जम्मू-कश्मीर की सियासत के इनसाइक्लोपीडिया थे देवेंद्र राणा!
जम्मू-कश्मीर की सियासत के इनसाइक्लोपीडिया थे देवेंद्र राणा!
Devendra Singh Rana: देवेंद्र सिंह राणा विनम्रता की प्रतिमूर्ति थे. संबंधों को निभाने की कला उनसे बेहतर भला कौन जान सकता है. उन्होंने उम्र भर जरूरतमंदों की मदद की. हर समय उनके साथ खड़े रहे. जम्मू-कश्मीर में बीजेपी संगठन को मजबूती देने वाले देवेंद्र राणा पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे.
जम्मू- कश्मीर में बीजेपी के कद्दावर नेता देवेंद्र सिंह राणा का बीती रात 59 वर्ष की आयु में निधन हो गया. राणा पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे. एक समय उमर अब्दुल्ला के खास दोस्त और राजनीतिक सलाहकार रहे राणा इस बार सदन के अंदर विपक्ष का नेता बनने के रास्ते पर थे, जब उमर खुद सदन के नेता हैं. लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था. अपनी जबरदस्त सियासी पकड़, जनसंपर्क और सभी दलों के नेताओं के साथ बेहतरीन रिश्तों के लिए जाने जाते थे राणा.
देवेंद्र सिंह राणा नहीं रहे. जम्मू की नगरोटा सीट से विधायक, जम्मू- कश्मीर में बीजेपी के प्रमुख नेताओं में से एक, केंद्रीय मंत्री जीतेंद्र सिंह के अपने छोटे भाई और उमर अब्दुल्ला की पिछली सरकार के समय सीएम के राजनीतिक सलाहकार. लंबी- चौड़ी शख्सियत थी राणा की, न सिर्फ शारीरिक तौर पर, बल्कि राजनीतिक तौर पर भी. बीजेपी के बड़े नेताओं से खास रिश्ते, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह, दोनों के विश्वासपात्र. कम समय में ही बीजेपी की प्रदेश ईकाई के अंदर अपनी स्वीकार्यता हासिल कराने में कामयाब रहे राणा को जम्मू- कश्मीर विधानसभा में विपक्ष के नये नेता के तौर पर भी देखा जा रहा था.
बीती रात दीपावली के मौके पर नाते- रिश्तेदारों, दोस्तों से मिलने के बाद फोन को हाथ लगाया, एक्स पर कुछ ट्वीट्स देखे, तो देवेंद्र सिंह राणा की मृत्यु की दुखद जानकारी मिली. देवेंद्र सिंह राणा से मेरे संबंध बहुत पुराने नहीं रहे हैं, लेकिन राणा का जाना अखर गया. व्यक्तित्व में कुछ तो चुंबकीय था.
मानवीय संबंधों को निभाने की कला
जिंदगी में कुल जमा दो बार मैं देवेंद्र राणा से मिला था, कुल पांच बार ही फोन पर बातचीत भी. लेकिन इस दौरान राणा के बारे में मेरे मन में जो छवि बनी, वो उस राजनेता, इंसान की थी, जो न सिर्फ अपने काम में माहिर था, बल्कि मानवीय संबंधों को निभाने की कला में भी.
राणा कारोबार के रास्ते राजनीति में आए थे. बड़े भाई से पहले सक्रिय राजनीति में प्रवेश पा चुके थे राणा. बड़े भाई डॉक्टर जीतेंद्र सिंह लगातार तीसरी दफा प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री बने हैं, उधमपुर से बीजेपी के सांसद हैं, वर्ष 2014 से लगातार. गुलाम नबी आजाद के सीएम रहते हुए अमरनाथ आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के कारण डॉक्टर जीतेंद्र सिंह चर्चा में आए थे. उससे पहले जम्मू- कश्मीर के मशहूर डॉक्टर, डायबेटोलोजिस्ट के तौर पर जाने जाते थे डॉक्टर जीतेंद्र सिंह. वो बड़े थे, देवेंद्र राणा सबसे छोटे. गृह मंत्री अमित शाह के साथ देवेंद्र सिंह राणा.
देवेंद्र राणा से मेरी पहली बार बातचीत तीन साल पहले ही हुई थी, 27 अक्टूबर 2021 के दिन. उस दिन मैं श्रीनगर में था, जम्मू- कश्मीर के इतिहास में काफी महत्वपूर्ण दिन है 27 अक्टूबर का. 27 अक्टूबर 1947 के दिन ही पाकिस्तान समर्थित कबाइलियों के हमले से कश्मीर की जनता को राहत देने और जबरदस्ती कश्मीर को हड़पने के पाकिस्तान के मंसूबे को नाकाम करने के लिए भारतीय फौज श्रीनगर पहुंची थी पहली बार.
27 अक्टूबर 2021 का दिन
27 अक्टूबर 2021 के दिन श्रीनगर एयरपोर्ट पर एक बड़े कार्यक्रम का आयोजन था. उस डकोटा की लैंडिग करवाई जा रही थी, जो 1947 की 27 अक्टूबर को भी यहां लैंड हुआ था और रिफीट होने के बाद उस ऐतिहासिक अवसर की याद में फिर से लैंड कर रहा था श्रीनगर की हवाई पट्टी पर. उस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए जम्मू- कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा निकलने वाले थे, उनसे मिलने मैं श्रीनगर के राजभवन पहुंचा था.
श्रीनगर के राजभवन में बैठे हुए समसामयिक विषयों पर मनोज जी से गपशप चल रही थी, तभी राणा का फोन आया. जम्मू से संबंधित किसी मुद्दे पर बातचीत हो रही थी दोनों की. इसी दौरान मनोज जी ने मेरा उनसे फोन पर ही परिचय करवाया. दो मिनट की बातचीत हुई, लहजे और भाषा से तुरंत समझ में आ गया कि ये व्यक्ति कुछ खास है.
मनोज जी काशी हिंदू विश्वविद्यालय यानी बीएचयू के मेरे सीनियर रहे हैं, काफी सीनियर. जब वो आईटी- बीएचयू से इंजीनियरिंग में बीटेक, एमटेक की पढ़ाई कर रहे थे, छात्र राजनीति में जमकर सक्रिय थे, उस वक्त मैंने स्कूल जाना ही शुरु किया था. लेकिन बीएचयू के पूर्व छात्रों के बीच रिश्ते काफी मजबूत रहते हैं, इसमें न तो उम्र की दीवार आती है और न ही ओहदों का आडंबर. इसी वजह से मनोज जी ने मेरी बातचीत देवेंद्र राणा से करवाई, बिना किसी हिचक, झिझक के. सामान्य शिष्टाचार के तहत थोड़ी सी बातचीत और फिर कभी मिलने का वादा. राणा थोड़े समय पहले ही नेशनल कांफ्रेंस छोड़कर बीजेपी में आए थे, 11 अक्टूबर 2021 को ही उन्होंने बीजेपी ज्वाइन की थी. पार्टी ज्वाइन करने से पहले अमित शाह से मिले थे वो. जब एनसी छोड़ी तो उसके जम्मू इलाके के अध्यक्ष थे, पार्टी में अब्दुल्ला परिवार के बाद सबसे ताकतवर, उन्हें ट्रबलशूटर कहा जाता था पार्टी का.
जम्मू-कश्मीर मामले के इनसाइक्लोपीडिया
श्रीनगर के राजभवन से फोन पर हुई बातचीत के बाद, अगले दो साल तक देवेंद्र राणा से मेरी कोई बात नहीं हुई, कोई मुलाकात नहीं. अगली बात और पहली मुलाकात हुई जम्मू के राजभवन में, वर्ष 2023 के दिसंबर की पहली तारीख को. जम्मू किसी काम से गया हुआ था मैं, इसलिए मनोज जी से मिलने भी गया. जम्मू के राजभवन पहुंचा तो देखा देवेंद्र सिंह राणा पहले से ही बैठे हुए हैं मनोज जी के साथ. दोनों के बीच जम्मू के ही किसी मुद्दे को लेकर बात हो रही थी. प्रत्यक्ष की यही पहली मुलाकात थी. थोड़ी देर तक गपशप हुई और देवेंद्र राणा ने मनोज जी से विदा ली, ये समझते हुए कि मुझे उन्होंने मिलने के लिए बुलाया है, तो ज्यादा समय नहीं लेना चाहिए उनका.
जाते वक्त देवेंद्र राणा ने कहा कि समय मिले तो मिलने आएं इस बार या फिर आप कहें तो मैं ही आ जाउंगा आपसे मिलने, जहां आपके लिए अनुकूल होगा. राणा की ये विनम्रता दिल को छू गई. मनोज सिन्हा से मिलकर राजभवन से बाहर निकला तो जम्मू के साथी पत्रकार मित्रों से बातचीत हुई, सबने राणा की एक सुर में तारीफ की, कहा कि ये व्यक्ति जम्मू- कश्मीर के मामले में इनसाइक्लोपीडिया हैं, जरूर मिलना चाहिए. जम्मू- कश्मीर के सियासी हालात को समझने के लिए मैं किसी नेता से मिलना भी चाहता था, फिर भला राणा से बेहतर और कौन हो सकता था.
दो दिसंबर की शाम दिल्ली के लिए निकलना था, उससे पहले तीन घंटे के लिए फ्री था. इसलिए जम्मू में कहीं घूमने- फिरने या फिर कुछ शॉपिंग करने की जगह मैंने देवेंद्र राणा से मिलने का मन बनाया. चर्चा हुई पुराने मित्र संत कुमार शर्मा और जम्मू के मेरे सहयोगी तेजिंदर सिंह सोढ़ी से. हमलोग लंच कर ही रहे थे कि देविंद्र राणा का फोन आ गया इनके पास कि मुझे लेकर आ जाएं उनके घर.
हम तीनों एरोमा रेस्तरां से सीधे देवेंद्र राणा के घर पहुंचे. गांधी नगर इलाके में राणा का घर, शहर के सबसे पॉश इलाकों में से एक. घर के बाहर मेला लगा हुआ था. सैकड़ों की तादाद में लोग कैंपस के अंदर और बाहर. राणा का निजी सहायक बाहर सड़क पर खड़ा था, जैसे ही हम लोग पहुंचे, हमें लेकर घर के अंदर आया. ड्राइंग रुम में बिठाया, तब तक देवेंद्र सिंह राणा आ गये, अभिवादन हुआ. अपने पीए को बोले कि अब अगले दो घंटे के लिए सबकुछ रोक दो, मैं इन लोगों से आराम से बातचीत करूंगा, मेरा नाम लेकर कहा कि पहली बार आए हैं, फुर्सत से बात करने की मेरी इच्छा है.
राणा हमें लेकर घऱ के अंदर के एक दूसरे हॉलनुमा कमरे में लेकर गये. वहां पसर कर बैठे हम लोग. बाहर की गहमागहमी का यहां कोई असर नहीं, आराम से बातचीत की जा सकती थी. आधे घंटे की सोचकर आए थे, अगले ढाई घंटे बैठ गये, कब समय बीत गया, पता ही नहीं चला. जब घड़ी पर निगाह गई तो लगा कि फटाफट निकले नहीं तो फ्लाइट छूट जाएगी. इस वजह से बातचीत का सिलसिला बंद हुआ, देवेंद्र राणा बाहर तक छोड़ने आए. ये भी ध्यान रखा कि संत कुमार शर्मा को चलने में थोड़ी परेशानी है, तो गाड़ी बिल्कुल गेट तक आ जाए. जब तक हमारी गाड़ी निकल नहीं गई, सड़क पर खड़े रहे राणा, हाथ हिलाकर विदा करते रहे. जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के साथ देवेंद्र सिंह राणा.
