पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए आप भी कर सकते हैं ऐसे काम नहीं है कोई झाम

Environment Initiative: सर्वेंद्र विक्रम सिंह ने बताया कि मेरे पिता स्व. राम केर सिंह को पर्यावरण से बेहद प्रेम था. पौधे लगाना और देखभाल करना उनका एक शौक था. जिस समय मैं पढ़ाई करता था उस समय पिताजी के साथ हम भी पेड़ पौधों के बीच रहा करते थे और बड़ा अच्छा लगता था.........

पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए आप भी कर सकते हैं ऐसे काम नहीं है कोई झाम
रिपोर्ट- सनन्दन उपाध्याय बलिया: देश भर में पर्यावरण को लेकर जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है. खुद सरकार अधिक से अधिक पौधे लगाने को लेकर तमाम हथकंडे अपना रही है लेकिन, बलिया में पर्यावरण (Environment) के प्रति एक अलग ही नजारा दिखाई दिया. आपने अधिकतर लोगों को तुलसी या अन्य पौधे भेंट करते हुए देखा होगा लेकिन, बात अगर बलिया की करें तो यहां श्राद्ध कर्म (मृत्यु के बाद ब्रह्मभोज) के दौरान ब्राह्मणों को आम का पेड़ भेंट करते हुए देखा गया. आपको बता दें की मुड़ेरा गांव निवासी राम केर सिंह का श्राद्ध कर्म था, जहां सैकड़ों पंडित शमिल हुए थे. परंपरा के मुताबिक, उक्त ब्रह्मभोज में भोजन के बाद अंग वस्त्र और दक्षिण तो दिया ही गया लेकिन इसके अलावा हर एक पंडित को एक आम का पेड़ भी भेट किया गया. दरअसल, यह आयोजन पहली बार नहीं बल्कि प्राचीन काल से होता आ रहा है, परंतु आम के पेड़ भेंट करने की चर्चा हर जुबान पर सुनाई दी. आइए विस्तार से जानते हैं. मौनी बाबा महाविद्यालय के प्रबंधक सर्वेंद्र विक्रम सिंह ने लोकल 18 को बताया कि वो बलिया जनपद के मुड़ेरा गांव के रहने वाले हैं. आज पिताजी का श्राद्ध कर्म था जिसमें ब्राह्मण आए थे. यह एक प्राचीन परंपरा है जिसमें, ब्राह्मणों को आंगन में भोजन कराकर दक्षिणा वस्त्र आदि दान देने का महत्व है. सर्वेंद्र जी ने कहा कि पिताजी की याद में वो ब्राह्मणों को फलदार वृक्ष दान दिए. उन्होंने अन्य लोगों से भी अपील किया कि यह सभी के हित में है इसलिए सबको करना चाहिए जिससे हमारा पर्यावरण शुद्ध हो सके ताकि हम स्वस्थ रहें. पिताजी को था पर्यावरण से बेहद लगाव सर्वेंद्र विक्रम सिंह ने बताया कि मेरे पिता स्व. राम केर सिंह को पर्यावरण से बेहद प्रेम था. पौधे लगाना और देखभाल करना उनका एक शौक था. जिस समय मैं पढ़ाई करता था उस समय पिताजी के साथ हम भी पेड़ पौधों के बीच रहा करते थे और बड़ा अच्छा लगता था. यही कारण रहा की मैं भी पढ़ाई में पर्यावरण विषय ही चयन किया. इसी के दौरान पिताजी की मृत्यु के बाद पुरानी परंपरा के तहत श्राद्ध कर्म यानी ब्रह्म भोज में मैंने अपने पिताजी के याद में ब्राह्मणों को दक्षिण और अंग वस्त्र के अलावा आम के पौधे भी दान किए. क्या है ब्रह्मभोज? आचार्य राजकुमार पंडित ने बताया कि ब्रह्मभोज का अर्थ यह होता है कि “ब्राह्मणों को भोजन कराना”. यह ब्राह्मणों को भोजन कराने की एक प्राचीन परंपरा है जिसे बहुत महत्वपूर्ण और शुभ माना जाता है. यह कई अवसरों पर किया जाता है जैसे – बच्चे का जन्म, उपनयन संस्कार, विवाह, पितृपक्ष और यहां तक कि किसी के मृत्यु पर भी. ऐसी मान्यता है कि ब्रह्मभोज ब्राह्मणों का आशीर्वाद, पुण्य और पूर्वजों की आत्माओं को संतुष्ट करने के लिए किया जाता है. पुरानी परंपरा आज भी बरकरार खास तौर से पुरानी परंपरा में श्राद्ध संस्कार की बात करें तो इस आधुनिक युग में कहीं न कहीं यह परंपरा लुप्त होती जा रही है. लेकिन आज भी खड़े होकर के भोजन करने के सिस्टम को तभी शुरू किया जाता है, जब पुरानी परंपरा के तहत आंगन में ब्राह्मणों को भोजन कर दिया जाता है. इसलिए कहीं न कहीं यह परंपरा आज भी जीवित है. पर्यावरण हमारे जीवन का महत्व पूर्ण अंग सर्वेंद्र विक्रम सिंह ने आगे कहा कि यह मैं भी कहीं नहीं देखा था लेकिन, पिताजी से जोड़ते हुए इसको शुरू किया क्योंकि पर्यावरण जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. इसे अगर हर कोई अपनाता है तो हमारा स्वास्थ्य भी बेहद सुखी और सुरक्षित रहेगा. इसलिए पिताजी के याद में मैंने यह काम किया है. Tags: Local18FIRST PUBLISHED : August 25, 2024, 19:39 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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