गलती कर दी जज साहब को हुआ अपनी चूक का एहसास हाईकोर्ट का आदेश लिया वापस

जजों को अक्सर ही भगवान के रूप की संज्ञा दी जाती रही है. हालांकि कर्नाटक हाईकोर्ट के एक जज ने कहा कि वह भी इंसान हैं और उनसे भी गलती हो जाती है. यह कहते हुए उन्होंने 10 जुलाई को दिए गए कर्नाटक हाईकोर्ट के एक आदेश को वापस ले लिया है. जानें क्या है पूरा मामला...

गलती कर दी जज साहब को हुआ अपनी चूक का एहसास हाईकोर्ट का आदेश लिया वापस
बेंगलुरु. जजों को अक्सर ही भगवान के रूप की संज्ञा दी जाती रही है, जो लोगों के भविष्य का करते हैं. उनके आदेश से ही कोई आरोपी बेगुनाह साबित होकर आजाद हो जाता है, तो कोई को दोषी साबित होकर जेल में दिन काटने पड़ते हैं. जघन्य अपराधों के मामले में तो आरोपी की जिंदगी-मौत का फैसला भी इन्हीं जज के हाथों होता है. हालांकि अब कर्नाटक हाईकोर्ट के जज ने कहा कि वह भी इंसान हैं और उनसे भी गलती हो जाती है. यह कहते हुए उन्होंने 10 जुलाई को दिए गए कर्नाटक हाईकोर्ट के एक आदेश को वापस ले लिया है. दरअसल कोर्ट ने पहले फैसला सुनाया था कि ऑनलाइन चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखने वाले किसी व्यक्ति पर सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (आईटी एक्ट) की धारा 67बी के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है. हालांकि जस्टिस एम नागप्रसन्ना की सिंगल जज बेंच ने आईटी एक्ट की धारा 67 बी (बी) को लेकर एक चूक को स्वीकार करने के बाद अपना पिछला आदेश वापस ले लिया. यह भी पढ़ें- ट्रेनी आईएएस पूजा खेडकर को सता रहा गिरफ्तारी का डर, क्या बचा ले जाएगी यह चाल? इससे पहले अदालत ने इनायतुल्ला एन. के खिलाफ आरोपों को खारिज करते हुए तर्क दिया था कि महज अश्लील सामग्री तक पहुंच धारा 67 बी के तहत आवश्यक ‘सामग्री का प्रकाशन या प्रसारण’ नहीं है. हालांकि, राज्य सरकार द्वारा फैसला वापस लेने के लिये दायर आवेदन पर अदालत को एहसास हुआ कि उसके पहले के फैसले में धारा 67बी(बी) की उपेक्षा की गई थी. यह भी पढ़ें- ‘खड़-खड़ की आवाज आई और फिर…’ गोंडा में कैसे हुआ रेल हादसा? पता चल गई वजह इस धारा में कहा गया है कि बच्चों को अश्लील तरीके से चित्रित करने वाली सामग्री बनाना, एकत्र करना, खोजना, ‘ब्राउज करना’, डाउनलोड करना, विज्ञापन करना, प्रचार करना, आदान-प्रदान करना या वितरित करना धारा 67बी के दायरे में आता है. अदालत ने कहा, ‘धारा 67बी(बी) इस मामले के लिए प्रासंगिक है.’ अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि शुरुआती फैसले में इस प्रावधान पर विचार न करके गलती की गई थी, जिसके कारण कार्यवाही को अनुचित तरीके से रद्द कर दिया गया. अदालत ने याचिकाकर्ता के वकील की दलीलों को खारिज कर दिया, जिन्होंने दावा किया था कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 362 के तहत आदेश वापस लेने पर रोक है. अदालत ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत उसमें बताई शक्तियां इस तरह के रीव्यू की इजाजत देती हैं. (भाषा इनपुट के साथ) Tags: High courtFIRST PUBLISHED : July 21, 2024, 12:23 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed