2018 का मुंगेर का वह कांड जिसके बाद बिहार के गैंगस्टर्स AK47 से लैस हुए
2018 का मुंगेर का वह कांड जिसके बाद बिहार के गैंगस्टर्स AK47 से लैस हुए
Munger AK 47 kaand: अवैध हथियारों की फैक्ट्रियों के लिए बदनाम मुंगेर से ही बिहार के छोटे-मोटे अपराधियों से लेकर खूंखार गैंगस्टर और सरकार द्वारा बैन संगठन तक यहीं से हथियार लेते. कैसे खुलासा हुआ इस गांव में घर घर में चल रहे अपराध के धंधे का...
छह साल पहले 2018 की यह एकदम आम सी शाम थी जो चंद मिनटों में बेहद खास होने जा रही थी. 29 अगस्त को शाम करीब 4.30 बजे 30 साल का एक आदमी जमालपुर रेलवे स्टेशन से बाहर आया. हाव भाव से संदिग्ध और डरा छुपा सा यह आदमी जुबली वेल इलाके की ओर बढ़ गया. पास में था ट्रॉली बैग. पुलिस की एक बाइक सवार क्विक रिस्पॉन्स टीम ने उसे तुरंत रोक लिया. बैग को लेकर पूछताछ की. अपना नाम उसने इमरान बताया. मगर पूरी पूछताछ में वह घबराता सा लगा. बैग खोला तो पुलिस वाले दंग रह गए. इस बैग में था यह सामान- तीन एके-47 राइफल, 30 मैगजीन, एके-47 के सात पिस्टन, सात स्प्रिंग, सात बॉडी कवर, सात पिस्तौल, इतनी ही मात्रा में ब्रिज ब्लॉक और असॉल्ट राइफल के अन्य हिस्से! इमरान को गिरफ्तार कर लिया गया. कड़क पूछताछ में पहले से ही घबराए हुए इमरान ने राज उगल दिया. पता चला, ‘पुरुषोत्तम लाल नामक शख्स ने उसे जमालपुर रेलवे स्टेशन पर खेप सौंपी थी. हमेशा की तरह, वह लोकमान्य एक्सप्रेस में यात्रा कर रहा था और बैग इमरान को सौंपने के तुरंत बाद वापस चला गया.’ तुरंत जबलपुर पुलिस को सूचित किया गया. पुरुषोत्तम लाल को एमपी पुलिस ने धर दबोचा.
लेकिन कहानी का अंत यहीं पर नहीं था… कौन थे ये इमरान, पुरुषोत्तम और बाबू राम… कहां जुड़ते हैं इस पूरी कहानी के तार…
मगर इससे पहले इस धर पकड़ का अगला हिस्सा…
एक सप्ताह पहले ही तीन एके-47 की एक और खेप आई थी जिसे मोहम्मद शमशेर ने लिया था. इसके बाद छह सितंबर को मुंगेर के वर्धा इलाके से शमशेर को गिरफ्तार किया गया. उसके पास से एक बैग मिला जिसमें तीन एके-47, कारतूस और असॉल्ट राइफल के अन्य हिस्से थे. मुंगेर पुलिस को जबलपुर पुलिस ने बताया कि पुरुषोत्तम और सुरेश ठाकुर ने मुंगेर में 70 से अधिक एके-47 बेचने की बात कबूल की है.
अब पुलिस हक्की बक्की थी. इस सूचना के बाद पुलिस की एक बड़ी टीम ने दो दिनों तक बरदह गांव में छापेमारी की, मेटल डिटेक्टर से हर कोने की तलाशी ली गई. मशक्कत के बाद एक रात उन्हें रिजवाना खातून नामक महिला के घर की जमीन के नीचे छिपाकर रखे हथियारों और गोला-बारूद का एक और सेट मिला. दरअसल शमशेर ने इमरान की गिरफ्तारी के बाद अपने मामा मंजर खान को दो एके-47 राइफलें सौंपी थीं जो उन्होंने लोकमान्य और आयशा को दे दीं थीं. दोनों ने रिजवाना को विश्वास में लेकर उसके घर का दालान में दो राइफलें, दो डबल बैरल बंदूकें और भारी मात्रा में कारतूस छिपा दिए थे. सभी को गिरफ्तार कर लिया गया.
हथियारों का ये जखीरा, आम लोगों के अपराधी बनने और हथियारों की यहां से वहां सप्लाई…आखिर चल क्या रहा था…
दरअसल, मुंगेर के लोग ब्रिटिश काल की बंदूक फैक्ट्री में काम करते थे. ब्रिटिश तो चले गए लेकिन परिवारों की इस पीढ़ी ने परंपरा आगे अपनी संतानों को बढ़ा दी. बदलते वक्त के साथ वे चीनी, अमेरिकी पिस्तौल, राइफल जैसे हथियार बनाने लगे थे. अवैध हथियारों की फैक्ट्रियों के लिए बदनाम मुंगेर में छोटे-मोटे अपराधियों से लेकर खूंखार गैंगस्टर और सरकार द्वारा बैन संगठन तक यहीं से हथियार लेते.
सितंबर 2018 में मुंगेर के बरदह गांव से दो और एके-47 राइफल बरामद होने के बाद, जबलपुर आयुध कारखाने (ऑर्डिनेश फैक्टरी) से तस्करी कर लाए गए ऐसे हथियारों की संख्या एक पखवाड़े के भीतर आठ हो गई थी. क्या मामला इतना पेचीदा हो चला था कि इसे राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंपना पड़े… इस पूरे मामले में दो एंगल ज्यादा बड़े खतरे की ओर इशारा कर रहे थे-एक- आर्मी का एक कर्मचारी का इसमें शामिल होना. और, दूसरा- ऑर्डिनेंस फैक्ट्री से तस्करी कर लाए गए 100 से अधिक एके-47 का इस्तेमाल 2016 के ढाका आतंकवादी हमलों सहित अन्य आतंकी हमलों में किए जाने की संभावना.
2012 से 2018 के बीच जबलपुर ऑर्डिनेंस फैक्टरी से 100 से अधिक एके-47 राइफलों की तस्करी की गई. मुख्य आरोपी था पुरुषोत्तम जिसने डिपो में मौजूद सिविलियन अधिकारी को प्रत्येक एके-47 के लिए 50,000 रुपये देने का वादा किया था. पुलिस ने बागडोगरा में तैनात लांस नायक नियाजुल रहमान को गिरफ्तार किया जो मोहम्मद शमशेर का छोटा भाई था जिसके पास से तीन एके-47 बरामद की गईं. मुंगेर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक बाबू राम के मुताबिक, हथियारों की ताजा खेप, बड़ी मात्रा में कारतूस जमीन के तीन फीट नीचे छिपाए गए थे. तीन महिलाओं समेत सात लोगों को गिरफ्तारी की गई. हथियार तस्करी मामले में मुंगेर में 11 और जबलपुर में तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया.
पुरुषोत्तम और उसकी पत्नी चंद्रावती AK-47 की खेप लेकर सीधे मुंगेर जाते थे और उसे मोहम्मद शमशेर, इमरान और अन्य लोगों को देते थे. सुरेश ठाकुर ऑटोमेटिक राइफलों को टुकड़ों में तोड़-ताड़कर डिपो से बाहर ले जाता जबकि पुरुषोत्तम खुद ऑर्डिनेंस फैक्टरी के शस्त्रागार अनुभाग में काम करता था और 2012 में रिटायर हो गया था. ये दोनों मिलकर हर AK-47 को 5 लाख रुपये में बेचते.
पुलिस के लिए असली सिरदर्द यह पता लगाना था कि राइफलों का इस्तेमाल कौन कर रहा है? मुंगेर के एसपी बाबू राम ने बताया कि ये यह अपराधियों, नक्सलियों या यहां तक कि आतंकवादियों के हाथों में जा सकता है. 1 जुलाई, 2016 को बांग्लादेश के ढाका में हुए आतंकी हमलों में इन असॉल्ट राइफलों के इस्तेमाल होने का भी शक था. एक से अधिक राज्यों से जुड़े इस मामले की जांच में कई राज्यों की पुलिस को शामिल किया गया.
क्यों बनी रही एके-47 अपराधियों की खास पसंद…
30 गोलियों वाली घुमावदार मैगजीन के साथ ऑटोमैटिक असॉल्ट राइफल अपराधियों से लेकर आतंकवादियों की पसंद बनी रही है. छह साल पहले के इस केस से लेकर अब तक कुछ बदला नहीं है. बिहार झारखंड के नक्सली, माओवादी भी यहां से न सिर्फ ‘नकली’ बल्कि असली हथियार भी लेते रहे हैं. बिहार में गिरोह के सरगनाओं ने AK-47 के इस्तेमाल की शुरुआत 1991 में हुई थी. 90 के दशक की शुरुआत में तो बिहार में पुलिस बलों के पास भी AK-47 नहीं थी. 1991 में धनबाद के पुलिस अधीक्षक रणधीर वर्मा की हत्या AK-47 से गोली मारकर की गई थी. वर्मा ने खुद आगे बढ़कर बैंक लुटेरों को चुनौती दी थी.
Tags: Bihar News, Crime News, Munger newsFIRST PUBLISHED : August 30, 2024, 08:32 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed