समय पर नहीं हुई पहचान तो फेफड़ों का कैंसर बन सकता है जानलेवा
समय पर नहीं हुई पहचान तो फेफड़ों का कैंसर बन सकता है जानलेवा
डॉ. सूर्यकान्त ने बताया कि फेफड़ों के कैंसर और टीबी के लक्षण अक्सर मिलते-जुलते होते हैं.धूम्रपान के कारण सांस की नलियों में होने वाले विकार को पल्मोनरी टीबी का लक्षण समझकर गलत इलाज शुरू कर दिया जाता है.
ऋषभ चौरसिया/लखनऊ:भारत में बढ़ते फेफड़ों में कैंसर के मामलों के मद्देनजर लखनऊ में आयोजित एक कार्यशाला में स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इस घातक बीमारी की जल्द पहचान और समय पर उपचार पर जोर दिया. इस बिषय पर आईएमए भवन में हुई कार्यशाला का आयोजन इंडियन सोसायटी फॉर स्टडी ऑफ लंग कैंसर (आईएसएसएलसी), केजीएमयू के रेस्परेटरी मेडिसिन डिपार्टमेंट, लखनऊ चेस्ट क्लब और इंडियन चेस्ट सोसायटी यूपी चैप्टर के सहयोग से किया गया.
कार्यशाला में मुख्य वक्ता केजीएमयू के रेस्परेटरी मेडिसिन डिपार्टमेंट के अध्यक्ष डॉ. सूर्यकान्त ने बताया कि फेफड़ों के कैंसर और टीबी के लक्षण अक्सर मिलते-जुलते होते हैं.धूम्रपान के कारण सांस की नलियों में होने वाले विकार को पल्मोनरी टीबी का लक्षण समझकर गलत इलाज शुरू कर दिया जाता है. इन्हीं समान लक्षणों के कारण फेफड़ों के कैंसर वाले मरीज की पहचान में देरी मौत का बड़ा कारण बनती है.
चेस्ट एक्स-रे का हर धब्बा टीबी नहीं होता
कहा जाता है कि जैसे हर चमकती चीज सोना नहीं होती, उसी तरह चेस्ट एक्स-रे का हर धब्बा टीबी नहीं होता. डॉ. सूर्यकान्त ने कहा कि भारत में फेफड़ों का कैंसर का लगभग सभी तरह के कैंसरों में 6% और कैंसर संबंधित मौतों का 8% हिस्सा है. वैश्विक रूप से हर साल करीब 20 लाख फेफड़ों के कैंसर के नए मरीज चिन्हित किये जाते हैं, जिनमें से 18 लाख हर साल मर जाते हैं.
नए तरीकों पर विस्तार से चर्चा
इंडियन सोसायटी फॉर स्टडी ऑफ़ लंग कैंसर (आईएसएसएलसी) के अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. डी. बेहरा ने भारत में फेफड़ों के कैंसर की स्थिति इसके जोखिम कारकों और निदान के नए तरीकों पर विस्तार से चर्चा की. उन्होंने ट्यूमर प्रकारों में होने वाले विभिन्न म्युटेशन और कैंसर उपचार की नवीनतम कीमोथेरेपी तकनीकों पर भी प्रकाश डाला.
इम्यूनोहिस्टोकेमिस्ट्री की भूमिका
कल्याण कैंसर संस्थान की डॉ. दीप्ति मिश्रा ने मोलेक्युलर बायोमार्कर्स की नवीनतम प्रगति और फेफड़ों के कैंसर के निदान में इम्यूनोहिस्टोकेमिस्ट्री की भूमिका पर व्याख्यान दिया. केजीएमयू के ऑन्कोसर्जन डॉ. शिव राजन ने कैंसर के विभिन्न चरणों में प्रबंधन की रणनीतियों पर चर्चा की, जबकि डॉ. ज्योति बाजपेयी ने टारगेटेड कीमोथेरेपी की महत्वपूर्णता को स्पष्ट किया.
विशेषज्ञों की उपस्थिति
इस शैक्षणिक संगोष्ठी में रेस्परेटरी मेडिसिन और ऑन्कोलॉजी के नामचीन विशेषज्ञों की उपस्थिति ने इस चर्चा को और भी गहन बना दिया. विशेषज्ञों में डॉ. राजेंद्र प्रसाद, डॉ. केबी गुप्ता, डॉ. सुरेश कुमार और डॉ. शैलेंद्र यादव के अलावा डॉ. हेमंत कुमार, डॉ. आनंद गुप्ता, डॉ. सुशील चतुर्वेदी, डॉ. डीके वर्मा, डॉ. अस्थाना, डॉ. आरएस कुशवाहा, डॉ. संतोष कुमार, डॉ. राजीव गर्ग, डॉ. दर्शन बजाज और डॉ. आनंद श्रीवास्तव ने भी इस महत्वपूर्ण चर्चा में भाग लिया.
Tags: Health News, Hindi news, Local18FIRST PUBLISHED : May 3, 2024, 12:26 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed