इस्लाम में जकात और फितरा का क्या है मतलब यहां जानें दोनों में अंतर

जकात और फितरे के बीच बड़ा अंतर यह है कि जकात देना रोजे रखने और नमाज पढ़ने जितना ही जरूरी होता है. लेकिन फितरा देना इस्लाम के तहत अनिवार्य नहीं है. जैसे जकात में 2.5 फीसदी देना तय होता है, जबकि फितरे की कोई सीमा नहीं होती. इंसान अपनी आर्थिक स्थिति के मुताबिक कितना भी फितरा दे सकता है.

इस्लाम में जकात और फितरा का क्या है मतलब यहां जानें दोनों में अंतर
अलिगढ़ /वसीम अहमद:  इस्लाम मे नमाज और कुरान पढ़ने के साथ जकात और फितरा देने का भी बहुत महत्व है. इस्लाम मे हर मुस्लिम को जकात और फितरा अदा करना होता है. असल में ये दोनों एक तरह से दान ही है. असल में जकात फर्ज है, तो फितरा वाजिब है. जिनके पास पर्याप्त पैसे हैं, ऐसे लोगों के लिए जकात और फितरा निकालना फर्ज है. जकात इस्लाम के 5 स्तंभों में से एक है. वैसे तो जकात साल में कभी भी दी जा सकती है. लेकिन, रमजान के महीने में ईद की नमाज से पहले फितरा और जकात देना मुस्लिम समाज के लोग ज्यादा अच्छा मानते हैं. क्योंकि, रमजान के महीने में एक सबाब के काम का 70 गुना ज्यादा मिलता है. तो दूसरी तरफ गरीब तबके के लोगों की ईद भी अच्छे से बन सके. इसलिए भी जकात या फितरा रमजान के महीने में ज्यादा दिया जाता है. क्या होती है ज़कात? जानकारी देते हुए इस्लामिक स्कॉलर मौलाना उमेर खान बताते हैं कि हर उस मुसलमान के लिए जकात देना जरूरी है, जो हैसियतमंद है. आमदनी से पूरे साल में जो बचत होती है, उसका 2.5 फीसदी हिस्सा किसी गरीब या जरूरतमंद को दिया जाता है. इसे जकात कहते हैं. अगर किसी मुसलमान के पास तमाम खर्च करने के बाद 100 रुपये बचते हैं, तो उसमें से 2.5 रुपये किसी गरीब को देना जरूरी होता है. वैसे तो जकात पूरे साल में कभी भी दी जा सकती है. लेकिन, ज्यादातर लोग रमजान के महीने में ही जकात निकालते हैं. असल में ईद से पहले जकात अदा करने का रिवाज है. जकात गरीबों, विधवाओं, अनाथ बच्चों या किसी बीमार व कमजोर व्यक्ति को दी जाती है. महिलाओं या पुरुषों के पास अगर सोने चांदी के गहनों के रूप में भी कोई संपत्ति होती है, तो उसकी कीमत के हिसाब से भी जकात दी जाती है. कैसे देना जरूरी है जकात? उमेर खान ने बताया कि अगर परिवार में पांच मेंबर हैं, और वो सभी नौकरी या किसी व्यवसाय के जरिए पैसा कमाते हैं. तो सभी पर जकात देना फर्ज माना जाता है. उदाहरण के तौर पर अगर किसी का बेटा या बेटी भी नौकरी या व्यवसाय के जरिए पैसा कमाते हैं, तो वे मां-बाप अपनी कमाई पर जकात देकर नहीं बच सकते हैं. किसी भी परिवार में उसके मुखिया के कमाने वाले बेटे या बेटी के लिए भी जकात देना फर्ज होता है. जकात और फितरे में अंतर जकात और फितरे के बीच बड़ा अंतर यह है कि जकात देना रोजे रखने और नमाज पढ़ने जितना ही जरूरी होता है. लेकिन फितरा देना इस्लाम के तहत अनिवार्य नहीं है. जैसे जकात में 2.5 फीसदी देना तय होता है, जबकि फितरे की कोई सीमा नहीं होती. इंसान अपनी आर्थिक स्थिति के मुताबिक कितना भी फितरा दे सकता है. Tags: Aligarh news, Islam religion, Local18FIRST PUBLISHED : May 23, 2024, 12:20 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ेंDisclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Local-18 व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.
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