कर्मचारियों के साथ खुद भी की थी कार साफ
हालांकि राणा के लिए आखिरी कुछ वर्षों में चलना- फिरना आसान नहीं रह गया था. वजन काफी था उनका, कम करने के लिए बैरियाटिक सर्जरी करवाई थी, लेकिन उसका असर शरीर पर उल्टा ही हो गया. कमजोरी साफ दिखती थी, लेकिन उनकी इच्छाशक्ति काफी मजबूत, कमजोरी और परेशानी का अहसास दूसरों को जल्दी होने नहीं देते थे. बीमारी और तकलीफ के बावजूद हाइपर एक्टिव रहे राणा अंतिम समय तक. लगातार जम्मू- कश्मीर के अलग- अलग हिस्सों में दौरा करते हुए. ये आदत एनसी के जमाने में भी थी, बीजेपी ज्वाइन करने के बाद भी. परिवार के लिए समय कम ही था. हमेशा मुस्कराते हुए, सबके आगे पेश होना. वर्क- लाइफ बैलेंस नहीं था. पत्नी उनका कारोबार देखती थीं, वो प्रदेश की सियासत. दो बेटियों और एक बेटे की शादी भी नहीं हुई थी.
पिछले साल दो दिसंबर की उस शाम करीब ढाई घंटे की बातचीत में क्या- क्या नहीं बताया था राणा ने, दिल खोलकर. कैसे एनआईटी कुरुक्षेत्र से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद जम्मू में कार वॉशिंग का गैराज खोला, कर्मचारियों के साथ मिलकर खुद भी कार साफ की. आगे चलकर मारुति की डीलरशीप ली, पहली एजेंसी पठानकोट में. जम्मू- कश्मीर और हिमाचल प्रदेश दोनों से नजदीक होने के कारण ये कार एजेंसी खूब चली. फिर तो पीछे मुड़कर नहीं देखा. एक के बाद एक, जम्मू सहित उत्तर भारत के कई शहरों में डीलरशीप ली, साथ ही बन गये उत्तर भारत में मारुति के सबसे बड़े कार डीलर.
ऑटोमोबिल के साथ ही केबल के धंधे में भी राणा ने कदम रखा, घरों में केबल टीवी के साथ शुरुआत करने के साथ ही लोकल चैनल भी शुरु किया टेक-वन के नाम से. नेटवर्किंग भी बढ़ती चली गई. पिता राज्य में पीएचईडी के चीफ इंजीनियर रहे थे, बेटे ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई तो की, लेकिन नौकरी की जगह व्यापार का रास्ता चुना. तेजी से बुलंदी भी हासिल की, सरकार और शासन में भी अच्छा संपर्क हो गया. कहा जाने लगा कि सरकार किसी की भी हो, देवेंद्र राणा का कोई भी काम आसानी से हो जाता है, उन्हें कोई परेशानी नहीं होती, संबंध उनके इतने अच्छे हैं नेताओं और अधिकारियों से.
उमर अब्दुल्ला से जुड़ने की कहानी
कमाई के साथ समाज सेवा में भी लगे देवेंद्र राणा. आसपास के लोगों की सेवा करना, मदद करना. क्या गरीब, क्या ग्रामीण, जो भी आया, उसकी खुले हाथ मदद. राणा की शोहरत बढ़ी. फारुक अब्दुल्ला का ध्यान गया, राणा के दिमाग और समझ से वे भी प्रभावित थे. फारुक खुद अपने बेटे उमर को राजनीतिक उत्तराधिकारी बना रहे थे, राज्य की बागडोर भी सौंप देना चाहते थे. इसलिए जरूरत एक ऐसे व्यक्ति की थी, जो न सिर्फ पूरे राज्य को जानता हो, बल्कि उमर की तरह ही युवा हो और जिस पर भरोसा किया जा सके.
कई बार देवेंद्र राणा को अपने साथ जुड़ने के लिए कहा. फिर एक दिन उनकी कार एजेंसी पर ही आ लगी. राणा के पास कोई विकल्प नहीं रहा. उमर के साथ जुड़ गये राणा. दोस्त के तौर पर, राजनीतिक सलाहकार के तौर पर भी. कार में भी दोनों साथ- साथ. कभी खुद गाड़ी ड्राइव करते, तो कभी उमर. इतनी गाढ़ी दोस्ती और इतना भरोसा एक- दूसरे के ऊपर था, राणा और उमर को. ये भी उस दौर में, जब राज्य में मुफ्ती मोहम्मद सईद और फिर गुलाम नबी आजाद की सरकार थी, नेशनल कांफ्रेंस सत्ता से दूर थी. कार्यकर्ताओं के मनोबल को बढ़ाने के साथ ही पार्टी का सांगठनिक ढांचा भी मजबूत करने की चुनौती थी. राणा ने ये काम उमर के लिए किया, दिल लगाकर किया, तनतोड़ मेहनत के साथ किया.
देवेंद्र राणा पर भरोसा
परिणाम ये हुआ कि 2008 के आखिर में जब जम्मू- कश्मीर में विधानसभा चुनाव हुए, तो नेशनल कांफ्रेंस की सत्ता में वापसी हुई, उमर अब्दुल्ला सीएम बने. राणा वापस अपने धंधे में लग जाना चाह रहे थे, लेकिन उमर के अनुरोध पर उनके राजनीतिक सलाहकार की भूमिका औपचारिक तौर पर स्वीकार की. पार्टी, सरकार या फिर परिवार, इन तीनों ही मामलों में उमर अगर सबसे ज्यादा किसी की बात सुनते थे, भरोसा करते थे, तो देवेंद्र सिंह राणा पर.
यहां तक कि उमर की पत्नी पायल और बच्चों का भी ख्याल रखते थे देवेंद्र राणा. पायल की माता वैष्णो देवी में गहरी आस्था थी, उमर के सीएम रहते हुए वो बार- बार वहां हवन के लिए जाती थीं. हवन के लिए बुकिंग होती थी देवेंद्र राणा के नाम पर, सब कुछ गुप्त रखने के लिए, क्योंकि हवन में पायल के साथ उमर को भी बैठना पड़ता था, पायल की बात माननी पड़ती थी. फारूक अब्दुल्ला तो अपने खिलंदड़े अंदाज के लिए जाने जाते हैं, फिल्मी गाने भी गा सकते हैं और भगवान के भजन भी, हवन भी. लेकिन उमर रिजर्व रहे हैं, हिंदू युवती पायल नाथ से शादी करने के कारण मुस्लिम कट्टरपंथियों के निशाने पर भी. दोनों की शादी टूटने का बड़ा कारण भी यही मानी जाती है, घाटी की राजनीति, घर में हिंदू पत्नी, वो भी सनातनी संस्कारों को लेकर चुस्त, के साथ नहीं की जा सकती थी.
संबंधों में खटास
2014 में हुए विधानसभा चुनावों में उमर की सरकार सत्ता से बाहर गई, फिर से मुफ्ती की सरकार आई. उमर भले ही बीजेपी को बाहर से गाली देते रहे, लेकिन अंदर से वो इन चुनावों के बाद बीजेपी के साथ गठबंधन कर सरकार बनाना चाह रहे थे, उन्होंने इसके लिए राणा को इशारा भी किया था. लेकिन बीजेपी ने उमर की जगह मुफ्ती की पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाई. पहले मुफ्ती और बाद में उनकी बेटी महबूबा राज्य की मुख्यमंत्री बनीं, बीजेपी सत्ता में साझेदार थी, उमर की एनसी सत्ता से बाहर. इसी दौरान उमर और राणा के संबंधों में खटास आनी शुरू हुई.
संबंध 2018 के बाद अंदरखाने बिगड़ते चले गये. बीजेपी ने जून के महीने में महबूबा की सरकार से समर्थन वापस लेकर राज्यपाल शासन लगाया और फिर 2019 के अगस्त महीने में उस आर्टिकल 370 को ही समाप्त कर दिया, जिससे जम्मू- कश्मीर को विशेष दर्जा मिला हुआ था और जिसके बूते घाटी वाली पार्टियां अपना एजेंडा चलाती थी, हुर्रियत के साथ मिलकर अलगाववाद का खेल खेलती थीं. राणा नेशनल कांफ्रेंस में ये सोचकर जुड़े थे कि जम्मू के हितों का वो ध्यान रख पाएंगे, उस पार्टी में रहकर, जिसके अंदर जम्मू की बात करने वाला कोई मजबूत नेता नहीं है.
लेकिन आर्टिकल 370 की समाप्ति के बाद नेशनल कांफ्रेंस के विद्रोही रुख के बाद राणा को ये लगने लगा कि नाम से ही राष्ट्रीय है कांफ्रेंस, बाकी सोच अलगाववादी ही. आखिर राणा को इतिहास का ज्ञान भी तो था. उमर के दादा शेख अब्दुल्ला ने कम्युनल मुस्लिम कांफ्रेंस को नेशनल कांफ्रेंस का नाम आजादी के पहले तब दिया था, जब उन्हें गांधी और नेहरू का विश्वास हासिल करना था. आजादी के बाद जैसे ही जम्मू- कश्मीर की सत्ता की बागडोर शेख के हाथ में आई, रंग बदलने में देरी नहीं की. सुविधा के हिसाब से अलगाववाद, कश्मीरियत और राष्ट्रवाद का खेल खेलते रहे, जब जिससे फायदा हो जाए. यही गुण जेनेटिक तौर पर फारूक और उमर को भी मिला. पार्टी के अंदर का कट्टरपंथी धड़ा वैसे भी देवेंद्र राणा से नाराज रहता था, आखिर नेशनल कांफ्रेंस का जम्मू प्रांत अध्यक्ष राणा जैसा हिंदू नेता भला कैसे हो सकता है, वो कैसे पार्टी में अपनी धाक जमा सकता है.
बीजेपी शीर्ष नेता से इस तरह बढ़ा संपर्क
एनसी में अपने भविष्य को लेकर राणा के मन में जो उधेड़बुन चल रही थी, इसी दौरान उनकी प्रतिभा के कायल रहे एक वरिष्ठ राजनेता ने उनको अमित शाह से मिलवाया. अमित शाह से हुई राणा की ये मुलाकात उनके राजनीतिक जीवन में एक बड़ा करवट लेकर आई. उन्होंने 2021 के अक्टूबर महीने में बीजेपी ज्वाइन कर ली. प्रधानमंत्री मोदी ने भी देवेंद्र राणा का कामकाज देखा, बड़े भाई को तो अपने साथ, अपने ही कार्यालय में राज्य मंत्री के तौर पर 2014 से रखा हुआ था. छोटे भाई में उस प्रदेश के अंदर बीजेपी के सपने को पूरा करने में बड़ी भूमिका निभाने का माद्दा नजर आया मोदी- शाह को, जो आर्टिकल 370 की समाप्ति के साथ ही केंद्र शासित प्रदेश बन चुका था और जहां विकास की बयार बहाने और आतंकवाद के खिलाफ की गई सख्त कार्रवाई के बाद बदलाव आता दिख रहा था. मोदी और शाह के सपने को जमीन पर उतारने में लगे जम्मू- कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा तो खुद ही राणा को काफी पसंद करते थे, उनके कामकाज और सियासी समझ से काफी प्रभावित थे.
देवेंद्र राणा भी मोदी, शाह और सिन्हा से काफी प्रभावित हुए थे. खास तौर पर मोदी सरकार के कामकाज से, जिसके तहत जम्मू- कश्मीर में विकास योजनाओं को मजबूती से धरातल पर उतारा जा रहा था, सरकारी पैसे की बंदरबांट नहीं की जा रही थी, जो पिछली सरकारों में होती थी. यही नहीं, राणा को इस बात से भी काफी खुशी हुई थी कि मोदी के निर्देश के मुताबिक शाह और सिन्हा ने जम्मू- कश्मीर में शांति खरीदने की जगह आतंकी ढांचे को पूरी कठोरता के साथ ध्वस्त किया था, टेरर फाइनेंसिंग पर मजबूत लगाम लगाई थी.
देवेंद्र राणा के सुझाव पर झल्लाए थे चिदंबरम
देवेंद्र राणा को याद था यूपीए सरकार का वो दौर, जब गृह मंत्री थे पी चिदंबरम और उमर की मौजूदगी में होने वाली एक समीक्षा बैठक के दौरान टेरर फंडिंग को रोकने के लिए उन्होंने सीमा पार से होने वाले व्यापार को रोकने के लिए कहा था, जिसमें सस्ता सामान लाकर महंगे दाम पर बेचा जाता था और फिर उससे हासिल होने वाली रकम को आतंकी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल किया जाता था. चिदंबरम देवेंद्र राणा के सुझाव पर इतने झल्लाए थे कि बाद की तमाम समीक्षा बैठकों में उन्हें आने नहीं दिया था, जबकि राणा उस वक्त के मुख्यमंत्री उमर के राजनीतिक सलाहकार के तौर पर सरकार और प्रशासन में काफी अहम भूमिका निभा रहे थे.
बीजेपी को नई धार
बीजेपी ज्वाइन करने के बाद देवेंद्र राणा ने संगठन को धार दी लगातार दौरे करते हुए, प्रदेश के हर हिस्से में जाते हुए. विधानसभा चुनावों के पहले पार्टी को मजबूत करने में देवेंद्र राणा ने बड़ी भूमिका निभाई. स्वास्थ्य खराब होने के बावजूद पूरे प्रदेश का लगातार दौरा किया, हर जगह संगठन को मजबूत किया. अपनी सीट नगरोटा, जिससे पहली बार एनसी के टिकट पर चुनाव लड़कर जीत हासिल की थी, वहां से 2024 के चुनावों में बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल की, राज्य में सबसे अधिक मार्जिन से जीतने वाले विधायकों में से एक रहे राणा. पार्टी संगठन की मजबूती का आलम ये रहा कि चुनावी इतिहास में सबसे अधिक सीटें जम्मू के इलाके से जीतने का रिकॉर्ड बना गई बीजेपी इस बार. कश्मीर में भी कई सीटों पर नंबर दो और तीन पर रही बीजेपी, जिसके बारे में कुछ साल पहले तक कोई सोच भी नहीं सकता था.
दस दिन पहले ही जम्मू- कश्मीर विधानसभा में विधायक के तौर पर शपथ लेने वाले देवेंद्र राणा को सदन में विपक्ष का नेता बनाने की तैयारी मन ही मन कर चुका था बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था. अपने शरीर का ध्यान रखने की जगह पार्टी के कामकाज में लगातार लगे रहने वाले राणा की सेहत उन्हें दगा दे गई. 31 अक्टूबर की शाम उन्होंने फरीदाबाद के माता अमृतानंदमयी अस्पताल में अंतिम सांस ली, जहां 26 अक्टूबर को भर्ती हुए थे वो.
रौशनी भरने वाले, रौशनी के त्योहार के दिन ही हुए विदा
देवेंद्र राणा का जाना क्या आम, और क्या खास सबको उदासीन कर गया, सबको चौंका गया. इतनी जल्दी चले जाएंगे राणा, जल्दी किसी को भरोसा नहीं हुआ. दीपावली का त्योहार मना रहे उनके जानने वालों को क्या पता था कि अपने जीवन में लाखों परिवारों की जिंदगी में रौशनी भरने वाले राणा रौशनी के त्योहार के दिन ही इस दुनिया से विदा ले लेंगे. प्रधानमंत्री मोदी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह तक ने उनके निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया, शोक जताया, जम्मू के घर पर आने वाले लोगों का तांता देर रात से ही लगा रहा. आखिर इसी घर पर रोजाना सैकड़ों की तादाद में लोग हर किस्म की मदद के लिए आते थे, बेटी की शादी से लेकर इलाज में मदद की मांग के साथ, देवेंद्र राणा कभी किसी को निराश नहीं भेजते थे, बल्कि सबकी झोली में कुछ डालकर ही.
किसी बेटी का घर बसाया, तो किसी बूढ़े का इलाज कराया. चाहे कोई बड़ी जगह हो या फिर अपने घर का अहाता, पूरी गर्मजोशी से गरीब, दुखियारों से मिलते रहे, समय देते रहे राणा, बिना अपना ख्याल रखे.
उपराज्यपाल मनोज सिन्हा को भी देर शाम राणा के निधन की खबर मिली, वो भी सो नहीं पाए. भला कैसे भूल सकते थे कि चुनावों की आपाधापी के बीच भी राणा अपने क्षेत्र में डिग्री कॉलेज और पीएचसी की मांग उनसे करते रहे थे, ताकि क्षेत्र के लोगों का भला हो सके. जिस दिन राणा ने विधायक के तौर पर शपथ ली थी, उस दिन राणा से मिल नहीं पाए थे मनोज सिन्हा. फोन पर बात हुई थी, तब चर्चा हुई कि जल्दी ही मिलेंगे, लेकिन राणा खुद जल्दी ही निकल गये अनंत की यात्रा पर, दोनों का मिलना नहीं हुआ.
हर वर्ग, हार पार्टी में स्वीकार्य
भारतीय राजनीति में आजकल वैसे नेता गिनती भर के हैं, जिनकी स्वीकार्यता अपनी पार्टी के अलावा बाकी दलों के नेताओं में भी हो. देवेंद्र राणा भी ऐसे ही विरले लोगों में से थे, जिनके देहांत की खबर लगते ही बीजेपी के नेता तो ठीक, राजनीतिक दुश्मन भी शिद्दत से याद करते नजर आए उन्हें, चाहे पीडीपी की महबूबा मुफ्ती हों या फिर फारूक अब्दुल्ला हों या फिर सीएम उमर अब्दुल्ला. उमर ने तो राणा के साथ के दिनों की कई तस्वीरें एक्स पर साझा कर अपने दुख का इजहार किया, पिता फारूक भी काफी भावुक नजर आए, कभी पार्टी के प्रमुख नेता रहे देवेंद्र सिंह राणा के कामों की तारीफ की. सीएम उमर जम्मू में राणा के घर भी पहुंचे. देवेंद्र राणा फुर्सत के पल को अपने अंदाज में इस्तेमाल करते थे.
आप बहुत याद आएंगे देवेंद्र राणा…
सवाल उठता है कि मैं भला क्यों देवेंद्र राणा को इतनी शिद्दत से याद कर रहा हूं. एक मात्र मुलाकात उनसे मेरी हुई थी 2 दिसंबर 2023 को, लेकिन वो मेरे दिल पर गहरा छाप छोड़ गई. जम्मू- कश्मीर की सियासत को लेकर उनकी जबरदस्त जानकारी तो एक तरफ, लेकिन निजी संबंधों को निभाने की कला, तहजीब और शिष्टाचार उनके खास गुण थे. जून में मेरी मां का देहांत हुआ था, बड़ा ही भावुक संदेश आया था उनका. आखिरी संदेश इसी बाइस अक्टूबर को आया था. अमित शाह के शुरुआती जीवन को लेकर एक पॉडकास्ट किया था, राणा का व्हाट्सअप मैसेज आया- बड़ा ही अच्छा लगा, मैं क्या अपने सोशल मीडिया हैंडल पर रिपोस्ट कर सकता हूं? आज के जमाने में आप भला इस तरह की विनम्रता और शिष्टाचार की उम्मीद कर सकते हैं क्या? उनके यही वो गुण रहे, जिसके कारण सबकुछ छोड़कर मैं ये संस्मरण लिख रहा हूं. सच में, आप बहुत याद आएंगे देवेंद्र राणा. याद उन्हें भी आप आएंगे, जिनकी पूरी जिंदगी आपने मदद की, किसी बेटी का घर बसाया, तो किसी बूढ़े का इलाज कराया. चाहे कोई बड़ी जगह हो या फिर अपने घर का अहाता, पूरी गर्मजोशी से गरीब, दुखियारों से मिलते रहे, समय देते रहे राणा, बिना अपना ख्याल रखे. इसलिए आज सब उन्हें याद कर रहे हैं, मैं भी.
Tags: Jammu kashmir news, National NewsFIRST PUBLISHED : November 1, 2024, 19:51 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed