कभी किराए के लिए नहीं होते थे पैसेआज हैं कैंसर के बड़े डॉक्टर
कभी किराए के लिए नहीं होते थे पैसेआज हैं कैंसर के बड़े डॉक्टर
डॉ कमल सिंह ने 1985 में एमबीबीएस व एमएस की डिग्री मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज प्रयागराज से ली. जिसके बाद अभी तक 15000 से ज्यादा मरीज का ऑपरेशन कर उनको कैंसर से मुक्ति दिला चुके हैं.
रजनीश यादव/प्रयागराज : प्रयागराज में मोहक अस्पताल के डॉ कमल सिंह कैंसर रोग विशेषज्ञ हैं. डॉक्टर बनने के पहले उनका जीवन संघर्ष से भरा रहा. बताते हैं कि मेडिकल की पढ़ाई पढ़ते समय हमेशा पैसे की समस्या तो रही लेकिन भाषा अधिक कठिन समस्या बन गई थी . एमबीबीएस की डिग्री लेने के बाद तमिलनाडु से कैंसर अस्पताल से एमसीएच की डिग्री लेनी चाही. लेकिन इसके आवेदन के लिए ही लंबा इंतजार करना पड़ा. पहले अखबार में सूचना आई थी लेकिन कॉलेज वाले छोटे अखबार को सूचना देते थे. जिसको हम लोग नहीं खरीदते थे. इससे मोती लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज प्रयागराज में एमबीबीएस करते समय इस समस्या को खूब झेला.
अभ्यास के दौरान हुई कई समस्याएं
डिग्री मिलने के बाद जब प्रेक्टिस करना चाहा तो 3 साल तक ₹8000 में हमने कई डॉक्टरों के नीचे प्रेक्टिस किया. यह समय काटने में बड़ा मुश्किल होता था, क्योंकि इतने रुपए में तो रूम का किराया निकलना मुश्किल हो जाता था. बताते हैं कि आज प्रयागराज के मोहक अस्पताल में कैंसर स्पेशलिस्ट के रूप में काम करने का मौका मिला है. हमारे यहां आने वाले मरीज दवा के साथ-साथ मानसिक रूप से भी स्वस्थ होते हैं क्योंकि हम उनको अपने व्यवहार और सेवा से खुश करके ही भेजते हैं.
गरीब मरीजों की करते हैं मदद
डॉ कमल सिंह बताते हैं कि कैंसर की बीमारी का इलाज काफी महंगा होता है. ऐसे में कुछ गरीब पेशेंट आते हैं जिनको वाकई में पैसे की जरूरत होती है. हम अपने अस्पताल प्रशासन से बात करके भरपूर मदद करते हैं. इसके साथ ही पेशेंट के साथ आने वाला कोई परिवार का सदस्य यदि धूम्रपान करता है. तंबाकू गुटखा खाता है तो उसको फटकार भी लगते हैं.
15 हजार से अधिक मरीजों का कर चुके इलाज
डॉ कमल सिंह ने 1985 में एमबीबीएस व एमएस की डिग्री मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज प्रयागराज से ली. जिसके बाद अभी तक 15000 से ज्यादा मरीज का ऑपरेशन कर उनको कैंसर से मुक्ति दिला चुके हैं.
डॉक्टर बनने में किया बड़ा संघर्ष
डॉक्टर कमल सिंह जब एमसीएच करने के लिए चेन्नई के संस्थान में आवेदन किया, तो उनके पास चेन्नई तक जाने के लिए पैसे नहीं थे. वहां पर दोस्तों की मदद से पहुंचे और जब प्रवेश मिला, तो भाषा ही समस्या के कारण वहां पर भेदभाव का सामना करना पड़ा. वह बताते हैं कि जब इस डिग्री को लेकर हमारे सामने समस्याएं आई तो वह परेशान होकर मरीन बीच पर जाना चाहते थे. लेकिन रास्ता पता नहीं होने के कारण जब तमिल लोगों से सहायता मांगी, तो बताने से इंकार कर दिया. लेकिन कानपुर आईआईटी से पड़ा एक तमिल लड़के ने हमारी मदद की और मरीन बीच तक हमें पहुंचाया.
यहां से किये मेडिकल रिसर्च
डॉक्टर कमल सिंह ने बताया कि उन्होंने फेलोशिप की मास्टर ऑफ सर्जन की डिग्री राजीव गांधी संस्थान से ली थी. वहां से आने के बाद उन्होंने सरकारी सेवा में ना जाकर निजी सेवा को चुना और इसी के माध्यम से लोगों का सेवा कर रहे हैं. बताते हैं कि शुरुआत के दिनों में हमारे पास क्लीनिक खोलने के पैसे नहीं थे. यहां तक की फोन का बिल और स्कूटर का तेल भी दोस्तों की मदद से ही किसी बहाने से पैसे उधार लेकर भरवाते थे. लेकिन आज इन्हीं सब की दुआओं से प्रयागराज में मोहक हॉस्पिटल कैंसर इलाज को लेकर फेमस है.
Tags: Hindi news, Local18, Medical18FIRST PUBLISHED : May 19, 2024, 15:14 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed