योद्धा: संघर्ष की दास्तां सुनकर खड़े हो जाएंगे रोंगटे
योद्धा: संघर्ष की दास्तां सुनकर खड़े हो जाएंगे रोंगटे
Yoddha: News18hindi अपनी योद्धा सीरीज में हर बार कुछ ऐसे रियल हीरोज की कहानियां लेकर आ रहा है, जिन्हें पढ़कर आपके रोंगटे तो खड़े होंगे ही आपको कठिनाइयों, बुरे हालातों और ठोकरों में फिर से खड़े होने की हिम्मत भी मिलेगी. संघर्ष के दम पर जीवन में अलग मुकाम हासिल करने वाले लोगों की इस कड़ी में आज आप हरियाणा के छोटे से गांव किनाना से निकले डॉ. मनीष जांगड़ा की स्टोरी पढ़ने जा रहे हैं.
Yoddha: कठिनाइयों और विपरीज परिस्थितियों से जूझते हुए जो हार न माने और मंजिल को हासिल करके ही माने वास्तव में वही योद्धा है. हमारे आसपास ऐसे कई लोग होते हैं, जिनकी उपलब्धि पर हम तालियां तो बजाते हैं लेकिन उनकी सफलता के के पीछे के संघर्ष से अनजान होते हैं. jharkhabar.comhindi की योद्धा सीरीज में आज हम आपको ऐसे ही एक योद्धा के जीवन की वास्तविक कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने घर, समाज, स्कूल, कॉलेज से लेकर एमबीबीएस की पढ़ाई में ऐसी-ऐसी चीजें देखीं और झेलीं कि उनकी हिम्मत जवाब दे गई लेकिन कदमों के लड़खड़ाने के बाद भी ये फिर से खड़े हुए और आज हजारों डॉक्टरों की उम्मीद बन गए हैं. आइए जानते हैं इस योद्धा के बारे में…
ये कहानी शुरू होती है हरियाणा के जींद के किनाना गांव में बने दो कमरों के एक छोटे से घर से. बेहद ही गरीब परिवार के एक लड़के ने सरकारी स्कूल में 10 वीं में पढ़ते हुए डॉक्टर बनने का सपना देखा. उसे ये भी नहीं पता था कि डॉक्टर बनने के लिए उसे कितनी चीजों से लड़ना होगा. ये हैं फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन के फाउंडर और अध्यक्ष डॉ. मनीष जागड़ा. डॉक्टर समुदाय में आज शायद ही कोई हो, जो इन्हें न जानता हो. आइए इन्ही की जुबानी जानते हैं इनकी कहानी..
घर में टपकती छत और स्कूल में गैंगवार
‘चूंकि मैं गरीब परिवार से था तो बहुत सीधा-साधा, डरा-सहमा या कहें कि गंवार था, बस पढ़ाई से मतलब था लेकिन 11वीं में 200 रुपये सालाना फीस वाले वहीं पास के सरकारी इंटर कॉलेज में पढ़ने गया तो लड़कों के अजीब शौक, फोन पर गंदी-गंदी चीजें देखने की आदतें, गालियां, मारपीट और गैंगवार देखकर डर गया. घर में टपकती छत और फर्श का पानी डिब्बे से बाहर निकालकर स्कूल पहुंचकर नई दुनिया थी. मेरी आंखों के सामने मिर्चपुर कांड हुआ, लड़कों के दो अलग-अलग गैंग आए दिन गोलियां चलाते. मैंने 50 लोगों को 1 आदमी को मारते देखा. एक आदमी की 4 उंगली काट दीं.. यह सब देखकर मुझे इतना डर लगता था कि रोने लगता. किसी तरह 12वीं पास की. हालांकि अंदर एक डर बैठ गया था.
17-17 घंटे पढ़ाई और फिर…
डॉक्टर बनने के सपने को लेकर मैं 17-17 घंटे तक जागता रहता, लगभग पूरे ही समय मेरे दिमाग में पढ़ाई और हाथ में किताब होती थी. कोटा में कोचिंग करने के पैसे नहीं थे तो 12वीं में पास के शहर में कोचिंग लगा ली, बस का महीने का पास बनवाकर छत पर बैठकर रोजाना वहां जाता, पढ़ता और रात में वापस लौटता. मेहनत रंग लाई मेरी एआईपीएमटी में ऑल इंडिया 139 रैंक आई. एमबीबीएस के लिए मुझे दिल्ली सफदरजंग अस्पताल मिला. एम्स में मेरी वेटिंग आई.
एमबीबीएस में पिटाई और फिर फेल होने का सदमा एमबीबीएस के दौरान डिप्रेशन में डॉ. मनीष जांगड़ा.
