JDU संग BJP को क्या गिला! बिहार में दोस्ती फिर दिल्ली में नीतीश से क्यों दूरी
JDU संग BJP को क्या गिला! बिहार में दोस्ती फिर दिल्ली में नीतीश से क्यों दूरी
JDU vs BJP: जेडीयू बिहार से बाहर अपने पैर पसारने की लगातार कोशिशें करती रही है. नार्थ ईस्ट के दो राज्यों- अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में जेडीयू के विधायकों को भाजपा ने तोड़ लिया था. झारखंड में 2 सीटें जेडीयू को भाजपा ने दीं, लेकिन उनमें एक सिटिंग विधायक सरयू राय की सीट बदल कर भाजपा ने उन्हें परेशान करने में कोई कसर भी नहीं छोड़ी. दिल्ली में भी जेडीयू की चुनाव लड़ने की इच्छा पर भाजपा कहीं पानी न फेर दे.
बिहार में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू और भाजपा में अभी गाढ़ी दोस्ती है. दोस्ती कोई नई नहीं है. वर्ष 2005 से यह साथ बना हुआ है. हां, बीच-बीच में दोस्ती टूटती-जुटती भी रही है. संप्रति दोनों बिहार में साथ मिल कर सरकार चला रहे हैं. भाजपा राष्ट्रीय स्तर की सबसे बड़ी पार्टी है तो जेडीयू की जमीन बिहार में ही पुख्ता रही है. वैसे जेडीयू ने नार्थ ईस्ट के राज्यों- अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में भी अपनी जमीन तैयार की थी. पर उसकी साथी भाजपा ने ही वहां इसका नामोनिशान मिटा दिया. झारखंड में भाजपा से मिली दो सीटों पर जेडीयू ने अपने उम्मीदवार उतारे, लेकिन एक ने ही जीत दर्ज की. जीतने वाले सरयू राय भी पूर्व में भाजपा की ही राजनीति करते रहे हैं. यूपी में भी जेडीयू चुनाव लड़ने के लिए कसमसाती रही है, लेकिन भाजपा ने मौका नहीं दिया. अब दिल्ली में जेडीयू की इच्छा भाजपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने की है, लेकिन भाजपा की दिल्ली इकाई ने जेडीयू को मौका देने से मना कर दिया है. भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को अब जेडीयू को दिल्ली में जमीन देने पर फैसला करना है. वैसे 2020 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू को तीन सीटें देकर भाजपा आजमा चुकी है. जेडीयू का एक भी उम्मीदवार नहीं जीत पाया था. बहरहाल, भाजपा के तेवर से ऐसा लगता है कि वह जेडीयू को बिहार से बाहर जमीन देने के मूड में नहीं है.
दिल्ली में जेडीयू को सीटें नहीं देगी भाजपा!
कुछ ही दिनों पहले जेडीयू के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा और केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने प्रेस कान्फ्रेंस कर बताया कि भाजपा के साथ मिल कर जेडीयू दिल्ली में चुनाव लड़ेगा. सीटों की संख्या भाजपा से बातचीत कर तय होगी. जेडीयू नेताओं ने जिस तरह आम आदमी पार्टी और कांग्रेस को निशाने पर लिया, उससे साफ था कि वे एनडीए में रह कर ही चुनाव लड़ने के पक्षधर हैं. पर, भाजपा की दिल्ली इकाई ने जेडीयू की डिमांड की यह कह कर हवा निकाल दी है कि उसे सीटें देना पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित होगा. तर्क यही है कि पिछली बार तीन सीटें देकर कोई फायदा नहीं हुआ था. वहां आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार जीत गए थे. इसलिए भाजपा को लगता है कि जेडीयू के साथ गठबंधन का कोई फायदा नहीं होने वाला.
पूर्वांचली वोटरों से जेडीयू को है काफी आस
दिल्ली में बड़े पैमाने पर बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग रहते हैं. बंगाल में इन्हें बिहारी, नार्थ ईस्ट में पूरबिया तो दिल्ली में इन्हें पूर्वांचली कहा जाता है. नौकरी और पढ़ाई के सिलसिले में दिल्ली पहुंचे ये लोग दिल्ली विधानसभा की 17 सीटों पर प्रभाव रखते हैं. दिल्ली की कच्ची कॉलोनियों में इनकी बसाहट है. दिल्ली की 1797 कच्ची कॉलोनियों में रहने वाले 80 से 90 प्रतिशत लोग पूर्वांचल के हैं. विकासपुरी, द्वारका, मटियाला, मॉडल टाउन, बुराड़ी, करावल नगर, सीमापुरी, बादली, किराड़ी, नांगलोई, उत्तम नगर, पटपड़गंज, लक्ष्मी नगर, संगम विहार, बदरपुर, पालम, देवली, राजेंद्र नगर जैसी विधानसभा सीटों पर पूर्वांचलियों का प्रभाव है. इन सीटों पर उम्मीदवार की जीत-हार का फैसला इन्हीं लोगों के हाथ होता है. इन्हीं में तीन सीटें बुराड़ी, किराड़ी और सीमापुरी सीटें पिछली बार समझौते में भाजपा ने जेडीयू को दी थी.
झारखंड में मांगी 10 सीटें तो मिलीं सिर्फ 2
कुछ महीने पहले ही हुए झारखंड विधानसभा के चुनाव में भी जेडीयू ने एनडीए फोल्ड में रह कर चुनाव लड़ा था. जेडीयू पहले 10 सीटों की मांग कर रहा था, लेकिन भाजपा ने सिर्फ दो सीटें ही दीं. उनमें भी एक सीट तो जेडीयू की सिटिंग सीट थी. निर्दलीय विधायक सरयू राय के जेडीयू ज्वाइन करने से जमशेदपुर पूर्वी सीट जेडीयू की हो गई थी. भाजपा ने वह सीट सरयू राय से ले ली और उन्हें उसके बदले जमशेदपुर पश्चिमी की सीट दी. जेडीयू से सिर्फ सरयू राय ने ही जीत दर्ज की. भाजपा को झारखंड का सबक भी याद है. दो सीटें मिलने से नीतीश कुमार की नाराजगी भी नजर आई. उन्होंने बिहार से ही अलग होकर बने झारखंड में न अपने उम्मीदवारों का चुनाव प्रचार किया, बल्कि एनडीए से भी दूर ही रहे.
अरुणाचल-मणिपुर में जेडीयू के विधायक टूटे
भाजपा ने आरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में जेडीयू के विधायकों को तोड़ लिया था. अरुणाचल प्रदेश में जब जेडीयू के विधायक भाजपा ने तोड़े, उस वक्त दोनों बिहार में साथ-साथ सरकार चला रहे थे. पहले भाजपा ने अरुणाचल प्रदेश में जेडीयू के 6 में पांच विधायकों को तोड़ा था. बाद में मणिपुर के जेडीयू विधायक को भी अपने पाले में कर लिया. इससे भी यह साबित होता है कि भाजपा बिहार से बाहर जेडीयू को जमीन नहीं देना चाहती. दिल्ली में अगर जेडीयू की इच्छा पर पानी फिर गया, जैसे कि संकेत मिल रहे हैं, तो यह बात पक्के तौर पर मान लेनी होगी कि जेडीयू को बिहार तक ही सिमटा कर भाजपा रखना चाहती है.
बिहार में जेडीयू-भाजपा के रिश्ते ठीक नहीं?
बिहार में भी भाजपा और जेडीयू के रिश्ते की डोर अब पहले की तरह मजबूत नहीं रही. नीतीश कुमार दोस्ती में ईमानदारी का इजहार तो करते रहे हैं कि पहले की गलती नहीं दोहराएंगे. एनडीए में ही बने रहेंगे. पर, भाजपा को शायद उनसे मिले अनुभव निश्चिंत नहीं रहने देते. समय-समय पर नीतीश के दगा देने का संशय भाजपा नेताओं के मन में अब भी बना हुआ है. इस संशय को हवा आरजेडी के नेता देते रहते हैं. तेजस्वी यादव कभी नीतीश के गलत पार्टी के संसर्ग में होने पर अफसोस जताते हैं तो उनकी ही पार्टी के विधायक भाई वीरेंद्र जल्द ही सियासी खेल की बात कह कर नीतीश कुमार को संदिग्ध बना देते हैं.
Tags: CM Nitish Kumar, Delhi Elections, Nitish kumarFIRST PUBLISHED : December 28, 2024, 10:55 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed