कांच नहीं इन 3 केमिकल्स से तैयार होती हैं कांच की चूड़ियां
कांच नहीं इन 3 केमिकल्स से तैयार होती हैं कांच की चूड़ियां
कारखाने में काम करने वाला मजदूर एक लोहे की रॉड में भट्टी के हॉल में से पिघला हुआ कांच निकालता है और वहां से उसे अड्डे पर लाता है. उसके बाद कांच के टुकड़े को शेप देकर ठंडा किया जाता है.
फिरोजाबाद: गोरी हैं कलाइयां पहना दे तू मुझे हरी-हरी चूड़ियां….ये गीत तो सभी ने सुना ही होगा. सुहागन महिलाओं के सोलह श्रृंगार में से एक गहना चूडियां भी हैं. इन चूड़ियों को पहनते ही महिलाओं के श्रृंगार में चार चांद लग जाते हैं. लेकिन इन चूड़ियों को यूपी के फिरोजाबाद शहर में तैयार किया जाता है और इसे बनाने का तरीका बेहद की कठिन है. कांच से तैयार होने वाली ये चूड़ियां दरअसल कांच ही नहीं बल्कि उसमें कई तरह के केमिकल का भी इस्तेमाल किया जाता है, जिसे रेता कहा जाता है. आग से धधकती कांच भट्टियों में इसे डालकर पिघलाया जाता है. फिर इसे चूड़ियों का रुप दिया जाता है. उसके बाद इन्हे अलग-अलग रंगों और डिजाइन से साथ सजाया जाता है. फिरोजाबाद से तैयार होने वाली ये कांच की चूड़ियां केवल भारत में ही बल्कि विदेशों में भी भेजी जाती हैं. इसीलिए फिरोजाबाद को सुहागनगरी के नाम से जाना जाता है.
फिरोजाबाद में चूड़ी बनाने वाले कारीगर मोहम्मद वसीम ने लोकल 18 को बताया कि फिरोजाबाद की चूड़ियां विदेशों तक फेमस हैं और यहां घर-घर में चूड़ियों को तैयार किया जाता है. उनके यहां कारखानों में तैयार होने वाली चूड़ियों को केवल कांच से नहीं बल्कि उन्हें बनाने के लिए कई तरह के केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है.
1300 डिग्री तापमान
सुहागन के हाथ में खनकने वाली चूड़ियों को बनाने के लिए सबसे पहले सिलिका सेंड, सोडा एश और कैल्साइड का मिश्रण तैयार किया जाता है और फिर उसे फर्नेश भट्टियों के पॉट में डाला जाता है. इसके बाद जिस कलर की चूड़ी तैयार करनी हो उस हिसाब से रंग का कैमिकल मिलाया जाता है. इसके बाद कांच को पिघलाने के लिए 12 घंटे तक 1300 डिग्री तापमान में रखा जाता है. इसके बाद इससे चूड़ी बनाने का प्रोसेस शुरु होता है.
गोल लच्छे से चूड़ी तैयार
यह काम सुबह छह बजे से शुरू हो जाता है. कारखाने में काम करने वाला मजदूर एक लोहे की रॉड में भट्टी के हॉल में से पिघला हुआ कांच निकालता है और वहां से उसे अड्डे पर लाता है. उसके बाद कांच के टुकड़े को शेप देकर ठंडा किया जाता है. इसके बाद मजदूर फिर से उसी कांच पर भट्टी से नया कांच लेता है. कांच पर कांच चढाने की यह प्रक्रिया तीन से चार बार दोहराई जाती है. फिर उसके बाद यह कांच बेलन पर आ जाता है. बेलन चलाने वाला कारीगर चूड़ी तैयार करने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. कारीगर हाथों के रॉड का बैलेंस इस तरह बनाता है कि बेलन पर चलने वाली कांच की डोर एक सी रहती है. इसके बाद यही से एक गोल लच्छे से चूड़ी तैयार हो जाती है.
अलग-अलग रंगो में की जाती है तैयार
चूड़ी व्यापारी ने कहा कि फिरोजाबाद में काफी बड़े स्तर से चूड़ियों का काम किया जाता है. कारखानों में तैयार होने वाली चूड़ियां सीजन और त्यौहारों के हिसाब से बनाई जाती हैं, इन्हे डिमांड के हिसाब से अलग-अलग रंगों में तैयार किया जाता है. जैसे सावन के महीने में हरे रंग की चूड़ियां तैयार होती हैं. उसके बाद शादियों के सीजन मे नई दुल्हनों के लिए अलग रंग की चूड़ियां तैयार की जाती हैं. करवाचौथ पर महिलाओं के लिए अलग डिमांड रहती है. इसी तरह सीजन में चूड़ियों का रंग बदलता रहता है.यहां से कांच की चूड़ियों का करोड़ों रुपये का व्यापार किया जाता है.
Tags: Local18FIRST PUBLISHED : July 18, 2024, 15:12 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed