भारत में बसती है पोलैंड की आत्मा World War-II से कनेक्शन 10 प्वाइंट में सब

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पोलैंड की यात्रा पर पहुंचे हैं. लेकिन, क्या आपको पता है कि पोलैंड का भारत से लगभग 80 साल पुराना इतिहास जुड़ा है. महाराष्ट्र के कोल्हापुर में कभी पोलैंड के नागरिक रहा करते थे. वहीं, पोलैंड की सरकार ने भारत के एक राजा के नाम से अपनी राजधानी वारसॉ में एक चौक और एक स्कूल बनवाई है. यहां पर आपको सबकुछ मिल जाएगा.

भारत में बसती है पोलैंड की आत्मा World War-II से कनेक्शन 10 प्वाइंट में सब
पीएम मोदी के दो दिन की पोलैंड और यूक्रेन यात्रा पर पहुंचे हैं. इसी दौरान भारत के एक गांव की पोलैंड से 79 साल पुराना कनेक्शन सामने आया है. महाराष्ट्र के कोल्हापुर के गांव को पोलैंड की राजधानी वारसॉ में याद किया गया. महाराष्ट्र के वलीवडे-कोल्हापुर में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान लगभग 6,000 पोलिश शरणार्थी पहुंचे थे. भारत के इस गांव ने दोनों बाहें खोलकर शरणार्थियों का स्वागत किया. इस के बारे में वारसॉ में आज भी याद किया जाता है. यहां पर इस गांव से संबंधित कई स्मारक और श्रद्धांजलि स्थल उनकी यादों में बनाए गए हैं, जो कोल्हापुर के गांव में रहे और जिनकी यहीं पर निधन हो गया. अपने पोलैंड की यात्रा के दौरान पीएम मोदी ने उनलोगों से भी मुलाकात की, जिनके पूर्वज कोल्हापुर के शरणार्थी शिविर रह चुके थे. आइए जानते हैं वलीवडे-कोल्हापुर का पोलैंड से संबंध- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भागकर भारत पहुंचे- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पोलैंड के शरणार्थियों के लिए आशा की किरण बना था. 1942 और 1948 के बीच, भारत में लगभग 6,000 पोलिश शरणार्थी भारत पहुंचे थे. इनमें महिलाएं, बच्चे और बुज़ुर्ग शामिल थे. बस्ती बनाई गई- पोलैंड के शरणार्थियों के लिए 1943 में वालिवडे में एक बस्ती बनाई गई थी. इसमें तत्कालिन ब्रिटिश सरकार ने भारत की काफी मदद की थी. वालिवडे मुंबई से लगभग 500 किलोमीटर दूर शानदार वातावरण वाला जगह है, जो पोलिश लोगों के लिए एक अनुकूल जलवायु वाला जगह था, शायद इसिलिए इसे चुना भी गया. बिलुकल एक संपन्न पोलिश शहर की तरह बस्ती- वालिवडे को पोलैंड के एक शहर की तरह डेवलप किया गया. इसमें 5,000 लोगों आराम से रह सकते थे. यहां एक चर्च, सामुदायिक केंद्र, स्कूल, कॉलेज, पोस्ट ऑफिस और सिनेमा हॉल तक बनाए गए थे. एकदम पोलिश शहर की नकल थी यह बस्ती. बस्ती का डिजाइन-इस बस्ती को 5 जिलों में विभाजित किया गया था. इसमें सभी परिवारों के लिए बंगले बने हुए थे. इन बंगलों में बुनियादी सुविधाए थीं. इसके चारों ओर हरेभरे गार्डन्स, बरामदा के साथ शानदार मॉर्निंग व्यू वाले दृश्य शामिल थे. इस डिज़ाइन में पोलिश शरणार्थियों की जरूरतों और स्थानीय पर्यावरणीय परिस्थितियों दोनों को दर्शाया गया था. कम्युनिटी और कल्चर- वालिवडे में पोलिश शरणार्थियों का जीवन सांस्कृतिक और सामुदायिक रूप से समृद्ध था. इसमें स्काउटिंग, खेल, धार्मिक उत्सव और थिएटर सहित पोलिश सांस्कृतिक जीवन के विभिन्न पहलुओं को दिखाया जाता रहा. पोलिश बच्चें स्काउटिंग और फिजिकल एक्टिविटी में भाग लिया करते थे. वहीं, धार्मिक और राष्ट्रीय छुट्टियों को बड़े जोश से मनाया जाता था. इस शहर का ऐतिहासिक महत्व- 1946 और 1948 के बीच धीरे-धीरे सभी पोलिश शरणार्थियों वापस अपने देश लौट गए थे. उनके जाने के बाद, वलीवाडे में स्मारक बनाया गया.साथ ही कोल्हापुर में एक कब्रिस्तान बनाया गया, जिसे 2014 फिर से रिस्टोर किया गया, इसमें वे सभी पोलिश नागरिक दफ्न हैं, जो भारत में रहते हुए मर गए थे. इसके अलावा एसोसिएशन ऑफ पोलिश इन इंडिया ने महावीर गार्डन पार्क बनवाया जो कि पोलैंड और भारत के बीच मित्रता को दर्शाती है. भारत की मदद को याद करता है पोलैंड- पोलैंड ने विश्व युद्ध-II के दौरान भारत की मदद को याद करता रहा है. नवानगर के महाराजा दिग्विजयसिंह, जिन्होंने पोलिश शरणार्थियों की मदद की थी. आज उनके याद में पोलैंड की राजाधानी वारसॉ में एक चौक और एक स्कूल बनाया गया है. साल 2011 में, राष्ट्रपति ब्रोनिस्लाव कोमोरोव्स्की ने उनके महत्वपूर्ण योगदान को स्वीकार करते हुए उन्हें मरणोपरांत कमांडर क्रॉस ऑफ़ द ऑर्डर ऑफ़ मेरिट से सम्मानित किया. भारत से आज भी है मजबूत संबंध- पोलैंड के लोगों ने भारत को नहीं भूला है. शरणार्थी जो कभी वलीवाडे में रहते थे, 1954 के बाद से उनका फिर से यहां आना-जाना शुरू हुआ. 1990 में “एसोसिएशन ऑफ पोल्स इन इंडिया 1942-1948” बनाया गया. यह उनकी भारत में इतिहास को संरक्षित करने में बदद करता है. विश्व युद्ध-II के दौरान पोलैंड शरणार्थियों और उनके भारतीय मेजबानों के बीच संबंधों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. भारत के इन गांवों से है लगाव- वालिवडे और बालाचडी में रह चुके पोलिश कई बार भारत आ चुके हैं. वे अपने अतीत की मार्मिकता को याद करने यहां पहुंचते हैं. साथ ही भारत का आभार व्यक्त करते हैं. उनकी यात्राओं में जामनगर और कोल्हापुर हैं. भारत-पोलैंड के बीच गहरे संबंध का प्रतिक- इन गांवों और द्वितीय विश्व युद्ध के कारण पोलैंड और भारत के बीच का बंधन मजबूत बना हुआ है. भारत के साथ अपने संबंध को बनाए रखने और उसका जश्न मनाने के लिए पूर्व पोलिश शरणार्थी लगातार प्रयास करते रहते हैं. Tags: Maharashtra News, PM Modi, World WAR 2FIRST PUBLISHED : August 22, 2024, 13:59 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed