रोपाई के 20 दिन धान के पौधे हो रहे हैं पीले करें ये उपाय

दिलीप कुमार सोनी ने बताया कि जड गलन रोग फंगस वाली जमीन में पनपती है जिसके प्रकोप से जड़ें काली पड़ जाती हैं, जिससे पौधे आवश्यक पोषक तत्व नहीं ले पाते तथा पौधे पीले होकर और मुरझाकर मरने लगते हैं. इस बीमारी के शुरूआती लक्षण पत्तों पर पीलापन दिखाई देना तथा पौधों का मुरझाना है.

रोपाई के 20 दिन धान के पौधे हो रहे हैं पीले करें ये उपाय
रायबरेली. धान की फसल की रोपाई किए हुए लगभग 15 से 20 दिन बीत गया है. अब किसान फसल को रोग एवं कीट से बचाव के लिए तैयारी कर रहे हैं. जिससे उनकी फसल पैदावार प्रभावित न हो. इन दिनों धान की फसल में रोग एवं कीट लगने का खतरा ज्यादा रहता है. इससे किसान परेशान रहते हैं. इन्हीं रोग एवं कीट में प्रमुख रूप से जड़ गलन रोग है . जो धान की फसल को ज्यादा प्रभावित करता है. यह रोग पौधे की जड़ को गला देता है. जिससे पौधा सूख जाता है तो आइए कृषि विशेषज्ञ से जानते हैं जड़ गलन रोग से बचाव के क्या तरीका है? कृषि के क्षेत्र में 10 साल का अनुभव रखने वाले रायबरेली जिले के राजकीय कृषि केंद्र शिवगढ़ के सहायक विकास अधिकारी कृषि दिलीप कुमार सोनी (बीएससी एजी) बताते हैं कि धान की फसल में लगने वाला जड़ गलन रोग एक गंभीर समस्या है जो धान की फसल में आमतौर पर रोपाई के 20-30 दिनों बाद दिखाई देने लगता है. इस दौरान पौधों की जड़ें सबसे अधिक संवेदनशील होती हैं, और यदि जल निकासी, मिट्टी का स्वास्थ्य, या मौसम संबंधी स्थितियां अनुकूल नहीं हैं,तो जड़ गलन रोग तेजी से फैल सकता है. इसलिए, रोपाई के बाद शुरुआती हफ्तों में पौधों की नियमित रूप से निगरानी करना महत्वपूर्ण होता है. फसल में जड़ गलन रोग के यह हैं लक्षण दिलीप कुमार सोनी ने बताया कि जड गलन रोग फंगस वाली जमीन में पनपती है जिसके प्रकोप से जड़ें काली पड़ जाती हैं, जिससे पौधे आवश्यक पोषक तत्व नहीं ले पाते तथा पौधे पीले होकर और मुरझाकर मरने लगते हैं. इस बीमारी के शुरूआती लक्षण पत्तों पर पीलापन दिखाई देना तथा पौधों का मुरझाना है. ऐसे पौधों को जब उखाड़कर देखते हैं तो उनकी जड़ें काली मिलती है. इस बीमारी के प्रमुख कारण निम्न हैं. इन कारणों से फैलता है जड़ गलन रोग अधिक नमी : खेत में जल जमाव होने पर जड़ें सड़ने लगती हैं, जिससे जड़ गलन रोग फैलता है. खराब जल निकासी : यदि खेत में पानी की निकासी सही ढंग से नहीं हो पाती है ,तो जड़ों में सड़न होने लगती है. मिट्टी का खराब स्वास्थ्य: मिट्टी में आवश्यक पोषक तत्वों की कमी या असंतुलन होने पर पौधों की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है. अधिक सिंचाई : जरूरत से ज्यादा पानी देने पर भी जड़ गलन रोग का खतरा बढ़ जाता है. संक्रमित बीज : अगर बीज पहले से संक्रमित हैं तो यह रोग फैल सकता है. गर्म और नम मौसम : गर्म और आर्द्र मौसम इस रोग के लिए अनुकूल होता है. इन बातों का रखें विशेष ध्यान उचित जल निकासी : खेत में जल जमाव न होने दें. जल निकासी की अच्छी व्यवस्था करें ताकि पानी रुकने से जड़ें गल न सकें. मिट्टी का परीक्षण: मिट्टी का pH संतुलन बनाए रखें.मिट्टी का नियमित परीक्षण कराएं और आवश्यकतानुसार सुधार करें. बीज का उपचार : बीज को फफूंदनाशक दवाओं से उपचारित करें. इससे बीज में मौजूद रोग के बीजाणु नष्ट हो जाते हैं. फसल चक्र : एक ही खेत में बार-बार धान की फसल न लगाएं.फसल चक्र अपनाएं और दूसरी फसलों का भी रोपण करें. ताकि मिट्टी में रोग के कीटाणु न फैल सकें. उर्वरक का सही उपयोग : उर्वरकों का संतुलित उपयोग करें. जैविक खाद का उपयोग करें.जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहे. समय पर सिंचाई : अधिक या कम सिंचाई से बचें. पौधों की जरूरत के अनुसार ही पानी दें. रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन: ऐसी किस्में लगाएं जो जड़ गलन रोग के प्रति प्रतिरोधी हों. कीटनाशक का उपयोग : आवश्यकता पड़ने पर कृषि विशेषज्ञ की सलाह लेकर कीटनाशकों का उपयोग करें. Tags: Agriculture, Local18, Rae Bareli News, Uttar Pradesh News HindiFIRST PUBLISHED : August 5, 2024, 17:52 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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