पहले से ही गांव के स्कूलों में खून-खराबा देखने के बाद जब सफदरजंग के बॉयज हॉस्टल में पहुंचा तो गरीबी, तंगहाली और अपने गांव के होने की वजह से भीतर-भीतर घुटने लगा. कभी लगता कि यहां क्यों आ गया. रही सही कसर रैगिंग ने पूरी कर दी. रैगिंग में हमसे गालियां दिलवाई जातीं, थप्पड़ों से पिटाई होती. मेरे सामने एक लड़के को लात-घूंसों से मारा गया, शिकायत करने पर फिर पिटाई होती. मजाक उड़ता. यह सब देखकर मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया और मैं एक सेमेस्टर में फेल हो गया..
यहीं से शुरू हुआ बुरा वक्त
पहले से ही परेशान मैं फेल होने के बाद इतना बुरी तरह डर गया कि मैं डिप्रेशन में आ गया और कॉलेज छोड़कर भाग गया. मुझे वापस लाया गया, रोहतक मेरा करीब 3 महीने इलाज चला. मैंने रेल से कटने, चूहे मारने की दवा खाकर मरने की कोशिशें कीं. लेकिन इलाज के बाद इसका ठीक उल्टा हुआ और मुझे बाइपोलर मेनिया हो गया, इसी के चलते मैंने मारपीट करने वाले एक शिक्षक को पीट दिया, फिर मुझे पचासों थप्पड़ पड़े और मैं भीषण डिप्रेशन में चला गया. इके बाद मुझे दिल्ली के इहबास में भेज दिया गया, जहां बताया गया कि कंडीशन सीवियर है. दो महीने इलाज चला. कुछ ठीक हुआ लेकिन एमबीबीएस में बैक आ गई, फिर अपने जूनियर बच्चों के साथ पढ़ के डिग्री पूरी की.
हिम्मत जुटाई और फिर..
डॉक्टरों के संगठन फाइमा के संस्थापक और डर्मेटोलॉजिस्ट डॉ. मनीष जांगड़ा.जब मर भी न पाया और जिंदगी भी इतनी संघर्षमय थी तो मैंने हिम्मत जुटाना शुरू किया और एमबीबीएस 2017 में पास करने के बाद नीट पीजी पास किया और फिर आरएमएल में मुझे डर्मा ब्रांच मिल गई. साल 2020 तक दवा खाते-खाते मैंने पीजी भी पूरा किया और डर्मेटोलॉजिस्ट बन गया.
बनाया संगठन, लोगों को बचाने का उठाया बीड़ा
मैंने जो देखा, उसे और छात्र न देखें इसलिए मैंने 2019 में फाइमा, फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया डॉक्टर्स एसोसिएशन की स्थापना की. मैंने दर्जनों मुद्दे उठाए, आरटीआई डालकर अस्पतालों में हालातों को ठीक कराया. अभी तक मैं अपने दर्जनों जूनियर और सीनियर लोगों को डिप्रेशन और सुसाइड के ख्यालों से निकाल चुका हूं. मैं नियमित रूप से लोगों की काउंसलिंग करता हूं. मेरा लक्ष्य है कि मैं एक एनजीओ बनाऊं जिसमें सुसाइड स्टिग्मा को हटाया जाए और लोगों की जीवन की वैल्यू बताई जाए.
गांव में लगाता हूं फ्री ओपीडी अपने गांव के लोगों के लिए फ्री ओपीडी लगाते डॉ. मनीष.
फिलहाल मैं दिल्ली के अपोलो अस्पताल में डर्मेटोलॉजी सेवाएं देने के अलावा हेयर फ्री एंड हेयर ग्रो गुरुग्राम में बतौर हेयर ट्रांसप्लांट सर्जन सेवाएं देता हूं. इसके अलावा मैं अपने गांव जींद में हर रविवार को सुबह 10 से दोपहर 2 बजे तक ओपीडी चलाता हूं. यहां किनाना गांव के लोगों के लिए बस 10 रुपये ओपीडी फीस है. अगर कोई वह भी न देना चाहे तो फ्री सेवा ले सकता है. इसके अलावा मैं कई फ्री चेकअप कैंप भी लगा चुका हूं.
अब डिप्रेशन के आगे जिंदगी है..
अभी भी कई बार कुछ बेहद खराब चीजें देखकर डिप्रेशन लौट आता है लेकिन अब मैंने जीना सीख लिया और लोगों को भी जीना सिखा रहा हूं. मैंने ये जान लिया है कि डिप्रेशन के आगे जिंदगी है. सभी को मैं ये ही कहना चाहूंगा कि चाहे जितनी कठिन परिस्थितियां आएं, हिम्मत न हारें, लक्ष्य से न हटें, सफलता आपको ही मिलेगी.
Tags: Delhi news, Doctors strike, Haryana news, Jind news, YoddhaFIRST PUBLISHED : September 14, 2024, 14:39 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed