लेडी जेम्स बांड रजनी पंडित 35 साल में 80000 से ज्यादा किए केस सॉल्व
लेडी जेम्स बांड रजनी पंडित 35 साल में 80000 से ज्यादा किए केस सॉल्व
मुंबई की रहने वाली रजनी पंडित भारत की पहली महिला जासूस हैं. उन्होंने अपने 35 साल के करियर में 80,000 से ज्यादा केस सॉल्व किए हैं. कभी नौकरानी बनकर तो कभी गूंगी-बहरी बनकर कई केस सुलझाए हैं.
आज तक हमने फिल्मों में और धारावाहिकों में जासूसों का किरदार देखा है. लेकिन वास्तविकता में आपने बमुश्किल कोई एकाध ही जासूस देखा होगा. टीवी धारावाहिकों में दूरदर्शन पर चलने वाला धारावाहिक व्योमकेश बक्शी हो या जासूस विजय या फिर विदेशी फिल्मों में जेम्स बांड का किरदार हो. लेकिन, भारत की पहली महिला जासूस रजनी पंडित की कहानी इससे अलग है. रजनी अपने 35 साल के करियर में 80 हजार से ज्यादा केस सॉल्व कर चुकी हैं.
न्यूज़ 18 से बात करते हुए रजनी पंडित कहती हैं, बचपन में वकील या टीचर बनने की ख्वाहिश थी. लेकिन, कॉलेज टाइम की एक घटना ने उन्हें जासूसी की तरफ मोड़ दिया. मेरी क्लासमेट एक सीधी-साधी लड़की थी. कुछ लोग उसके भोलेपन का फायदा उठा रहे थे. मुझसे ये देखा नहीं गया. मैंने अपने जासूसी दिमाग का इस्तेमाल कर उस लड़की का एड्रेस निकाला और उसके घर पर जाकर उसके बारे में घरवालों को बताया. लड़की के घरवालों को मुझ पर भरोसा नहीं हुआ. वे झगड़ने लगे. इसके बाद मैं उस लड़की के पिता को अपने साथ ले जाकर लड़की के साथ हो रहीं हरकतें दिखाईं. तब लड़की के पिता ने रजनी को कहा- ”आप तो जासूस हो.” कॉलेज के दिनों में क्लर्क की नौकरी से जासूस बनने तक का सफर.
रजनी कॉलेज से फ्री होने के बाद एक ऑफिस में क्लर्क का काम करती थीं. एक सहकर्मी महिला ने रो-रो कर किस्सा सुनाया. जिसमें उस लेडी के घर में शादी के बाद नई बहू के आने के बाद से चोरियां होनी शुरू हो गई थीं. उन्होंने रजनी को रो-रोकर सारी समस्या बताई. रजनी ने कुछ दिनों के लिए ऑफिस से ब्रेक लेकर छानबीन शुरू की. रजनी ने कई दिनों तक उनके घर पर नज़र रखी. इसके बाद उन्होंने सबूत के साथ दिखाया कि आपका छोटा बेटा ही अपने घर का सामान उठाकर किसी दोस्त के रूम पर रख आता है. महिला ने घर में सबसे पूछताछ की तो पता चला कि उनका छोटा बेटा ही चोरी कर रहा है. इस तरह रजनी ने अपनी जासूसी लाइफ का पहला केस 22 साल की उम्र में सॉल्व किया.
जब पिता को पता चला तो क्या हुआ
रजनी कहती हैं, जब पिता को पहले केस के बारे में पता चला तो उन्होंने समझाया कि ये मामूली काम नहीं है. इसे छोड़कर वापस पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए. कहीं नौकरी मिले तो कर लेनी चाहिए. लेकिन रजनी बचपन से जिद्दी थीं और ज़िद के चलते उन्होंने अपना काम जारी रखा. उन्होंने लाइसेंस के बारे में जानकारी जुटाई, लेकिन इंडिया में कोई लाइसेंस उपलब्ध नहीं करवाया जाता है. 1991 में की डिटेक्टिव एजेंसी की शुरुआत.
1991 में डिटेक्टिव एजेंसी की शुरुआत
रजनी ने अपना काम जारी रखा और धीरे-धीरे उन्हें कई केस मिलने लगे. उन्होंने 1991 में अपनी एजेंसी की शुरुआत की थी. रजनी बताती हैं, किसी केस के सॉल्व होने पर उसने रजनी पंडित का आर्टिकल एक मैगजीन को दिया और वो मैगज़ीन में छपा. इसके बाद दिल्ली दूरदर्शन ने अपने शो ‘हम भी किसी से कम नहीं’ में पहला इंटरव्यू रजनी पंडित का किया. लेकिन रजनी ने अपना जासूसी दिमाग लगाकर पूछताछ की और कहा कि मैं किसी को भी अपना इंटरव्यू नहीं देती हूं. लेकिन जान पहचान की एक महिला के समझाने पर उन्होंने दूरदर्शन की टीम को इंटरव्यू दिया.
इस शो में आए रजनी के इंटरव्यू का काफी अच्छा प्रभाव हुआ. वो बताती हैं, “हमारे पास लैंडलाइन नहीं था. इसकी वजह से आसपास के लोगों के घर में फोन आने लगे. इससे मुझे कई केस मिले. एक महीने बाद जब फोन लिया तब रात को दो-तीन बजे तक केस के लिए फोन आने लगे.” उनकी एजेंसी चल पड़ी. उसके बाद कई अखबारों में उनकी स्टोरी आई. उन्हें कभी एड करने की जरूरत नहीं पड़ी.
रजनी कहती हैं, डिटेक्टिव पैदा होते हैं. बनाए नहीं जाते. लोगों में पैदाइशी कुछ क्वालिटीज़ होनी जरूरी हैं. तभी वह सफल जासूस बन सकते हैं. एक डिटेक्टिव को हिम्मत वाला होना चाहिए. चौकन्ना होना चाहिए. इसके साथ ही एक्टिंग स्किल भी होनी चाहिए. वो कहती हैं, ये सब बातें मुझमें शायद पहले से थीं. इस वजह से ही मैं सफल जासूस बन पायी.
डर नाम का शब्द डिक्शनरी में नहीं
रजनी कहती हैं, डर नाम का शब्द उनकी डिक्शनरी में है ही नहीं. जो लोग गलत होते हैं या दोषी होते हैं वह उनके पास आते ही नहीं हैं. उनकी तेज नज़र और होशियारी से दोषी कभी नहीं बचता है. एक बार एक व्यक्ति अपनी पत्नी की जासूसी करवाने का केस लेकर आया. उस आदमी का कहना था कि उसकी पत्नी किसी के साथ भी हंसती है और उसका व्यवहार खराब है. मेरी टीम ने काफी दिनों तक उस पर नज़र रखी. लेकिन उस महिला ने कुछ भी गलत नहीं किया था. लेकिन उसके पति को तलाक ही चाहिए था तो उसने कहा कि आप अपने ही लोगों को उसके साथ खड़े करके फोटो क्लिक करा दो. इससे तलाक लेने में आसानी होगी. आपको जितना पैसा चाहिए, दे दूंगा. लेकिन, मैंने कभी पैसे के लालच में किसी की ज़िंदगी बर्बाद नहीं की.
अब तक सबसे मुश्किल केस
उनके जीवन का सबसे कठिन केस लगभग 6 महीने चला था. इसमें पिता-पुत्र दोनों का मर्डर हो गया था. लेकिन कोई सबूत नहीं मिला था. जब रजनी को यह केस मिला तो उन्होंने केस स्टडी करके हत्यारे का पता लगाने की कोशिश की. इसके लिए वो नौकरानी बनकर उस महिला के घर काम करने लगीं. कुछ दिन बाद जब महिला बीमार पड़ी तो उसकी सेवा करके विश्वास जीत लिया. लेकिन एक दिन उससे एक गलती हो गई. एक दिन जब रजनी उस महिला के पास गई थीं तो उनसे बातचीत के दौरान टेप रिकॉर्डर का बटन दब गया और उसने आवाज सुन ली. रजनी महिला के शक के घेरे में आ गई थीं. महिला ने रजनी का घर से बाहर आना जाना बंद करवा दिया था.
रजनी को वहां नौकरानी बनकर काम करते 6 महीने हो चुके थे. लेकिन केस सॉल्व नहीं हुआ था. एक दिन एक नया व्यक्ति उस महिला से मिलने आया. रजनी को शक हुआ. यही वो आदमी हो सकता है जिसने उन पिता-पुत्र का कत्ल किया है. महिला ने रजनी का बाहर जाना बंद कर रखा था. तो रजनी ने बाहर निकलने के लिए किचन से चाकू लिया और अपना पैर काट लिया. डॉक्टर के पास जाने का बहाना बनाकर घर से निकलीं. एक एसटीडी बूथ से अपने क्लाइंट को फोन लगाकर पुलिस लेकर आने को कहा. थोड़ी देर में पुलिस वहां पहुंची उस महिला और उस व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया. जांच के बाद पता चला कि वो व्यक्ति उस महिला का प्रेमी था. उसी ने महिला के कहने पर पिता और पुत्र को मारा था, जिससे उनका रास्ता साफ हो जाए. जासूसी के लिए एक्टिंग स्किल का होना भी जरूरी है.
अलग-अलग केस में अलग-अलग किरदार
गुनाह का पता लगाने के लिए कई किरदार निभाने पड़ते हैं. कभी प्रेग्नेंट लेडी बनकर तो कभी अंधे बनकर या कभी गूंगा-बहरा बनकर लोगों से मिलने जाना पड़ता है. अपने आप पर काबू रखना पड़ता है कि अपने रोल में स्थायी बने रहें. जब कहीं गूंगे बनकर या बहरे बनकर गए हैं तो कितनी भी मुसीबत आ जाए, मुंह नहीं खोलना है.
मराठी में लिखी किताब का केस
रजनी कहती हैं, “मैंने मराठी में एक किताब लिखी थी. जिसकी कॉपी छपने से पहले लीक हो गई थी. जैसे ही मुझे पता चला तो छानबीन शुरू कर दी. केस छोड़ने के लिए प्रकाशन वालों ने धमकी दी थी. लेकिन मैं डरी नहीं. छानबीन कर मामला कोर्ट तक पहुंचाया. वहां भी 50 से 60 लोगों को डराने के लिए बुलाया गया. लेकिन मैं वहां से भी इतनी सावधानी से निकल आई की किसी को पता भी नहीं चला.” उन्होंने ‘फेसेस बिहाइंड फेसेस’ और ‘मायाजाल’ नाम से दो किताबें भी लिखी हैं.
कई लोगों को देती हैं जासूसी की ट्रेनिंग
रजनी अब तक कई लोगों को जासूसी की ट्रेनिंग दे चुकी हैं. जो कोई भी सीखना चाहता है और उनके पास आता है. वो उसे काम सिखाती हैं. कई लोगों को उन्होंने जासूसी करना सिखाया है. जिसके बाद लोग अपना खुद का काम करने लगे हैं. इसमें बढ़िया कमाई भी है. अभी दो महिलाएं उनके पास काम सीख रही हैं. इनमें से एक महिला ने जासूसी में अपनी दिलचस्पी के चलते नौकरी छोड़ दी.
अब तक मिल चुके हैं कई पुरस्कार
रजनी को पहला अवॉर्ड 1990 में मिला था. उसके बाद से लगातार अवार्ड मिल रहे हैं. खुश होते हुए रजनी बताती हैं कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें ‘फर्स्ट लेडी डिटेक्टिव’ का अवॉर्ड दिया है. यह अवॉर्ड उन्हें महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से दिया गया.
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