बरसात में अमरूद में रोग लगने का होता है खतरा बचाव के लिए अपनाएं ये आसान उपाय
बरसात में अमरूद में रोग लगने का होता है खतरा बचाव के लिए अपनाएं ये आसान उपाय
उद्यानिक के क्षेत्र में 10 वर्षों का अनुभव रखने वाले रायबरेली जिले के उद्यान निरीक्षक बताते हैं कि बारिश का के मौसम में कुछ आसान टिप्स अपना कर किसान अमरूद की फसल की फसल को कीट एवं रोग से बचाव कर सकते हैं.
सौरभ वर्मा/रायबरेली: वैसे तो बारिश का मौसम फसलों के लिए बहुत लाभकारी होता है. इस मौसम में प्राकृतिक रूप से सिंचाई हो जाती है. जिससे मिट्टी में नमी बनी रहती है और पौधों की वृद्धि बेहतर होती है. इसके अलावा वर्षा के कारण मिट्टी में पोषक तत्वों का संचय भी होता है, जो फसलों की उपज में वृद्धि करता है.अच्छी वर्षा के कारण जल स्तर भी ठीक रहता है. जिससे किसानों को सिंचाई के लिए पर्याप्त जल मिलता है. परंतु कुछ फसलें ऐसी हैं जो बारिश के मौसम में खराब होने लगती हैं. इन्हीं फसलों में अमरूद की फसल भी है. जिस पर बारिश के मौसम में कीट एवं फंगस एवं फफूंद जनित रोग लग जाते हैं, जो अमरूद के फल एवं पौधे को प्रभावित करता है. जिसकी वजह से किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है. तो आइए उद्यान निरीक्षक से जानते हैं बारिश के मौसम में अमरूद की खेती करने वाले किसान अपनी फसल का किस प्रकार से बचाव कर सकते हैं.
उद्यानिक के क्षेत्र में 10 वर्षों का अनुभव रखने वाले रायबरेली जिले के उद्यान निरीक्षक बताते हैं कि बारिश का के मौसम में कुछ आसान टिप्स अपना कर किसान अमरूद की फसल की फसल को कीट एवं रोग से बचाव कर सकते हैं.
पौधों की सफाई: पेड़ों के आस-पास की गिरी हुई पत्तियाँ और फलों को हटाएं. यह फफूंद और कीटों के संक्रमण को रोकने में मदद करता है.
नियमित निरीक्षण: पौधों का नियमित निरीक्षण करें.किसी भी प्रकार के रोग या कीट के लक्षण दिखाई देने पर तुरंत उसे पौधे से हटा दे.
अच्छी जल निकासी: खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें. ताकि पानी का ठहराव न हो.जल ठहराव से फफूंदजनित रोगों का खतरा बढ़ जाता है.
सिंचाई का प्रबंधन: बारिश के दौरान सिंचाई को नियंत्रित करें और केवल आवश्यकतानुसार ही पानी दें.
फफूंदनाशक: बविस्टिन, कार्बेन्डाजिम, या कापर ऑक्सीक्लोराइड जैसे फफूंदनाशकों का प्रयोग करें. इनके उपयोग से फफूंदजनित रोगों से बचाव होता है.
कीटनाशक: नीम तेल, इमिडाक्लोप्रिड, या बायोपेस्टीसाइड्स का उपयोग करें. यह कीटों को नियंत्रित करने में मदद करेगा.
जैविक कीटनाशक: नीम का तेल, ट्राइकोडर्मा, बायोपेस्टीसाइड्स, और अन्य जैविक उत्पादों का उपयोग करें.
प्राकृतिक शत्रु: कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं को बढ़ावा दें, जैसे कि परजीवी ततैया और लेडीबर्ड बीटल.
मल्चिंग: पौधों के चारों ओर मल्चिंग करें. इससे मिट्टी की नमी बनी रहती है और फफूंदजनित रोगों का खतरा कम होता है.
कटाई-छंटाई: पौधों की उचित कटाई-छंटाई करें ताकि हवा और प्रकाश का संचार अच्छा हो सके.इससे पौधों पर नमी कम रहेगी और फफूंदजनित रोगों का खतरा कम होगा.
फलों की बैगिंग: फलों को कागज या प्लास्टिक के बैग में ढक दें.इससे फल मक्खी और अन्य कीटों से बचाव होगा.
नीम और लहसुन का स्प्रे: नीम और लहसुन के मिश्रण का स्प्रे करें.यह प्राकृतिक कीटनाशक का काम करता है.
घरेलू उपचार: सोडा और पानी के मिश्रण से पौधों पर छिड़काव करें. यह फफूंदजनित रोगों को नियंत्रित करने में मदद करेगा.
प्रतिरोधी किस्में: रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें जो फफूंद और कीटों के प्रति अधिक सहनशील हों.
समय पर कटाई: फलों की समय पर कटाई करें ताकि वे अधिक समय तक पौधों पर न रहें और रोगों का खतरा कम हो.
Tags: Hindi news, Local18FIRST PUBLISHED : August 11, 2024, 10:26 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed