फल्गु तट पर पिंडदान से सभी पीढ़ियां होती हैं तृप्त श्राद्ध तिथि भी होती है तय
फल्गु तट पर पिंडदान से सभी पीढ़ियां होती हैं तृप्त श्राद्ध तिथि भी होती है तय
Pitru Paksha News: पितरों की शांति और तृप्ति के लिए तर्पण आज से शुरू हो चुका है. तर्पण और अर्पण का विधि विधान आगामी 2 अक्टूबर तक चलता रहेगा. गया जी में इस अवसर पर लाखों की भीड़ जुट रही है और अपने पूर्वजों के ये फल्गु नदी के तट पर पिंडदान कर रहे हैं. इसके कुछ विधि विधान भी हैं जिसे हर सनातनी को जानना चाहिये.
गया. विश्व विख्यात पितृपक्ष मेला के दूसरे दिन फाल्गुनी नदी में स्नान और नदी के तट पर खीर के पिंड से पिंडदान श्राद्ध का विधान होता है. मान्यता है कि फल्गु नदी के तट पर खीर के पिंड से पिंडदान करने से सभी कुल के पीढ़ियां तृप्त हो जाती हैं और पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. पितृपक्ष मेला में अलग-अलग दिन को अलग-अलग पिंडवेदियों पर पिंडदान और तर्पण का विधान है.
गया के फल्गु देवघाट पर दिल्ली से एक परिवार अपने पूर्वजों के मोक्ष की कामना के लिए पहुंचे हैं. यह परिवार दिल्ली कोलकाता और सूरत में रहता था, लेकिन सभी एक साथ मिलकर गया जी में पहुंचे हैं और अपने पितरों की मोक्ष की प्राप्ति के लिए पिंडदान कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि यहां आकर काफी शांति मिल रही है और यहां की व्यवस्था भी काफी अच्छी है.
बता दें कि तर्पण और अर्पण का काम 2 अक्टूबर को पितृ विसर्जन अमावस्या तक चलेगा. इस दौरान पुरोहितों के अनुसार, वंशज अपने पितरों का श्राद्ध और तर्पण कर उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें. श्राद्ध पक्ष के जल और तिल दीवान द्वारा तर्पण किया जाता है जो जन्म से लेकर मोक्ष तक साथ दे, वही जल है. तिलों को देवान्न कहा गया है इसे ही पितरों को तृप्ति होती है. दिल्ली से गया जी पहुंचा पूरा परिवार कर रहा पूर्वजों का पिंडदान.
पूर्वजों की मृत्यु तिथि अगर याद ना हो तो श्राद्ध कर्म के लिए इस प्रकार से तिथियां तय की गई हैं. प्रतिपदा को नाना-नानी, पंचमी को जिनकी मृत्यु अविवाहित में हो गई हो. नवमी को माता और अन्य महिलाओं का पिंडदान. एकादशी और द्वादशी को पिता-पिता और मां का. चतुर्दशी को जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो. अमावस्या को ज्ञात अज्ञात सभी पितरों का. जिस हिंदी तिथि को मृत्यु हुई है श्राद्ध उसी दिन होना चाहिए अन्यथा पितृ अमावस्या को किया जा सकता है.
श्राद्ध केवल तीन पीढियों तक का ही मान्य होता है धर्म शास्त्रों के अनुसार, श्राद्ध के सूर्य के कन्या राशि में आने पर परलोक से पितृ अपने स्वजन के पास आ जाते हैं. देवतुल्य स्थिति में तीन पीढ़ी के पूर्वज गिने जाते हैं. पिता को वसु के समान, रूद्र दादा के समान और परदादा आदित्य के समान माने गए हैं. इसके पीछे एक कारण यह भी है कि मनुष्य की स्मरण शक्ति केवल तीन पीढियों तक ही सीमित रहती है.
FIRST PUBLISHED : September 18, 2024, 17:29 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed