नोएडा: “मन के हारे हार है, और मन के जीते जीत!” यह कहावत 13 साल डिंपी पर बिल्कुल सटीक बैठती है. जब डिंपी 8 साल की थी, तब उसे पता चला कि वह ब्लड कैंसर (एएमएल) से ग्रसित है. लेकिन उसने कभी हिम्मत नहीं हारी और न ही हार मानी. करीब चार साल की लड़ाई के बाद, उसने इस गंभीर बीमारी को मात देकर यह साबित कर दिया कि बीमारी चाहे कितनी भी गंभीर हो, अगर समय पर पता चले और सही देखभाल हो तो उसे हराया जा सकता है. आज डिंपी कैंसर से पीड़ित बच्चों और बड़ों को अपनी इस लड़ाई की कहानी सुनाकर प्रेरित करती है.
डिंपी के माता-पिता मूल रूप से बिहार के भागलपुर के रहने वाले हैं. बेहद गरीबी के कारण, उसके पिता संजीव दास मजदूरी करते हैं, और मां रीना गृहिणी हैं. डिंपी अपने भाई-बहनों में सबसे बड़ी है. जब वह आठ साल की थी, तब उसे ब्लड कैंसर हो गया. शुरुआत में, उसे कई दिन बुखार रहा, जब ठीक नहीं हुआ तो डॉक्टर की सलाह पर जांच कराई और पता चला कि उसे ब्लड कैंसर है. अत्यधिक गरीबी के कारण वे अच्छे निजी अस्पताल में इलाज नहीं करा सके. तब उन्हें किसी ने नोएडा के पीजीआई के बारे में बताया, जहां लगातार चार साल तक डिंपी का इलाज चला. आखिरकार डिंपी ने इस बीमारी से जंग जीत ली और अब कैंसर से पीड़ित बच्चों और बड़ों को अपनी कहानी सुनाकर उन्हें प्रेरित करती हैं.
चार साल की जिंदगी और मौत से जंग
लोकल18 से बात करते हुए डिंपी की मां रीना ने बताया कि वे फिलहाल दिल्ली के शालीमार बाग में स्थित झुग्गी झोपड़ी में रहते हैं. डिंपी ने बताया कि उसे 2020 में, जब कोरोना काल की शुरुआत हुई थी, ब्लड कैंसर (एएमएल) का पता चला. उन्होंने अस्पतालों और समाज में वो चीजें देखी और झेली हैं जो कोई सोच भी नहीं सकता. करीब चार साल नोएडा के पीजीआई में रेगुलर इलाज के बाद वह अब पूरी तरह से ठीक है.
जीत से जंग
डिंपी ने बताया कि वह सभी को यही संदेश देती है कि यह बीमारी उतनी बड़ी नहीं है जितनी हम सोचते हैं. सबसे ज्यादा हमें अपने शरीर पर ध्यान देना होता है ताकि इन्फेक्शन न फैले. अब वह नॉर्मल बच्चों की तरह अपने जीवन में हर एक्टिविटी करती है और उसे कोई परेशानी नहीं होती.
Tags: Cancer Survivor, Local18FIRST PUBLISHED : July 26, 2024, 10:28 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed