मेहर = दहेज मुस्लिम शादियों में शौहर क्यों देते हैं अपनी बेगम को मेहर

इस्लामिक कानून में मेहर एक ऐसी प्रथा है, जो निकाह से पहले शौहर अपनी बेगम को देता है. मुस्लिम धर्म गुरुओं की मानें तो ये दहेज से बिल्कुल अलग है. इस रस्म का शरीयत के कानून में मिलता है. इस रस्म के द्वारा शौहर अपनी बेगम को सोना के जवाहारात के अलावा पैसा भी देते हैं.

मेहर = दहेज  मुस्लिम शादियों में शौहर क्यों देते हैं अपनी बेगम को मेहर
वसीम अहमद/अलीगढ़: इस्लाम धर्म में शादी के दौरान एक धार्मिक रवायत होती है, जिसे मेहर कहते हैं. इस रस्म के अनुसार वर को शादी के लिए वधु को मेहर के रूप में पैसे, गहने या कोई अन्य मांगी गई चीज देनी होती है. सामान्य रिवाज यही है कि इस रस्म में लड़की वाले मेहर के पैसे ही मांगते हैं. मेहर की रस्म के लिए मुस्लिम समाज में सोना, पैसा या दूसरी कीमती चीजें देने का प्रचलन है. इसे दुल्हन के जीवन के सुरक्षा के तौर पर भी जाना जाता है. ताकि भविष्य में पति से प्रताड़ित होने पर पत्नी अपना जीवन व्यापन इस मेहर की रकम से कर सके. मेहर की कोई उच्च सीमा नहीं है. यह पत्नी द्वारा कितना भी रखा जा सकता है. यह केवल पत्नी की स्वीकृति पर निर्भर करता है. लोकल 18 से बात करते हुए मुफ़्ती ज़ाहिद अली ने बताया कि मेहर का इस्लाम में संस्कार का एक तरीका है कि जब कोई मर्द किसी औरत से शादी करता है, तो मेहर निकाह से पहले तय होता है.  शौहर अपनी बीवी को एक माकूल रकम तोहफे में देता है. इस रस्म से ही इस्लामी रवायत पूरी होती है. ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से शौहर के दिल में बेगम के लिए इज्जत बढ़ती है. इस्लाम में मेहर देना हर मुस्लिम शौहर का फर्ज़ है. मेहर का एक मकसद यह भी होता है कि औरत को अपने पिता के घर से जाना होता है और शौहर के घर उसे पहुंचना होता है. जहां उसकी पर्सनल जरूरत व ख्वाहिश पूरी होती हैं.  इस लिहाज से भी मेहर की रकम औरत के पास होना जरूरी है. इस्लामी कानून के हिसाब से पत्नी के सारे खर्चे उसके पति को उठाने होते हैं, लिहाजा इसके अलावा पत्नी के पास उसकी अपनी एक रकम भी होनी चाहिए. मेहर और दहेज दोनों अलग-अलग मुफ्ती जाहिद अली आगे बताते हैं कि शरीयत के कानून के हिसाब से बाप की जायज़ाद में बेटे के मुकाबले बेटी का हिस्सा कम होता है. मिसाल के तौर पर जैसे कि पिता के इंतकाल के बाद अगर ₹300 है, तो उसमें से ₹200 बेटे के और ₹100 बेटी के होंगे. इसी गैप को पूरा करने के लिए लड़की की शादी के दौरान उसके शौहर के द्वारा मेहर की रकम दी जाती है, ताकि उसके पास भी उसके भाई के बराबर का हिस्सा हो. बहुत से लोग इस मेहर की रस्म को दहेज से जोड़ते हैं जो गलत है. मेहर और दहेज दोनों अलग-अलग कॉन्सेप्ट हैं. . Tags: Aligarh news, Local18FIRST PUBLISHED : May 1, 2024, 15:00 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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