Forest man of india : 40 सालों में 1360 एकड़ जमीन पर घना जंगल खड़ा कर दिया पद्मश्री जादव पायेंग ने
Forest man of india : 40 सालों में 1360 एकड़ जमीन पर घना जंगल खड़ा कर दिया पद्मश्री जादव पायेंग ने
असम के जादव पायेंग ने 1360 एकड़ जमीन को जंगल बना दिया. लगातार 40 सालों से पौधरोपण कर उनकी देखभाल करते हैं. इसके चलते उन्हें पद्मक्षी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है.
हर साल 5 जून को वैश्विक स्तर पर पर्यावरण दिवस मनाया जाता है. सोशल मीडिया की डिजिटल दुनिया में जीने वाले लोग पौधरोपण या पर्यावरण के हित में कोई न कोई काम करके उसकी तस्वीर एक बेहतरीन कैप्शन के साथ अपने सोशल मीडिया अकांउट पर डालकर पर्यावरण प्रेमी बन जाते हैं. लेकिन देश और दुनिया में पर्यावरण के प्रति हमारा प्रेम कितना है इसका अंदाजा बढ़ते प्रदूषण से लगाया जा सकता है.
हाल के दिनों में पर्यावरण में बढ़ता प्रदूषण और कटते घने जंगलों का ऊंची-ऊंची इमारतों में तब्दील होने का नतीजा क्लाइमेट चेंज है. बढ़ता प्रदूषण प्रकृति के लिए तो घातक है ही साथ ही मानव सभ्यता के लिए बहुत बड़ा खतरा भी है. हालांकि सरकारों और कई लोगों ने पर्यावरण को बचाने के लिए कई तरह की मुहिम चलाई हैं. लेकिन आज हम जिनकी दास्तान सुनाने जा रहे हैं, उन्होंने अपने जीवन का बहुत लंबा समय देकर 1360 एकड़ जमीन पर जंगल बना दिया है. असम के रहने वाले जादव पायेंग ने अपने जीवन के 40 साल पेड़ों को देकर एक विशाल जंगल बना दिया है. जिसके लिए उन्हें ‘फॉरेस्ट मैन ऑफ इंडिया‘ के नाम से जाना जाता है. इसके लिए उन्हें भारत सरकार की तरफ से पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. उनके बनाए जंगल में कई जानवर रहते हैं. पर्यावरण के हित में काम करने वाले लोगों की पंक्ति में शीर्ष पर आने वाले जादव पायेंग से न्यूज़ 18 ने बात कर जाना उनका सफर.
10 वीं कक्षा में ही पौधे लगाने की शुरुआत की थी.
10वीं कक्षा में की थी इस काम की शुरुआत
जादव पायेंग असम के रहने वाले हैं. उन्होंने पौधरोपण करने की शुरुआत 10वीं की पढ़ाई करने के दौरान ही कर दी थी. जादव बताते हैं कि साल 1978 में जब वह दसवीं कक्षा में थे, तब उन्होंने पौधे लगाने की शुरुआत की. उस समय उनका परिवार ब्रह्मपुत्र नदी के द्वीपीय इलाके अरुना सपोरी में रहता था. उनके परिवार ने 1965 में वह जगह छोड़ दी थी, लेकिन पढ़ाई करने के लिए जादव अरुना आया करते थे. एक बार जब वह स्कूल जा रहे थे, तब उन्हें रास्ते में बहुत सारे मरे हुए सांप दिखाई दिए. आसपास के लोगों ने बताया कि यहां बाढ़ आई थी, जिसमें पानी के बहाव के कारण यह सांप मर गए.
यह बात जादव पायेंग के मन में घर कर गई. उन्हें नदी के आसपास की बंजर भूमि को देखकर बहुत दुख हुआ. क्योंकि यदि वहां पेड़-पौधे होते तो बाढ़ नहीं आती. इसके बाद जादव ने ब्रह्मपुत्र नदी के द्वीपीय इलाके अरुना सपोरी में पौधे लगाने का काम शुरू कर दिया. वह अकेले ही पौधे लाकर लगाया करते थे और उनकी देखभाल किया करते थे.
इस सफर में कई मुश्किलों का सामना किया
जादव बताते हैं कि शुरुआत में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा. कई बार बारिश में पौधे बह जाया करते थे तो कभी नदी का जलस्तर बढ़ने से पौधे बर्बाद हो जाया करते थे. लेकिन अपने काम को कभी नहीं रोका. इन सबके बाद भी लगातार पौधे लगाते रहे और उनकी देखभाल करते रहे. मुझे जो पौधे मिलते थे, ले जाकर लगा देता था. हालांकि कई बार बारिश के मौसम में पेड़ हवा के कारण गिर जाया करते थे. लेकिन हर दिन पौधे लगाए और उन्हें बचाने के लिए कई तरीके भी आजमाए. धीरे-धीरे जो कई पौधे बड़े होते गए और पेड़ों की संख्या साल दर साल बढ़ती चली गई.
जंगल में कई जानवरोंं और पक्षियों का बसेरा है
जादव बताते हैं कि उन्होंने शुरुआत से लेकर लगातार पौधे लगाने का काम किया. हर दिन पौधे लगाने से पेड़ों की संख्या बढ़ती चली गई और वहां जंगल खड़ा हो गया. इस जंगल को कई जानवरों ने अपना बसेरा बनाना शुरू कर दिया. अब यहां पर लगभग 5 रॉयल बंगाल टाइगर, 100 से भी ज्यादा हिरण और कई भालू रहते हैं. उनके जंगल में कई तरह के पक्षियों ने अपना घर बसाया है. सिर्फ जंगल की देखभाल की और जानवर खुद ही उनके जंगल में आकर बस गए. जानवरों की संख्या भी साल दर साल बढ़ती जा रही है.
जंगल में बाघ, हिरण, भालू आदि कई जानवर हैं.
ऐसे कहलाए ‘फॉरेस्ट मैन ऑफ इंडिया’
जादव ने अपने काम का कोई प्रचार प्रसार नहीं किया था. वह केवल प्रकृति के लिए काम कर रहे थे और लगातार पौधरोपण का काम ही कर रहे थे. फिर एक बार एक पत्रकार को जब उनके इस कारनामे का पता चला तो वह जादव से मिलने उनके गांव पहुंच गए. उन्होंने जंगल भी घूमा और उसकी खबर दुनिया तक पहुंचायी. जिसके बाद साल 2012 में जादव को ‘जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी’ ने सम्मानित किया. उसी दौरान उन्हें ‘फॉरेस्ट मैन ऑफ इंडिया’ के खिताब से नवाजा गया. फिर इसके बाद उनके काम के बारे में देश दुनिया को पता चला. साल 2015 में उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री सम्मान से नवाजा. इसके बाद उन्हें विदेशों से बुलावा आने लगा. वह फ्रांस में “सातवीं ग्लोबल कॉन्फ्रेंस ऑफ सस्टेनबल डेवलपमेंट” की बैठक में शामिल हो चुके हैं. जिसमें उन्होंने कहा था कि हर देश को एक ‘फॉरेस्ट मैन’ की जरूरत है.
मेक्सिको सरकार ने भेजा था आमंत्रण
जादव ने इतना बड़ा जंगल बनाकर मिसाल कायम की है. उनके इस काम की चर्चा देश और दुनिया में हो रही है. मेक्सिको सरकार ने उन्हें ऑफर दिया था. जिसमें कि जादव उत्तर अमेरिका जाकर लोगों को पौधरोपण के तरीके सुझाएं और जंगल पैदा करें. मेक्सिको में एक गैर सरकारी संगठन ने दस साल की अवधि में 8 लाख हेक्टेयर भूमि में पेड़ लगाने के लिए जादव के साथ करार किया है.
इस करार के तहत जादव को 10 साल का परमानेंट वीजा, आने-जाने का किराया और रहने-खाने की सुविधा दी गई है. उन्हें साल के कम से कम तीन महीने मेक्सिको में गुजारने होते हैं. इसके साथ ही वह नॉर्थ अमेरिका को भी हरा भरा करने का काम कर रहे हैं. साथ ही वह 5000 एकड़ में एक जंगल बनाने की तैयारी में लगे हुए हैं. उन्होंने असम कृषि विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि हासिल कर ली है.
लोगों को देते हैं यह संदेश
जादव कहते हैं कि हम प्रकृति का उपभोग तो कर रहे हैं, लेकिन जितना हमें प्रकृति ने दिया है उसके बदले में हम थोड़ा भी काम प्रकृति के लिए करेंगे तो हम खुद को और आने वाली पीढ़ी को एक बहुत अच्छा जीवन दे सकते हैं. वह सुबह 5 बजे जंगल जाते हैं, पौधों की देखभाल करते हैं. यदि हर व्यक्ति पौधरोपण कर पेड़ बनने तक उसकी देखभाल करे, तो हर जगह हरियाली हो सकती है और पर्यावरण में हो रहे प्रदूषण को कम किया जा सकता है.
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