क्या आज भी चलती है वो ट्रेनजिससे क्रांतिकारियों ने लूटा था अंग्रेजों का खजाना

अवध- रूहेलखंड रेल लाइन पर 1873 को शुरू हुई लखनऊ पैसेंजर, जिसे 9 अगस्त 1925 को क्रांतिकारियों ने काकोरी में रोक कर काकोरी रेल एक्शन को अंजाम दिया. लेकिन इस ऐतिहासिक ट्रेन की सीटी की आवाज अब यात्रियों को सुनने को नहीं मिल रही है.

क्या आज भी चलती है वो ट्रेनजिससे क्रांतिकारियों ने लूटा था अंग्रेजों का खजाना
शाहजहांपुर : 151 वर्ष पहले सहारनपुर से चलने वाली ट्रेन जो आज इतिहास के पन्नों में दर्ज है. इस ट्रेन से अंग्रेज खजाना ले जाया करते थे, जिसको हासिल करने के लिए क्रांतिकारियों ने काकोरी रेल एक्शन को अंजाम दिया. आज पूरा देश काकोरी रेल एक्शन का शताब्दी वर्ष मना रहा है, लेकिन यह ऐतिहासिक ट्रेन अब पटरियों से गायब हो गई है. अद्भुत शाहजहांपुर के लेखक और इतिहासकार डॉ. विकास खुराना ने बताया कि 1 अप्रैल 1873 में अवध- रूहेलखंड रेल लाइन पर लखनऊ पैसेंजर नाम की ट्रेन शुरू की गई थी. इस ट्रैक पर चलने वाली यह पहली ट्रेन थी. इस ट्रेन से रोजाना हजारों की संख्या में यात्री सफर किया करते थे. 1925 में इस ट्रेन को 8 डॉउन ट्रेन के नाम से जाना जाता था. 9 अगस्त 1925 को हुए को क्रांतिकारियों ने काकोरी रेल एक्शन को अंजाम दिया. इस ट्रेन से ब्रिटिश सरकार का सरकारी खजाना ले जाया जा रहा था. खजाने में थे इतने रुपए इतिहासकार डॉ. विकास खुराना में बताया कि क्रांतिकारियों ने देश को आजाद करने के क्रांतिकारियों को हथियार खरीदने के लिए पैसे की आवश्यकता थी. क्रांतिकारियों ने लखनऊ पैसेंजर से ले जाए जाने वाले सरकारी खजाने को लूटने की योजना बनाई. शाहजहांपुर के रहने वाले क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खान 9 अगस्त 1925 को शाहजहांपुर से ट्रेन में शामिल हुए सवार हुए. उनके साथ क्रांतिकारी राजेंद्र लाहिड़ी शामिल थे. काकोरी पहुंचने से कुछ समय पहले राजेंद्र लाहिड़ी ने ट्रेन की चैन खींच दी. ट्रेन रुक गई, उसके बाद क्रांतिकारियों ने खजाने वाला बॉक्स ट्रेन से उतार कर उसे तोड़कर खजाना निकाल लिया. अशफाक उल्ला खां ने खजाने को चादर में बांध लिया. सभी क्रांतिकारी लखनऊ के ही सदाबहार मोहल्ले में जाकर ठहर गए. गिनती करने पर खजाने में 4601रुपया मिला था. कोरोना काल में बंद हुई ट्रेन नॉर्दर्न रेलवे मेंस यूनियन के नेता नरेंद्र त्यागी ने बताया कि 1925 के दौर में इस ट्रेन में 6 से 7 कोच हुआ करते थे और मौजूदा हाल में जब ट्रेन को बंद किया गया उस वक्त कोच की संख्या 10 से 11 हुआ करती थी. यह ट्रेन यात्रियों के लिए बेहद ही किफायती थी. सहारनपुर से लखनऊ का किराया 80 और शाहजहांपुर से लखनऊ का किराया 35 हुआ करता था. फ़िलहाल कोरोना काल के दौरान इस ट्रेन को बंद कर दिया गया. 3.30 पर काकोरी पहुंचती थी ट्रेन नरेंद्र त्यागी ने बताया कि सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर जो रोजाना चला करती थी. सहारनपुर से लखनऊ की ओर जाते समय इस ट्रेन को 54351 और लखनऊ से सहारनपुर जाते वक्त 54252 के नंबर से जाना जाता था. यह ट्रेन सहारनपुर से दोपहर 12 बजे चलकर रात 10 बजे शाहजहांपुर पहुंचती थी, देर रात 3 बजकर 30 मिनट पर काकोरी रेलवे स्टेशन और सुबह 4 बजे लखनऊ पहुंच करती थी. ट्रेन से लखनऊ जाता था सरकारी खजाना नरेंद्र त्यागी ने बताया कि लखनऊ पैसेंजर से ब्रिटिश सरकार अपना खजाना लखनऊ भेजने का काम किया करती थी, क्योंकि ब्रिटिश हुकूमत ने लखनऊ में खजाने को एकत्र करने के लिए बेस बनाया था. इस ट्रेन के जरिए हर रेलवे स्टेशन से रेलवे को रोजाना होने वाली कमाई को पोटली में बंद कर बक्से में डाल दिया जाता था. 9 अगस्त 1925 को भी रेलवे के इससे खजाने को भेजा जा रहा था. जब क्रांतिकारियों ने काकोरी रेल एक्शन को अंजाम दे दिया. Tags: Local18, Shahjahanpur News, Uttar Pradesh News HindiFIRST PUBLISHED : August 9, 2024, 18:27 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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