चार धाम यात्रा जा रहे हैं द्वितीय केदार के भी जरूर करें दर्शन खुल गए कपाट

पंचकेदार में भगवान शिव के पांच अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है. मदमहेश्वर में नाभि की पूजा की जाती है. मान्यता है कि यहां दर्शन और पूजन करने से महादेव की कृपा बरसती है और सुखी जीवन मिलता है.

चार धाम यात्रा जा रहे हैं द्वितीय केदार के भी जरूर करें दर्शन खुल गए कपाट
हाइलाइट्स पंचकेदार में भगवान शिव के पांच अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है. विधिवत पूजा-अर्चना के बाद कपाट खोले गए. मदमहेश्वर भगवान की देवडोली के पहुंचने के बाद सुबह 10 बजे से कपाट खुलने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई. रुद्रप्रयाग: पंचकेदारों में द्वितीय केदार भगवान मदमहेश्वर के कपाट आज पूर्वाह्न 11 बजकर 15 मिनट पर श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ विधि-विधान से खोल दिए गए. इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे. देवडोली के पहुंचने के बाद कपाट खोलने की प्रक्रिया शुरू हुई. मद्महेश्वर भगवान की देवडोली के पहुंचने के बाद सुबह 10 बजे से कपाट खुलने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई. विधिवत पूजा-अर्चना के बाद कपाट खोले गए. पुजारी टी गंगाधर लिंग ने पूजा-अर्चना के बाद बीकेटीसी के अधिकारियों, हक-हकूक धारियों की उपस्थिति में विधि-विधान से श्री मद्महेश्वर मंदिर के कपाट पूर्वाह्न 11:15 बजे खोल दिए. इसके बाद भगवान मदमहेश्वर के स्वयंभू शिवलिंग को समाधि रूप अलग कर निर्वाण रूप तथा उसके उपरांत श्रृंगार रूप दिया गया. इसके बाद यहां मौजूद श्रद्धालुओं ने भगवान के दर्शन किए. इस दौरान करीब साढ़े तीन सौ से अधिक श्रद्धालु मौजूद रहे. ग्रीष्मकाल के छह माह श्रद्धालु यहीं भगवान मदमहेश्वर के दर्शन करेंगे. भगवान मदमहेश्वर मंदिर का महत्व: पंच केदार में इन्‍हें दूसरे केदार के रूप में पूजा जाता है. भगवान शिव के बैल स्वरूप की नाभि की पूजा का विधान है. मान्यता है कि इस मंदिर को महाभारतकाल में पांडवों द्वारा बनवाया गया था. हिंदू धर्म में इसकी बहुत ज्यादा मान्यता है. यह मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में चौखम्बा पर्वत की तलहटी पर स्थित है. यहां जाने के लिए ऊखीमठ से कालीमठ और फिर वहां से मनसुना गांव होते हुए 26 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है. दरअसल, पंचकेदार में भगवान शिव के पांच अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है. मदमहेश्वर में नाभि की पूजा की जाती है. मान्यता है कि यहां दर्शन और पूजन करने से महादेव की कृपा बरसती है और सुखी जीवन मिलता है. हिंदू मान्यता के अनुसार, प्रकृति की गोद में बसे इसी मंदिर में महादेव और माता पार्वती ने रात्रि बिताई थी. मदमहेश्वर मंदिर में भगवान शिव की पूजा के लिए दक्षिण भारत के लिंगायत ब्राह्मण पुजारी नियुक्त होते हैं. मंदिर के पास बूढ़ा मदमहेश्वर मंदिर, लिंगम मदमेश्वर, अर्धनारीश्वर व भीम के मंदिर भी दर्शनीय हैं. यह मंदिर सर्दियों में बंद रहता है. मध्यमहेश्वर मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय मई से जून के बीच है. Tags: Char Dham, Char Dham Yatra, Rudraprayag news, Uttarakhand newsFIRST PUBLISHED : May 20, 2024, 18:50 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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