Kanwar Yatra 2022: जानिए कांवड़ यात्रा के नियम और महत्व भूलकर भी ना करें ये गलतियां
Kanwar Yatra 2022: जानिए कांवड़ यात्रा के नियम और महत्व भूलकर भी ना करें ये गलतियां
Kanwar Yatra 2022: भगवान शंकर का सबसे प्रिय और पवित्र माह सावन 14 जुलाई से शुरू हो रहा है. इसके साथ ही कांवड़ यात्रा भी आरंभ हो जाएगी. क्या आप इसके नियम और प्रकार जानते हैं. यहां पढ़ें सबकुछ....
रिपोर्ट- विशाल झा
गाजियाबाद. भगवान शंकर का सबसे प्रिय और पवित्र माह सावन 14 जुलाई से शुरू हो रहा है. इसके साथ ही कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra 2022) भी आरंभ हो जाएगी. हर साल लाखों शिव भक्त कावड़ लेकर गंगा जल लेने हरिद्वार जाते हैं और वहां से जल लाकर महादेव का जलाभिषेक करते हैं. कोरोना महामारी की वजह से पिछले 2 साल से जिले में कांवड़ यात्रा नहीं हुई जिस कारण से इस बार कावड़ियों की भारी भीड़ उमड़ने की उम्मीद है.
यही नहीं, कांवड़ यात्रा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है.कहा जाता है देवों के देव महादेव काफी जल्दी अपने भक्तों से प्रसन्न होते हैं लेकिन भूल हो जाने पर उतनी ही जल्दी गुस्सा भी हो जाते हैं.इस यात्रा के कुछ कठिन नियम भी है.न्यूज़ 18 लोकल आपको कांवड़ यात्रा से जुड़े नियम और महत्व की जानकारी देगा.
ये हैं कांवड़ यात्रा के नियम
>>कावड़ यात्रा एक पवित्र यात्रा होती है, इसलिए इस यात्रा में शुद्धता का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए. बिना स्नान किए भक्तों को कांवड़ को हाथ नहीं लगाना चाहिए.
>>अगर आप कांवड़ यात्रा कर रहे हैं और आपको किसी कारण से रुकना पड़ रहा है, तो गंगा जल से भरी हुई कावड़ को कभी भी जमीन पर नहीं रखना चाहिए. इससे कांवड़ की पवित्रता पर असर पड़ता है. इस स्थिति में कांवड़ को किसी ऊंचे स्थान पर ही रखना चाहिए.
>> कांवड़ यात्रा करने वाले भक्तों को मांस, मदिरा और तामसिक भोजन से पूरे श्रावण मास दूर रहना चाहिए.
26 जुलाई 2022 तक चलेगी कांवड़ यात्रा
इस बार कांवड़ यात्रा 14 जुलाई 2022 से शुरू होकर 26 जुलाई 2022 तक चलेगी. कांवड़ यात्रा को लेकर काफी सारी मान्यताएं प्रचलित है. न्यूज़ 18 लोकल को दूधेश्वर नाथ के पीठाधीश्वर महंत नारायण गिरी ने बताया कि सबसे पहले त्रेता युग में श्रवण कुमार ने अपने माता-पिता की इच्छा पूरी करने के लिए कांवड़ यात्रा की थी. वे अपने माता-पिता को कांवड़ में बैठाकर हरिद्वार ले गए थे. इसके बाद उन्होंने अपने माता-पिता को गंगा में स्नान कराया और वापस लौटते समय गंगाजल शिवलिंग पर चढ़ाया तब से ही कावड़ यात्रा की शुरुआत हुई थी. कुछ लोग ऐसा भी कहते हैं कि भगवान परशुराम ने गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल भरकर शिवलिंग पर चढ़ाया था और उसके बाद कांवड़ की शुरुआत हुई थी.
गजियाबाद के रहने वाले कपिल लगभग 4 से 5 बार कांवड़ यात्रा कर चुके हैं. उन्होंने ने बताया कि कावंड़ यात्रा का विशेष महत्व है. साथ ही कावंड़ियों को अपनी यात्रा के दौरान कावंड़ के नियमों का जरूर पालन करना चाहिए.
इतने प्रकार की होती है कांवड़
>>खड़ी कांवड़ यात्रा
खड़ी कावड़ यात्रा को सबसे कठिन कावड़ यात्रा माना जाता है, क्योंकि इसमें न तो कांवड़ जमीन पर रखी जाती है और ना ही कहीं पर टांगी जाती है. शिव भक्तों को पैदल यात्रा करते हुए कावड़ को कंधे पर रखकर गंगाजल लाना होता है. किसी कारण से अगर भक्त को रुकना पड़े तो वह यह कांवड़ किसी अन्य साथी को दे देता है.
>>श्रृंगार कांवड़
कांवड़ यात्रा का यह काफी अनोखा तरीका है. इसमें से भक्त भगवान शिव की विभिन्न झांकियां निकालकर कांवड़ यात्रा निकलते हैं. इस यात्रा के दौरान भगवान शिव का श्रृंगार भी होता है और भक्त भजन पर झूमते नाचते हुए गंगाजल लेने पहुंचते हैं. भगवान शिव की काफी सुंदर प्रतिमा और झांकी बनाई जाती है.
>> डाक कांवड़
डाक कावड़ में जब मंदिर की दूरी 36 से 24 घंटे के बीच रह जाती है तो कांवड़ यात्री गंगाजल लेकर दौड़ते हुए जाते हैं. एक थक जाता है तो वह दूसरे को पास कर देता है. डाक कांवड़ इतनी आसान नहीं होती, क्योंकि इस यात्रा को करने से पहले संकल्प लेना होता है. ज्यादातर युवाओं में डाक कांवड़ का खासा उत्साह देखने को मिलता है.
(Disclaimer : यह सभी सूचना सिर्फ जानकारियों और मान्यताओं पर आधारित है. न्यूज़ 18 लोकल किसी भी तरह की मान्यता और जानकारी की पुष्टि नहीं करता है.)
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Tags: Kanwar yatra, Lord ShivaFIRST PUBLISHED : July 12, 2022, 11:49 IST