रोपाई के 25-30 दिनों बाद लगता है धान में ये खतरनाक रोगपौधा हो जाएगा बौना!

कुछ राज्य के खेतों की मिट्टी में जिंक का काफी कमी होती है, जिसके चलते धान की फसल में बुवाई के 25 दिनों बाद ही खैरा रोग के लक्षण दिखने लग जाते हैं. अल्काइन और कैल्शियम की अधिकता वाली मिट्टी में धान की खेती करने पर खैरा रोग का संकट बढ़ जाता है.

रोपाई के 25-30 दिनों बाद लगता है धान में ये खतरनाक रोगपौधा हो जाएगा बौना!
रायबरेली. जुलाई के महीना लगभग आधा बीत गया है. कई राज्यों में धान की रोपाई हो गई है या अगले 10 दिनों में पूरी हो जाएगी. किसान धान की फसल रोपाई में लगे हुए हैं. परंतु धान की रोपाई के बाद फसल में कई तरह के रोग लगने का खतरा बना रहता है. जिससे फसल खराब होती है. फसल खराब होने पर इसकी पैदावार भी घटती है .जिससे किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है. धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों में खैरा रोग भी है. यह रोग फसल के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं है. यह एक ऐसा रोग है जो फसल को पूरी तरीके से बर्बाद कर देता है. तो आइए कृषि विशेषज्ञ से जानते हैं धान की फसल में लगने वाले खैरा रोग और इससे बचाव के क्या उपाय हैं? कृषि के क्षेत्र में 10 वर्षों का अनुभव रखने वाले रायबरेली के राजकीय कृषि केंद्र शिवगढ़ के प्रभारी अधिकारी शिव शंकर वर्मा (बीएससी एजी डॉ राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय फैजाबाद) बताते हैं कि यह एक ऐसा रोग है. जो मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी के कारण होता है. कुछ राज्य के खेतों की मिट्टी में जिंक का काफी कमी होती है, जिसके चलते धान की फसल में बुवाई के 25 दिनों बाद ही खैरा रोग के लक्षण दिखने लग जाते हैं. अल्काइन और कैल्शियम की अधिकता वाली मिट्टी में धान की खेती करने पर खैरा रोग का संकट बढ़ जाता है.खैरा रोग से ग्रस्त होने पर धान की पौधों की पत्तियां हल्के भूरे और लाल रंग की पड़ने लगती है. खैरा रोग के लक्षण शिव शंकर वर्मा ने बताया कि धान की फसल में खैरा रोग का प्रकोप होने पर उसकी पत्तियां हल्के पीले रंग के धब्बे और बाद में कत्थई रंग के हो जाते हैं .इसका प्रकोप होने पर पौधा बौना हो जाता है.और जड़ें भी कत्थई रंग की दिखाई देने लगती हैं . ऐसे करें बचाव शिव शंकर वर्मा ने बताया कि इस रोग से बचाव के लिए किसान धान की रोपाई से पहले खेत की गहरी जुताई कर 25 किलो ग्राम जिंक सल्फेट को प्रति हेक्टेयर कि दर से मिट्टी में मिला दें. साथ ही वह 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट और 0.2 प्रतिशत बुझा हुआ चूना पानी में घोलकर रोग ग्रस्त खेतों में हर 10 दिन में तीन बार फसल पर छिड़काव करें. या फिर चूने की जगह दो प्रतिशत यूरिया का भी प्रयोग कर सकते हैं. इस प्रक्रिया को अपनाकर किसान अपनी फसल को इस रोग से आसानी से बचा सकते हैं. Tags: Agriculture, Local18, Rae Bareli News, Uttar Pradesh News HindiFIRST PUBLISHED : July 12, 2024, 14:16 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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