किसान इस खास विधि से करें धान की खेती बंपर होगी पैदावार बन जाएंगे मालामाल
किसान इस खास विधि से करें धान की खेती बंपर होगी पैदावार बन जाएंगे मालामाल
LOCAL 18 से बात करते हुए प्रभारी अधिकारी शिव शंकर वर्मा बताते हैं कि इस तकनीकी से खेती करने पर बीज की मात्रा भी कम लगती है, सूखा और बाढ़ के प्रभाव में भी फसल प्रभावित नहीं होती है.
सौरभ वर्मा/ रायबरेली: जून से जुलाई का महीना खरीफ की फसल का सबसे अच्छा समय माना जाता है. इस माह में किसान खरीफ के सीजन में होने वाली फसलों की बुवाई करते हैं. जिसमें मुख्य रूप से वह धान की खेती करते हैं. उत्तर भारत समेत देश के विभिन्न हिस्सों में धान की फसल बड़े पैमाने पर उगाई जाती है.धान की फसल रोपाई को लेकर किसानों ने तैयारी भी शुरू कर दी है. ऐसे में धान की फसल की खेती करने वाले किसानों के लिए आज हम एक नई विधि के बारे में बताने जा रहे हैं. इस विधि से खेती करके किसान कम लागत में अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं. दरअसल हम बात कर रहे हैं संडा विधि की. क्योंकि यह विधि किसानों के लिए सुरक्षित और बेहद फायदेमंद मानी जाती है. तो आइए कृषि विशेषज्ञ से जानते हैं धान की खेती की इस खास विधि के बारे में .
कृषि के क्षेत्र में 10 वर्षों का अनुभव रखने वाले रायबरेली के राजकीय कृषि केंद्र शिवगढ़ के प्रभारी अधिकारी शिव शंकर वर्मा बताते हैं कि खरीफ के सीजन में धान की फसल की खेती करने वाले किसान संडा विधि से खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.यह विधि किसानों के लिए बेहद मुनाफे वाली होती है. क्योंकि इसमें लागत कम और पैदावार अधिक होती है .वह बताते हैं कि यह तकनीकी बेहद पुरानी है . जो बदलते दौर के साथ ही किसानों के लिए बेहद मुनाफे वाली साबित हो रही है. संडा विधि में दो बार धान की रोपाई करनी पड़ती है. जिसे डबल ट्रांसप्लांटिंग भी कहा जाता है. इस विधि में जलवायु परिवर्तन, अत्यधिक वर्षा का भी कोई असर नहीं होता है.
क्या है संडा विधि
किसान संडा विधि से खेती करने के लिए किसान सबसे पहले धान की नर्सरी करते हैं. उसके बाद नर्सरी तैयार होने पर खेत में पौधे की रोपाई की जाती है.साथ ही वह बताते हैं कि इस विधि से धान की पहली रोपाई के लिए पौधे से पौधे के बीच 8×8 सेमी की दूरी पर 8 से 10 पौधे एक जगह पर लगाए जाते हैं .वहीं दूसरी रोपाई में पौधे से पौधे के बीच 15× 15 सेमी की दूरी होनी चाहिए. इस विधि से खेती प्रमुख रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश में की जाती है.
इस विधि के फायदे
LOCAL 18 से बात करते हुए प्रभारी अधिकारी शिव शंकर वर्मा बताते हैं कि इस तकनीकी से खेती करने पर बीज की मात्रा भी कम लगती है, सूखा और बाढ़ के प्रभाव में भी फसल प्रभावित नहीं होती है. सिंचाई की कम जरूरत होती है. कीट और बीमारियों का प्रकोप कम होता है. खरपतवार का भी खतरा नहीं रहता है. आगे की जानकारी देते हुए बताते हैं कि जुलाई के प्रारंभ से अक्टूबर मध्य तक खेत में नमी रखना जरूरी होता है.
Tags: Hindi news, Local18FIRST PUBLISHED : June 16, 2024, 08:13 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed