9 अगस्त 1925 : काकोरी ट्रेन एक्शन के हीरो थे बिस्मिल अशफाक रोशन और राजेंद्र

डॉ. विकास खुराना ने बताया कि काकोरी रेल एक्शन के बाद पुलिसिया जांच में तमाम लोगों के खिलाफ मुकदमें दर्ज किए गए. इसके अंतर्गत धारा 120बी, 123A और धारा 396 के तहत पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खान के साथ क्रान्तिकारी राजेंद्र लाहिड़ी को भी मौत की सजा सुनाई गई.

9 अगस्त 1925 : काकोरी ट्रेन एक्शन के हीरो थे बिस्मिल अशफाक रोशन और राजेंद्र
शाहजहांपुर: “कुछ आरजू नहीं है, है आरजू तो यह है कि रख दे जरा सी कोई खाक-ए-वतन कफन में, वतन रहे हमेशा साद, कायम और आजाद, हमारा क्या हम रहे, रहे ना रहे”. यह शेर, महान क्रांतिकारी शहीद अशफाक उल्ला खान ने फांसी से पहले अपने अंतिम वक्त में लिखा था. अशफाक उल्ला खान, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह को 9 अगस्त 1925 को हुए काकोरी रेल एक्शन की घटना का दोषी मानते हुए फांसी दी गई थी. जंग- ए- आजादी के लिए अहम किरदार निभाने वाले काकोरी रेल एक्शन के महानायकों को देश उनकी शहादत और बलिदान के लिए नमन करता है. यह तीनों क्रांतिकारी मुल्क की आजादी के लिए 19 दिसंबर 1927 को हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए. इतिहासकार डॉ. विकास खुराना ने बताया कि भारत मां के पैरों पड़ी गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए क्रांति की तीन धाराएं उठी. पहली सन 1857, दूसरी 1922 से 1931 तक और तीसरी 1940 के बाद नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में. इनमें से दूसरी क्रांति की धारा का नेतृत्व शाहजहांपुर ने किया था. जब गांधी जी के असहयोग आंदोलन की वापसी के बाद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने देश के प्रसिद्ध क्रांतिकारी नेता शचींद्रनाथ सान्याल के साथ मिलकर हिंदुस्तान प्रजातांत्रिक संगठन की स्थापना की. संगठन का उद्देश्य था भारत में सशस्त्र क्रांति के बल पर अंग्रेजों के शासन को उखाड़ फेंकना. ऐसे में शस्त्रों के लिए धन की आवश्यकता थी. जिसके बाद क्रांतिकारियों ने 9 अगस्त 1925 को 8 डाउन ट्रेन को रोककर उसमें से सरकारी खजाना लूट लिया गया. काकोरी रेल एक्शन में हुई फांसी डॉ. विकास खुराना ने बताया कि काकोरी रेल एक्शन के बाद पुलिसिया जांच में तमाम लोगों के खिलाफ मुकदमें दर्ज किए गए. इसके अंतर्गत धारा 120बी, 123A और धारा 396 के तहत पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खान के साथ क्रान्तिकारी राजेंद्र लाहिड़ी को भी मौत की सजा सुनाई गई. अलग-अलग जेलों में दी गई फांसी डॉ. विकास खुराना ने बताया कि काकोरी रेल एक्शन मामले में दोषी मानते हुए 19 दिसंबर 1927 को पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर, ठाकुर रोशन सिंह को इलाहाबाद (प्रयागराज) और अशफाक उल्ला खान को फैजाबाद जेल में फांसी दी गई. पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को फांसी सुबह 6:30 बजे दी गई थी. फांसी से पहले उन्होंने अपनी आत्मकथा के लेखन का काम में जेल में ही पूरा किया था. उसके बाद उनके शव को जेल के पीछे की दीवार तोड़कर शव परिजनों को सौंपा गया था. और 20 दिसंबर को उनकी शवयात्रा में तकरीबन 20 लाख लोगों की भीड़ जुटी थी. उनका अंतिम संस्कार राप्ती नदी के किनारे वैदिक रीति-रिवाज से किया गया. इसी प्रकार ठाकुर रोशन सिंह जी का अंतिम संस्कार इलाहबाद (प्रयागराज) के संगम तट पर हुआ. शाहजहांपुर लाया गया था शव शहीद अशफाक उल्ला खां के प्रपौत्र अशफाक उल्ला खां बताते हैं कि शहीद अशफ़ाक उल्ला खान के शव को ट्रेन के रास्ते शाहजहांपुर लाया गया. मार्ग में हर रेलवे स्टेशन पर उनकी भारी भीड़ ने अगुवाई की. लखनऊ रेलवे स्टेशन पर जब उनके शव को शाहजहांपुर लाने के लिए ट्रेन बदली जा रही थी तो सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी नेता गणेश शंकर विद्यार्थी ने उनके शव की तस्वीर कैमरे में कैद की थी. बिस्मिल और अशफ़ाक की दोस्ती का गवाह मंदिर शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक उल्ला खान की दोस्ती की मिसालें आज भी दी जाती हैं. रामप्रसाद बिस्मिल के नाम के आगे पंडित जुड़ा था. तो वहीं अशफाक मुस्लिम थे, वो भी पांचों वक्त नमाजी. लेकिन इस बात का कोई फर्क दोनों पर नहीं पड़ता था. क्योंकि दोनों का मकसद एक ही था सिर्फ मुल्क को आजाद करवाना. शहीद अशफाक उल्ला खान के प्रपौत्र अशफाक उल्ला खान ने बताया कि पंडित राम प्रसाद बिस्मिल अशफाक उल्ला खान के बड़े भाई के सहपाठी थे. इसी बीच अशफाक उल्ला खान को पता चला कि शहर के मिशन स्कूल में देश की आजादी के लिए एक संगठन बनाया जा रहा है. इस संगठन में शामिल होने के लिए अशफाक उल्ला खान ने भी इच्छा जाहिर की. इसके बाद दोनों के बीच गहरी दोस्ती हो गई और इस गहरी दोस्ती का गवाह बना शाहजहांपुर का आर्य समाज मंदिर. जहां दोनों एक ही थाली में खाना खाया करते थे. नहीं था मौत का कोई खौफ शहीद अशफाक उल्ला खान ने 13 दिसंबर 1927 को अपने वकील को भी एक खत लिखा था. जिसमें उन्होंने कहा कि अपने मुकदमे तो बहुत लड़े होंगे लेकिन मेरी इच्छा है कि आपको अगर परमिशन मिले, तो आप फांसी के दिन फांसी घर के सामने खड़े होकर देखें कि आपका मुवक्किल कितनी खुशी और हसरत से फांसी के फंदे चूम कर फंदे पर झूल रहा है. मां से की थी अंतिम समय ये गुजारिश अमर शहीद अशफाक उल्ला खां ने फांसी से पहले अपनी मां को एक खत भी लिखा था, जिसमें लिखा था कि ‘ऐ दुखिया मां, मेरा वक्त बहुत करीब आ गया है, मैं फांसी के फंदे पर जाकर आपसे रुखसत हो जाऊंगा, लेकिन आप पढ़ी-लिखी मां हैं. ईश्वर ने और कुदरत ने मुझे आपकी गोद में दिया था. लोग आपको मुबारकबाद देते थे. मेरी पैदाइश पर आप लोगों से कहा करती थे कि यह अल्लाह ताला की अमानत है. अगर मैं उसकी अमानत था तो वो अब इस देश के लिए अपनी अमानत मांग रहे हैं.आपको अमानत में खयानत नहीं करनी चाहिए और इस देश को सौंप देना चाहिए.’अशफाक उल्ला खान ने फांसी से पहले एक आखरी शेर भी कहा था, ‘कुछ आरजू नहीं है, है आरजू तो ये है कि रख दे कोई जरा सी खाक-ए-वतन कफन में. Tags: History of India, Local18, Shahjahanpur News, Uttar pradesh newsFIRST PUBLISHED : August 8, 2024, 15:27 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed