PM मोदी के जलमंदिर का सपना साकार रानी दुर्गावती की दो बावड़ियों का कायाकल्प

चंद सालों की मेहनत का नतीजा ये था कि इन बावड़ियों से स्वच्छ जल आने लगा जो पीने योग्य भी है. यानी ये बावड़ियां अपनी पुराने रंग में आने लगीं थीं.

PM मोदी के जलमंदिर का सपना साकार रानी दुर्गावती की दो बावड़ियों का कायाकल्प
भारत के हृदय स्थल मध्य प्रदेश की जीवनदायिनी नदी नर्मदा. अपनी निर्मल और शीतल धाराओं के साथ बहते हुए प्रदेश को हरा-भरा बनाने वाली नदी नर्मदा. इसी पवित्र नदी के तट पर बसा है जबलपुर. एक ऐसा शहर, जिसकी हर धड़कन में इतिहास की गूंज और संस्कृति की गहरी छाप नजर आती है. कालचुरी राजवंश के बाद जबलपुर को समृद्ध किया यहां के गोंड राजवंशों ने. जबलपुर में मदन महल का किला गोंड कालीन स्थापत्य कला और ऐतिहासिक महत्व के साथ शहर की प्राचीन विरासत का प्रतीक है. गोंडवाना की रानी दुर्गावती ने जबलपुर और आसपास के क्षेत्र में अति उत्तम जल व्यवस्थापन किया. अकेले जबलपुर में 52 ताल, 72 तलैया बनायीं. साथ ही महारानी ने अनेक बावड़ियां बनवाई. इन सब के कारण जबलपुर को कभी भी जल संकट का या अकाल का सामना नहीं करना पड़ा. सोलहवीं सदी के गोंड कालीन युग में इन बावड़ियों का निर्माण हुआ. ये बावड़ियां न केवल जल संकट को हल करती थीं बल्कि सामाजिक कार्यों का केन्द्र भी थीं. लेकिन समय का चक्र कुछ इस तरह घूमा कि इन बावड़ियों की चमक फीकी पड़ने लगी. आधुनिकता की दौड़ में लोगों ने इन पर ध्यान देना बंद कर दिया. धीरे-धीरे इनका अस्तित्व खतरे में पड़ने लगा. न केवल बावड़ियां जर्जर होने लगीं, बल्कि कुछ बावड़ियां तो कचरे के ढेर में तब्दील हो गईं. ये प्राचीन धरोहर अब न सिर्फ खंडहर के रूप में बदल चुकी थी बल्कि मानो पूरे शहर का कूड़े का ढेर यहां जमा हो चुका था. जबलपुर, जो नर्मदा नदी के तट पर स्थित है, और जिसे गोंड कालीन जल व्यवस्थापन की एक विरासत मिली थी, वहां पानी का संकट और समस्याएं बढ़ने लगीं. यह देखकर तब के जबलपुर के सांसद और मौजूदा मध्य प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह ने पंद्रह वर्ष पहले एक ‘जल संरक्षण अभियान’ शुरू किया. इस अभियान में उन्होंने जनजागृति से लेकर जमीन में पानी के रिसाव के आग्रह तक, अनेक कार्य किए. राकेश सिंह ने गोंड कालीन बावड़िया देखी, जो किसी समय की समृद्ध बावड़िया थी लेकिन अब खंडहर में बदल चुकी थी. उन्होंने यह तय किया कि इन बावड़ियों को ठीक करने की शुरुआत वो खुद करेंगे और पूरे समाज के साथ मिलकर इसे पूरा करेंगे. इसके लिए उन्होंने पूरे जबलपुर में एक बड़ा जन अभियान चलाया. इस अभियान में समाज के सारे लोगों ने मिलकर बावड़ियों को स्वच्छ किया. राकेश सिंह ने व्यक्तिगत रूप से इस परियोजना की निगरानी की और सुनिश्चित किया कि हर कदम पर गुणवत्ता और प्रामाणिकता का ध्यान रखा जाए. विशेषज्ञों की एक टीम गठित की, जिसमें इतिहासकार, पुरातत्व और वास्तुकला विशेषज्ञ भी शामिल थे. सबसे पहले उन्होंने इन बावड़ियों का विस्तृत सर्वेक्षण कराया. उनके ऐतिहासिक महत्व को ध्यान में रखते हुए पुनर्विकास की रूपरेखा तैयार की. इसमें हर छोटी सी छोटी चीज का ध्यान रखा गया, जैसे बावड़ियों की मूल संरचना, उनकी नक्काशी और जल संग्रहण की तकनीक. इन बावड़ियों की संरचना अद्भुत है, जो वास्तु कला की उत्कृष्टता को दर्शाती है. इनके चारों ओर बनी घुमावदार सीढ़ियां और सुंदर नक्काशीदार दीवारें इसकी भव्यता को और बढ़ाती हैं. ये बावड़ियां न केवल जल संचयन के लिए थीं, वरन सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण थीं. प्रधानमंत्री मोदी के सुझाव पर रखा नाम जलमंदिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जब राकेश सिंह के इस ‘बावड़ी स्वच्छता अभियान’ की जानकारी मिली, तो उन्होंने उनके इस अद्वितीय योगदान की सराहना की. इस अभियान को लेकर ट्विट भी किया. प्रधानमंत्री मोदी से एक मुलाकात में राकेश सिंह ने उनसे पूछा कि ‘बावड़ियों को सदैव साफ सुथरा रखने के लिए और क्या किया जाए?’ तो प्रधानमंत्री ने सुझाव दिया कि ‘बावड़ियों को जल मंदिर के रूप में विकसित किया जाए. यह नाम इस धरोहर की गरिमा और महत्व को भी बढ़ाता है’. प्रधानमंत्री मोदी के सुझाव पर इन पुनर्विकसित बावड़ियों का नाम ‘जल मंदिर’ रखा गया. जबलपुर की बावड़ियों को देखने देश विदेश से आएंगे लोग पद्मश्री डॉ. महेश शर्मा जबलपुर के गढ़ा स्थित राधाकृष्ण बावड़ी के लोकार्पण अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा था कि मैं जल संरक्षण के क्षेत्र में आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र झाबुआ में कार्य करता हूं. लोग दूर-दूर से उस कार्य को देखने भी आते हैं पर अब मैं लोगों से कहूंगा की जल संरक्षण के कार्य को देखना हो तो जबलपुर जरूर जाइए. क्योंकि जल के महत्व को समझते हुए राकेश सिंह ने ऐतिहासिक और पुरातन बावड़ी जो गंदगी और कीचड़ से भरी रहती थी उनके जीर्णोद्धार का बीड़ा उठाकर उन्हें जल मंदिर के रूप के पुनर्स्थापित किया है. यह सबके लिए अनुकरणीय है. निश्चित ही आने वाले समय में जबलपुर की बावड़ियों को देखने देश विदेश से लोग आएंगे. कीचड़ से भरे हुए गड्ढों को जल मंदिर बनते जबलपुर के लोग अपनी आंखों से देख रहे हैं और साथ ही पूरे भारत में अनेक बाबड़ियां, जलाशय और जल स्रोत होंगे जो ऐसे प्रयासों की प्रतीक्षा में हैं. राकेश सिंह ने आगे बढ़कर सकारात्मक प्रयास किए और उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर आप सभी ने कार्य किया, जिसका सुफल जबलपुर की ये दो बाबड़ियां हैं. यह दो नहीं है बल्कि पूरे भारत के अंदर जिनके मन में भी संवेदना है उनके लिए प्रेरणा है. 100 साल की कल्पना को लेकर हुआ कार्य भाषण देना बहुत आसान काम होता है लेकिन कीचड़ और गंदगी से भरे गड्ढे में उतरना और दूसरों की पीड़ा को दूर करने के लिए दुर्गंध को सहन करना साधारण बात नहीं है. आपका पद प्रतिष्ठा मान सम्मान आपको इस कार्य को करने के लिए विवश नहीं करते है. कोई व्यक्ति राजनीति में आता है तो वह पांच सालों की ही सोचता है लेकिन राकेश सिंह का संकल्प अगले 100 साल के लिए इन बावड़ियों को जिंदा रखना है. जल गंगा संवर्धन अभियान हेतु जबलपुर पधारे प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने राधाकृष्ण बावली गढ़ा पहुंचकर इस कार्य को देखा और बावली के कायाकल्प को देखकर लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह के जल संवर्धन और संरक्षण के कार्य की सराहना करते हुए कहा कि यह कार्य अद्भुत और प्रेरणादायक है. इससे हम सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए. जबरपुर के सांसद राकेश सिंह की पहल लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह ने बताया जब वो सांसद बने और जल के पुरातन स्रोतों को समाप्त होते देखा तब उनके मन में आया कि जल संरक्षण की दिशा में कार्य करना चाहिए. फिर उन्होंने इस दिशा में कार्य प्रारंभ किए जिनमें 2009 में 20 दिनों तक जल रक्षा यात्रा की, जो पूरे संसदीय क्षेत्र में चली थी. लेकिन वो जानते थे कि सिर्फ जल रक्षा यात्रा ही पर्याप्त नहीं है. इसके बाद भी हर वर्ष जल संरक्षण के लिए जनजागरण के कार्य सभी के साथ मिलकर मैं करता रहा, जिनमें तालाबों की सफाई, बरेला के पास गोमुख में ग्रेवेडियन बांध का निर्माण, संग्राम सागर को स्वच्छ करके पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का कार्य, जनजागरण हेतु गोष्ठी का आयोजन आदि कार्य किए. उसी दौरान ध्यान में आया कि जबलपुर में मां रानी दुर्गावती के काल की ऐतिहासिक बावड़ियां हैं जिनमें गढ़ा क्षेत्र स्थित राधाकृष्ण बाबड़ी और बल्देवबाग स्थित उजार पुरवा बावड़ी को देखा तो लगा इनका पुनरुद्धार होना चाहिए. इसके लिए भाजपा के कार्यकर्ताओं और स्थानीय जनों के साथ मिलकर श्रमदान किया. राकेश सिंह का श्रमदान भी ऐसा था कि वो खुद अपने कार्यकर्ताओं के साथ एक ऐसी बावड़ी में सफाई के लिए जा पहुंचे. खुद ही कूड़े के ढेर में घुसकर सफाई अभियान शुरू किया. राकेश सिंह ने न्यूज 18 को बताया कि जब वो ऐसी सफाई कर के घर लौटते थे तो उनके घर का स्नान गृह बदबू और गंदगी से भर जाता था. लेकिन धीरे धीरे पूरे समाज का साथ मिलता गया. और अब इन बावड़ियों में साफ पीने योग्य पानी मिलने लगा है. यानि अब यह जल मंदिर न केवल जलस्रोत है बल्कि एक सांस्कृतिक धरोहर और पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र भी बन चुके हैं. यहां के स्थानीय लोग, विशेष कर बच्चे, इन जल मंदिरों की देखभाल में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. इन बच्चों ने यहां एक साइकिल स्टैंड लगाया है, और उससे प्राप्त धन से बावड़ियों की जरूरतों को पूरा कर रहे हैं. पहले सांसद और अब अब प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह अब इन बावड़ियों के रखरखाव की स्थायी व्यवस्था की योजना बना रहे हैं. आज जबलपुर के ये जल मंदिर मात्र पानी के स्रोत नहीं हैं, अपितु समाज की एकजुटता का प्रतीक बन चुके हैं. स्थानीय बच्चे और समुदाय इन्हें संजोने और संरक्षित करने में जुटे हुए हैं. पीएम मोदी के सपने जलमंदिर को साकार करने के लिए मध्य प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह ने मिशन मोड में काम किया. उनका मानना है कि यह तो मात्र एक शुरुआत है. लेकिन ये भी तय है कि आने वाले समय में यह जल मंदिर हमारी सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षक बनेंगे. Tags: Jabalpur newsFIRST PUBLISHED : August 14, 2024, 22:03 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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