सारण में पॉलिटिकल मर्डर भूलिए मत वो दौर जब एक चुनाव में हुई थी 196 हत्याएं

बीते करीब दो दशक में बिहार बदल गया है. यह वही बिहार है जहां कभी एक चुनाव में 196 लोगों की हत्या हुई थी. लेकिन, इसी बिहार में 2015 के विधानसभा और उसके बाद के तमाम चुनावों में करीब-करीब न के बराबर हिंसा हुई. मगर, सारण में मंगलवार की हत्या की घटना ने एक बार फिर जनता में सिहरन पैदा कर दी है.

सारण में पॉलिटिकल मर्डर भूलिए मत वो दौर जब एक चुनाव में हुई थी 196 हत्याएं
सारण जिले में वोटिंग से अगले दिन सुबह-सुबह चुनावी हिंसा में एक युवक की हत्या और दो अन्य के गंभीर रूप से घायल होने की घटना ने लोगों में सिहरन पैदा कर दी है. इस घटना के बाद जिला मुख्यालय छपरा में दो दिनों के लिए इंटरनेट सस्पेंड कर दिया गया है. सुरक्षा व्यवस्था बेहद कड़ी कर दी गई है. पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए दो लोगों को गिरफ्तार भी कर लिया है. घायलों का इलाज के लिए पटना ले जाया गया है. लेकिन, इस घटना ने बिहार के लोगों में एक तरह की सिहरन पैदा कर दी है. ऐसा हो भी क्यों न… आखिर यह वही राज्य है जो एक समय देश में चुनावी हिंसा का पर्याय बन गया था. एक पूरी पीढ़ी इस हिंसा का शिकार बन गई थी. बात 2001 के पंचायत चुनाव की हो या फिर 1990 से 2004 के बीच हुए अन्य चुनावों की. हर बार चुनावी हिंसा में बड़ी संख्या में लोग मारे गए. कई मांओं के कोख सून हो गए. कई परिवार तबाह हो गए. कई गांव-कस्बे की पूरी आबादी पलायन को मजबूर हो गई. लोकतंत्र शर्मसार अकेले 2001 के पंचायत चुनाव के दौरान 196 लोगों की हत्या हुई थी. यह बिहार ही क्या, पूरे देश के लोकतंत्र को शर्मसार करने वाली घटना थी. राज्य में 23 साल बाद पंचायत चुनाव हुए थे. अपराधियों ने एक तरह से लोकतंत्र को लूट लिया था. हजारों जगहों से बूथ लूटने की खबर आई थी. इंडियन एक्सप्रेस अखबार की एक पुरानी रिपोर्ट के मुताबिक 1990 से 2004 के बीच बिहार में हुए चुनावों में 641 लोगों की हत्या हुई थी. इसी कारण राज्य जंगल राज का पर्याय बन गया था. यह रिपोर्ट बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने इस अखबार के लिए विशेष तौर पर लिखी थी. हाल ही में सुशील मोदी का कैंसर की वजह से निधन हो गया. 2004 के लोकसभा चुनाव 28 लोगों ने गंवाई जान केवल 2004 के लोकसभा चुनाव में 28 लोगों की हत्या हुई थी. उस चुनाव के बाद केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार सत्ता से बेदखल हुई थी. उसी सारण से राजद सुप्रीमों लालू प्रसाद यादव विजयी हुए थे. उस चुनाव में भी धांधली के आरोप लगे थे और कई बूथों पर दोबारा वोट डाले गए थे. बूथ लूटने से जुड़ी घटनाओं में अधिकतर लोगों की मौत हुई थी. केजे राव की एंट्री और बदल गया बिहार 2005 के विधानसभा और फिर 2009 के लोकसभा चुनाव के साथ बिहार की स्थिति बेहतर होने लगी. चुनाव आयोग ने बेहद शख्त रुख अपनाया. बैलेट पेपर की जगह ईवीएम से वोटिंग होने लगी. इसी दौरान ही चुनावी प्रक्रिया में एक शख्स की एंट्री हुई. वह थे केजे राव. चुनाव आयोग ने 2005 के विधानसभा चुनाव के लिए केजे राव को बिहार में पर्यवेक्षक नियुक्त किया था. इस एक शख्त अधिकारी के आगे पूरे बिहार के माफिया खामोश हो गए. बूथ लूटने की बात तो दूर… बूथ के आसपास भी अपराधी किस्म को लोग नजर नहीं आते थे. जनता ने भयमुक्त माहौल में वोट डाला और बिहार में सत्ता का परिवर्तन हुआ और करीब 15 साल के लालू-राबड़ी राज का अंत हुआ. घट गई हिंसा यह केजे राव का प्रभाव ही था कि बिहार में 2005, 2010 और 2015 के विधानसभा और 2009 व 2014 के लोकसभा चुनावों बहुत कम हिंसा हुई और केवल 15 लोगों की हत्या हुई. आप सहज ही अनुमान लगा सकते हैं कि कभी एक चुनाव में 25 से 30 लोगों की हत्या होती थी उसी बिहार में यह आंकड़ा औसतन तीन पर आ गया. 2015 के चुनाव में कोई हिंसा नहीं आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि उसी बिहार में 2015 का विधानसभा चुनाव हुआ था. राजनीतिक रूप से यह चुनाव अपने पूर्व के तमाम चुनावों से अलग था. इसमें पीएम मोदी के खिलाफ लालू और नीतीश साथ आ गए और राजद, जदयू और कांग्रेस का महागठबंधन बनाया. इस गठबंधन को भारी जीत मिली थी. खैर, इससे इतर बिहार के चुनावी इतिहास में यह चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि उस चुनाव के दौरान हिंसा में किसी व्यक्ति की जान नहीं गई थी. एक नया बिहार बन चुका था, जिसमें जनता ने अपराध और अपराधियों से मुंह मोड़ लिया था. 2015 के बाद के तमाम चुनावों यानी 2019 के लोकसभा और 2020 के विधानसभा चुनावों में हिंसा की कोई बड़ी घटना नहीं घटी. पंचायत चुनावों में भी हिंसा की छिटपुट घटनाएं ही हुई. लेकिन, मंगलवार को सारण में वोटिंग के अगले दिन हुई हत्या की घटना ने नब्बे के दशक की बिहार की तस्वीर सामने ली दी है. Tags: Loksabha Election 2024, Loksabha Elections, Saran NewsFIRST PUBLISHED : May 21, 2024, 14:33 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed