यूपी के बुनकरों का हाल बेहाल जानिए इसके पीछे की वजह

बुनकर रियाज बताते हैं कि बुनकरी उनका पुश्तैनी करोबार है और बाप-दादा के जमाने से चला रहा है. पहले यह कारोबार बहुत अच्छा था, लेकिन अब इस पर ग्रहण लगना शुरू हो गया है. सूत की चादर, अगोछे और दरी आदि बनाने का काम बुनकर किया करते हैं, लेकिन बदली हुई स्थिति मुश्किलें पैदा कर रहा है. अफसरशाही के चलते बुनकरों का धंधा चौपट हो रहा है.

यूपी के बुनकरों का हाल बेहाल जानिए इसके पीछे की वजह
इटावा. उत्तर प्रदेश के इटावा में आजादी के पहले से ही बुनकर अपना कारोबार कर रहे है. एक अनुमान के मुताबिक 50 हजार से अधिक लोग इस धंधे से जुड़े हुए हैं. समय के साथ इस कारोबार में आए बदलाव ने बुनकरों के कारोबार को हासिये पर ला दिया है. एक समय सूती वस्त्रों की बड़े पैमाने पर यहां से निर्यात होता था. देश के विदेशी मुद्रा भंडार में खासा योगदान हुआ करता था, लेकिन आज इटावा के बुनकरों का धंधा हासिये पर चला गया है. अफसरशाही के चलते बुनकरों की स्थिति है बदहाल बेसक बुनकरों का कारोबार हासिये पर चला गया है, लेकिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आर्दशों पर चलकर बुनकरों ने अपने कारोबार को चालू रखा है. इटावा के बुनकर आज भी सरकार के रहमोकरम के बजाय गांधी जी के आर्दशों चलकर अपना कमरतोड़ मेहनत के बलबूते कारेाबार को आगे बढ़ा रहे हैं. जानकार बताते हैं कि इटावा में बुनकरी का कारोबार आजादी से बहुत पहले शुरु हो गया था. 1929 में जब महात्मा गांधी इटावा आए थे, तो इनका सूत प्रेम देखकर बुनकरों के मन में नया उत्साह पैदा हुआ और आजादी के वक्त तक इटावा में यह कारोबार बहुत तेजी से बढ़ा. सरकार ने जैसे ही बुनकरों के विकास का बीड़ा अपने हाथों में लिया, तब से बदहाली का सिलसिला शुरू हो गया. आजादी के पहले का उत्साह सरकारी योजनाओं और अफसरशाही का भेंट चढ़ गया. बुनकरों के कारोबार पर लग गया है ग्रहण सूत के दामों में काफी वृद्धि हो गई, जिससे सूत खरीदकर कपड़ा तैयार करने में बहुत लागत आने लगा. जिसे उत्पदात माल की कीमतें बढ़ गई और बिक्री पर इसका खासा असर पड़ रहा है.  इटावा के बुनकर  दूसरे शहरों की मंडियों माल को बेचने के लिए ले जाते हैं. लेकिन, अब  माल की खरीद में बड़ी कमी आई है. बुनकर रियाज बताते हैं कि बुनकरी उनका पुश्तैनी करोबार है और बाप-दादा के जमाने से चला रहा है. पहले यह कारोबार बहुत अच्छा था, लेकिन अब इस पर ग्रहण लगना शुरू हो गया है. वहीं बुनकर असलम अंसारी बताते है कि एक बड़ी आबादी इस कारोबार से जुड़ी हुई है. सूत की चादर, अगोछे और दरी आदि बनाने का काम बुनकर किया करते हैं, लेकिन बदली हुई स्थिति मुश्किलें पैदा कर रहा है. Tags: Etawah news, Local18, Textile Business, Uttarpradesh newsFIRST PUBLISHED : August 17, 2024, 16:36 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed