मिसाल! रोज भोर में उठकर 120 कुत्तों का खाना बनाती हैं 90 साल की ये दादी
मिसाल! रोज भोर में उठकर 120 कुत्तों का खाना बनाती हैं 90 साल की ये दादी
पिछले दो सालों से रोज़ सुबह उठकर बनाती हैं करीबन 120 आवारा कुत्तों का खाना. सोशल मीडिया पर खूब वाइरल हो रहा है दादी का कुत्तों के लिए प्यार. परिवार वालों के साथ मिलकर करती हैं आवारा कुत्तों की देख-रेख.
इन दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा 90 साल की एक बुजुर्ग महिला का विडियो, सोशल मीडिया यूजर्स का खूब दिल जीत रहा है. पॉसइनपडल (Pawsinpuddle) इंस्टाग्राम अकाउंट से शेयर किए गए इस विडियो में यह दादी बिरयानी बनाती नज़र आ रही हैं. इस विडियो को कुछ ही दिनों में 1.42 लाख से भी अधिक बार देखा जा चुका है और 47 हज़ार से ज़्यादा लाइक भी मिले हैं. अब आप सोच रहे होंगे इस विडियो में ऐसी क्या खास बात है कि इस पर इतने लाइक और व्यूज आ रहे हैं. तो आपका सोचना बिल्कुल ठीक है कि दरअसल खास बात बिरयानी बनाने में नहीं है बल्कि खास तो उसके पीछे की वजह है.
हर कुत्ता प्रेमी की मानें तो कुत्ते इस धरती पर किसी वरदान से कम नहीं हैं. हालांकि कुछ लोग यू हीं उनसे डरते हैं और उन्हें ना पसंद करते हैं. कुछ सालों पहले तक ऐसा ही कुछ हाल था इन दादी का. लेकिन व्यक्तिगत जीवन की कुछ घटनाओं की श्रृंखला ने उनके दिल को इन जानवरों के लिए पिघला दिया. और अब वह रोजाना करीबन 120 आवारा कुत्तों के लिए खाना बनाती हैं.
न्यूज 18 ने बात की वायरल हो रही दादी कनक सक्सेना और उनकी पोती सना सक्सेना से.
सना सक्सेना कुत्तों की देखभाल और पालन करने वाली एक कार्यकर्ता हैं और वह एक एनजीओ भी चलाती हैं. सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे विडियो को सना ने ही अपने इंस्टाग्राम पेज पर शेयर किया था. इस विडियो की शुरुआत होती है कनक के बिरयानी बनाने से और फिर वे लोग जाते हैं आवारा कुत्तों को अपने हाथ से यह बिरयानी खिलाने. ऐसा पहली बार हुआ था कि उनकी पोती अपनी दादी को अपने साथ कुछ आवारा कुत्तों को खाना खिलाने के लिए ले गई.
इस विडियो के नीचे सना ने एक बहुत ही भावुक कर देना वाला कैप्शन भी लिखा था. इस कैप्शन में वह लिखती हैं कि उनकी दादी के ऑस्टियोपोरोसिस के कई सारे ऑपरेशन हुए हैं और वह शय्याग्रस्त भी थीं. पर इसके बावजूद उन्होंने अपने और अपने कुत्तों के लिए प्रेम के बीच उनकी बीमारियों को नहीं आने दिया. वह आगे लिखती हैं कि कनक रोज़ सुबह साढ़े चार बजे उठ कर करीबन 120 कुत्तों के लिए खाना बनाती हैं.
खाना खिलाने से मिली खुशी को शब्दों…
हमसे बातचीत के दौरान 90 वर्षीय कनक बताती हैं कि उनको बिल्कुल सटीक तो याद नहीं है कि उन्होंने इस कार्य की शुरुआत कब की पर उनके मुताबिक दो ढाई साल से वह रोज़ाना यह कार्य करती हैं. उनके घर में एक सहायक भी है जो उनकी इस कार्य में मदद करती हैं. सहायक और अपनी बहू की मदद से वह घर पर खाना बनाकर पैक करती हैं और फिर उनकी पोती, बहू और उनके साथ काम करने वाले अन्य लोग अलग-अलग सेक्टर में बंट जाते हैं और जहां भी उन लोगों को आवारा कुत्ते मिलते हैं, वे उनको खाना खिलाते हैं.अपने स्वास्थ्य के ठीक न होने के कारण वह खाना खिलाने नहीं जा पाती हैं लेकिन वायरल हो रहे विडियो में वह पहली बार खाना खिलाने गई थीं और इस अनुभव से मिली खुशी को शायद ही वह शब्दों में बयां कर पाएं.
सना को हमेशा रहा कुत्तों से प्यार
वह बताती हैं कि उनके घर में सबको कुत्तों का शौक है. उनकी पोती सना को हमेशा से कुत्तों से बहुत प्यार रहा है जबकि कनक को हमेशा से कुत्ते एकदम नापसंद थे. पर जब उनकी पोती घर में एक कुत्ता ले आयी तो शुरू-शुरू में तो उन्हें वह बिल्कुल पसंद नहीं था. पर फिर धीरे-धीरे उन्हें उससे प्यार हो गया. दरअसल अपने घर आए कुत्ते की देखभाल करते- करते उन्हें सारे कुत्ते पसंद आने लगे. और अब हाल ये है कि वह कहती हैं, “अब किसी भी कुत्ते को तकलीफ में देखती हूं तो मुझे बहुत कष्ट होता है.”
सना बताती हैं अपने एनजीओ के बारे में
न्यूज 18 से बातचीत के दौरान कनक की पोती सना सक्सेना बताती हैं अपने एनजीओ के बारे में. वह कहती हैं कि कुत्तों से उन्हें हमेशा से ही प्यार था पर अपनी संस्था की शुरुआत उन्होंने दो साल पहले ही की है. वह हमेशा आवारा कुत्तों के लिए कुछ करना ज़रूर चाहती थीं पर वह इसकी शुरुआत बहुत छोटे स्तर पर ही करना चाहती थीं. 2019 में परिवार की सहायता और समर्थन से उन्होंने अपनी खुद की संस्था की शुरुआत की और लग गईं गाज़ियाबाद के वैशाली इलाके के आवारा कुत्तों की देखभाल में.
क्या है संस्था का काम?
इस संस्था के माध्यम से वह आवारा कुत्तों की देखभाल करती हैं. इस संस्था के द्वारा ना सिर्फ वह आवारा कुत्तों को खाना खिलाती हैं बल्कि साथ ही बीमार कुत्तों का इलाज कराया जाता और दिल्ली की हड्डी कंपा देने वाली ठंड में इन आवारा कुत्तों को गर्म कपड़े भी मुहैया कराए जाते हैं.
कैसे चलता है एनजीओ?
वह बताती हैं कि उनका ये एनजीओ पूरी तरह से उनके परिवार द्वारा ही संचालित है. वह उनके माता-पिता और दादी के साथ मिलकर ही सारा काम संभालती हैं. हालांकि वह कहती हैं कि जब भी कभी अधिक फंड की आवश्यकता होती है तो वह इंस्टाग्राम पर ‘फंड रेज़र’ की मदद से फंड जुटाती हैं. धीरे-धीरे उनका यह छोटा सा अभियान अब बड़ा हो रहा है. उनके कार्य को देखकर उनसे कुछ लोग अवश्य जुड़ते हैं.
‘कोको’ के आने से जीवन में आया बदलाव
वह बताती है कि उनके जीवन में इस बदलाव की शुरुआत हुई उनके घर नए मेहमान के आने से. वह हमेशा से ही कुत्ते रखना चाहती थीं और जब उन्होंने अपनी यह इच्छा अपने घर वालों के सामने व्यक्त की तो घरवालों ने आपत्ति जताई. वह कहती हैं कि उनके घरवालों की आपत्ति भी जायज़ थी क्योंकि वह और उनके पिता तो अपने-अपने काम पर चले जाते, उनकी मां और दादी को ही उस कुत्ते की देखभाल करनी पड़ती.
पर पांच साल पहले जब वह अपने कुत्ते ‘कोको’ को घर लेकर आईं तो शुरुआती दिनों में उनके परिवार में किसी ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. पर एक-दो हफ्ते का वक़्त बीतने के बाद धीरे-धीरे सबको उससे लगाव होने लगा. उनके मुताबिक उनकी दादी को तो कुछ ही वक़्त में ‘कोको’ से प्यार हो गया और फिर वह छोटे बच्चे की तरह उसका ध्यान रखने लगीं. इसी दौरान बात-बात में उनकी दादी ने कहा कि ‘कोको’ के तो मज़े हैं पर ना जाने लाखों आवारा कुत्तों का क्या होता होगा. इस बात से हम सबके दिलों में आवारा कुत्तों के प्रति सहानुभूति पैदा हुई और फिर हमने कुछ करने का निश्चय किया.
वह कहती हैं, “दादी भी अपना योगदान देना चाहती थीं और उन्हें हमेशा से खाना बनाने का बहुत शौक रहा है. तो हम सबने मिलकर यह तय किया कि वह रोज़ खाना बनाएंगी और हम सब मिलकर यह खाना उन आवारा कुत्तों तक पहुंचाएंगे.”
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