छोटी-छोटी कोठरी में खुद को क्यों बंद कर रहे हैं मां-बाप वजह है जिगर का टुकड़ा

एक बेहद अजीबोगरीब दिखने वाले ट्रेंड के तहत माता-पिता खुद को छोटे कमरों में बंद कर रहे हैं. वे किसी से संपर्क में नहीं रहते हैं और न उनके पास फोन होता है न लैपटॉप. कई पैरेंट्स इन ट्रेंड को अमल में लाकर अपने जिगर के टुकड़ों यानी बच्चों को समझने की कोशिश कर रहे हैं....

छोटी-छोटी कोठरी में खुद को क्यों बंद कर रहे हैं मां-बाप वजह है जिगर का टुकड़ा
Happiness Factory: एक बेहद अजीबोगरीब दिखने वाले ट्रेंड के तहत माता-पिता खुद को छोटे कमरों में बंद कर रहे हैं. वे किसी से संपर्क में नहीं रहते हैं और न उनके पास फोन होता है न लैपटॉप. ये माता पिता भारत के नहीं बल्कि किम जोंग के नॉर्थ कोरिया के पड़ोसी देश साउथ कोरिया के हैं. इस छोटे से कमरे में बंद होने के इस चलन को हिकीकोमारी (hikikomori) कहा जाता है और कई पैरेंट्स इन ट्रेंड को अमल में लाकर अपने जिगर के टुकड़ों यानी बच्चों को समझने की कोशिश कर रहे हैं. इसी साल अप्रैल से माता-पिता कोरिया यूथ फाउंडेशन और ब्लू व्हेल रिकवरी सेंटर जैसे एनजीओ के इस प्रकार के 13-सप्ताह के खास प्रोग्राम में पार्टिसिपेट कर रहे हैं. बता दें कि दक्षिण कोरिया  दुनिया में सबसे अधिक आत्महत्या दर वाले देशों में से एक है. फीडिंग होल से लेते हैं खाना, दरवाजे में एक छोटा सा छेद… यह पूरा मामला एक नजर में पेचीदा लगता है लेकिन इसके पीछे की मंशा उस देश के लोगों को स्पष्ट है. दक्षिण कोरिया में माता-पिता खुद को ‘हैप्पीनेस फैक्ट्री’ के अंदर बंद कर लेते हैं और ऐसा अंजाम दे रहे हैं वो दो संस्थाओं के जरिए. इन छोटे छोटे कमरों को आप किसी स्टोर या किसी अलमारी की तरह मानन सकते हैं. केवल एक फीडिंग होल के जरिए ये बाहरी दुनिया से जुड़े हुए हैं और यहीं से वे खाना लेते हैं. साढ़े पांच लाख लोग अपना चुके हैं…. इन माता पिताओं के पास न फोन होता है और न ही लैपटॉप. अपने अलग-थलग रहने वाले (सोशली विदड्रॉन) बच्चों को बेहतर समझने के लिए दक्षिण कोरिया में कई माता-पिता इस फैक्ट्री में एनरोल होते हैं. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, हिकिकोमोरी शब्द 1990 के दशक में किशोरों और युवाओं में गंभीर सामाजिक अलगाव को समझने के लिए जापान में पैदा हुआ. दक्षिण कोरियाई की मिनिस्ट्री ने एक सर्वे में पाया कि 19 से 34 वर्ष की आयु के 5% से अधिक पैरेंट्स ऐसे छोटे कमरों में रह रहे हैं. इस आंकड़े पर जाएं तो साढ़े पांच लाख लोग (लगभग) इसे अपना चुके हैं. भावनाओं की कैद कैसी होती है… समझ रहे हैं ऐसे ही एक अभिभावक हैं जिन यंग-हे जिनका बेटा तीन साल से खुद को अलग-थलग कर रहा है. वे कहते हैं कि उन्हें अब अपने 24 वर्षीय बेटे की ‘भावनात्मक जेल’ की गहरी समझ हो गई है. उनका बेटा हमेशा प्रतिभाशाली रहा है और बतौर पैरेंट्स उससे बहुत उम्मीदें थीं. नौकरी नहीं मिलतीं, रिश्ते बिगड़ रहे… दक्षिण कोरियाई स्वास्थ्य और कल्याण मंत्रालय की रिसर्च कहती है कि नौकरी खोजने में कठिनाइयां, रिश्ते नाते, पारिवारिक समस्याएं और स्वास्थ्य समस्याएं युवाओं को अलगाव में धकेल रही हैं. Tags: North Korea, South korea, World newsFIRST PUBLISHED : July 11, 2024, 15:35 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed