क्या गाड़ी का परमिट नहीं रहने पर भी बीमा कंपनी को मुआवजा देना होगा जानें कर्नाटक हाईकोर्ट का आदेश

उच्च न्यायालय ने कहा कि जहां तक परमिट की बात है कि वर्तमान परमिट की समय सीमा खत्म हो जाने के बाद जब नये परमिट के लिए आवेदन दिया गया था, तब ‘उस बीच की अवधि के लिए अस्थायी परमिट जारी किया गया और उसका नवीनीकरण से कोई लेना-देना नहीं था.’’ उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘ यह माना जाना चाहिए कि जिस दिन हादसा हुआ, उस दिन परमिट प्रभाव में था’’

क्या गाड़ी का परमिट नहीं रहने पर भी बीमा कंपनी को मुआवजा देना होगा जानें कर्नाटक हाईकोर्ट का आदेश
हाइलाइट्सकर्नाटक HC ने परमिट और परमिट के नवीनीकरण के मामले में सुनाया फैसला. अदालत ने कहा 'बिमा पॉलिसी' प्रभावी हो और 'परमिट' का नवीनीकरण न हुआ हो तो भी बिमा कंपनी को मुवावजा देना होगा. बेंगलुरु. कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा है कि यदि किसी वाहन का ‘फिटनेस सर्टिफिकेट’ और ‘परमिट’ का नवीनीकरण नहीं कराया गया हो लेकिन बीमा पॉलिसी प्रभावी हो, उस स्थिति में भी बीमा कंपनी मुआवजा देने की जिम्मेदारी से भाग नहीं सकता है. उच्च न्यायालय ने इस सिलसिले में निचली अदालत के एक फैसले को दरकिनार करते हुए अपना आदेश सुनाया. उल्लेखनीय है कि निचली अदालत ने एक स्कूल बस के मालिक को दुर्घटना के पीड़ित परिवार को मुआवजा देने का आदेश दिया था. हालांकि, घटना के दिन स्कूल बस का फिटनेस सर्टिफिकेट और परमिट नहीं था.  उच्च न्यायालय ने बीमा कंपनी को मुआवजे की पूरी राशि का भुगतान कर स्कूल बस मालिक की क्षतिपूर्ति करने का निर्देश दिया. अदालत ने कहा, ‘‘ इस मामले में हालांकि बीमा पॉलिसी दुर्घटना के दिन प्रभाव में थी लेकिन परमिट और फिटनेस सर्टिफिकेट (प्रमाणपत्र) की समयसीमा खत्म हो चुकी थी.’’ उच्च न्यायालय ने कहा कि यदि फिटनेस प्रमाणपत्र प्रभाव में नहीं रहता, तो बीमा कंपनी ‘पॉलिसी जारी नहीं करती’, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि पॉलिसी जारी होने के बाद फिटनेस प्रमाणपत्र की समय सीमा खत्म हो गई. उच्च न्यायालय ने कहा कि जहां तक परमिट की बात है कि वर्तमान परमिट की समय सीमा खत्म हो जाने के बाद जब नये परमिट के लिए आवेदन दिया गया था, तब ‘उस बीच की अवधि के लिए अस्थायी परमिट जारी किया गया और उसका नवीनीकरण से कोई लेना-देना नहीं था.’’ उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘ यह माना जाना चाहिए कि जिस दिन हादसा हुआ, उस दिन परमिट प्रभाव में था’’ और ‘‘बीमा कंपनी अपीलार्थी को क्षतिपूर्ति करने की अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकती है.’’ उल्लेखनीय है कि सैयद वली 28 सितंबर, 2015 को मोटरसाइकिल पर मोहम्मद शाली को बिठा कर कहीं जा रहा था तभी उसके दोपहिया वाहन की स्कूल बस से टक्कर हो गयी. इस हादसे में वली की मौत हो गयी. सैयद वली की पत्नी बानू बेगम और उनकी संतान मलान बेगम तथा मौला हुसैन ने मुआवजे का दावा दायर किया था. बीमा कंपनी द न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी ने दावा किया था कि स्कूल बस के पास फिटनेस प्रमाणपत्र नहीं था और इसका परमिट भी प्रभाव में नहीं था, हालांकि बीमा पॉलिसी प्रभाव में थी. वली के परिवार के सदस्यों को 6,18,000 रुपये मुआवजा अदा करने संबंधी द्वितीय अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ डॉ नरसिमुलू नंदिनी मेमोरियल एजुकेशन ट्रस्ट, रायचूर ने उच्च न्यायालय का रुख किया था. न्यायमूर्ति श्रीनिवास हरीश कुमार और न्यायमूर्ति एस रचैया ने 2016 में दायर की गई अपील का हाल में निस्तारण किया. ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी | Tags: Karnataka, Life InsuranceFIRST PUBLISHED : August 01, 2022, 17:54 IST