2022, 14:41 IST