ऐसी जंगली सब्ज़ी जिसका स्वाद लेने के एवज़ में 29 लोगों ने गंवायी थी अपनी जान
ऐसी जंगली सब्ज़ी जिसका स्वाद लेने के एवज़ में 29 लोगों ने गंवायी थी अपनी जान
पीलीभीत और लखीमपुर के जंगलों में कटरुआ नामक सब्ज़ी पाई जाती है. यह सब्ज़ी साल के पेड़ों की जड़ों में पैदा होती है. यह बारिश के बाद होती उगना शुरू होती है. जंगल के आस पास रहने वाले ग्रामीण जंगल में घुसपैठ कर जमीन खोदकर इस सब्जी को निकालते हैं
पीलीभीत. भारत देश इतना विविध है कि चंद मील चलते ही हर जगह की अपनी अलग खानपान शैली होती है. अगर तराई की बात करें तो यहां बरसात के मौसम में एक ऐसी सब्जी पाई जाती है और जिसके चाहने वाले इसके लिए कोई भी क़ीमत अदा करने को तैयार रहते हैं. आज से तकरीबन तीन दशक पहले इस सब्जी के कारण 29 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था.
दरअसल पीलीभीत और लखीमपुर के जंगलों में कटरुआ नामक सब्ज़ी पाई जाती है. यह सब्ज़ी साल के पेड़ों की जड़ों में पैदा होती है. यह बारिश के बाद होती उगना शुरू होती है. जंगल के आस पास रहने वाले ग्रामीण जंगल में घुसपैठ कर जमीन खोदकर इस सब्जी को निकालते हैं. जिसके बाद इसे मंडी पहुंचाया जाता है जहां यह महंगे दामों में बिकती है. इस सब्ज़ी के शौकीनों का मानना है कि इसका स्वाद किसी नॉन वेजिटेरियन फूड से भी अधिक स्वादिष्ट होता है. यही कारण है कि लोग 1200-1500 रुपए प्रति किलो की क़ीमत में भी से ख़रीदने को तैयार रहते हैं.
जब जंगल में मिला लाशों का ढेर
देश भर में सुर्खियां बने कटरुआ कांड को बतौर पत्रकार रिपोर्ट करने वाले तारिक क़ुरैशी ने लोकल 18 को बताया की पीलीभीत के जंगल में हुए नरसंहार की कहानी तीन दशक से भी अधिक पुरानी है. 31 जुलाई 1992 को पीलीभीत के शिवनगर व घुंघचाई इलाके के 29 लोग पीलीभीत की धीरे रेंज के जंगलों में इस सब्ज़ी को निकालने के लिए गए थे. देर शाम तक जब यह ग्रामीण घरों को वापस नहीं लौटे तो परिजन समेत अन्य ग्रामीणों को चिंता सताने लगी. यह चिंता जंगल के साथ ही साथ आतंकवाद की भी थी. उस दौर में पंजाब से पैदा हुई खालिस्तान की आग पीलीभीत को भी अपनी जद में ले रही थी.
खालिस्तानी आतंकवाद का गढ़ था पीलीभीत
पीलीभीत जिला 90 के दशक के शुरुआती दौर में खालिस्तानी आतंकवाद का गढ़ था. बब्बर खालसा, खालिस्तान कमांडो फ़ोर्स जैसे तमाम आतंकी संगठनों के फरार आतंकियों का ठिकाना पीलीभीत हुआ करता था. ग्रामीणों ने अगले दिन सुबह तड़के ही पूरे मामले की सूचना स्थानीय पुलिस को दी गई थी लेकिन आतंकियों के डर से पुलिस भी कम तादात होने के चलते जंगल में जाने से कतराती रही
साक्ष्यों का अभाव पीड़ितों पर पड़ा भारी
29 लोगों का जंगल में एक ही वक़्त पर लापता होना एक बड़ा मामला था. ऐसे में उच्चाधिकारियों ने दूसरे ज़िलों से अतिरिक्त पुलिस फोर्स को मनाया जिसके बाद कांबिंग शुरू की गई. कई दिनों तक चले ऑपरेशन के बाद सिंगाघाट से इन 29 ग्रामीणों की लाशें बरामद की गई. 29 के 29 ग्रामीणों को गोलियों से छलनी गर मौत के घाट उतारा गया था. घटना इतनी भयावह थी कि राज्य सरकार के साथ ही साथ केंद्र सरकार भी चकित रह गई थी. तक़रीबन 19 साल तक मुक़दमा चलने के बाद सन 2011 में साक्ष्यों के अभाव के आधार पर सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया था.
Tags: Local18, Pilibhit news, Uttar Pradesh News HindiFIRST PUBLISHED : July 12, 2024, 13:09 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed